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Thursday, June 21, 2012

वैराग्य योग और जन्म कुंडली ....?

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........

जय द्वारकाधीश


वैराग्य योग और जन्म कुंडली ......?


जीवन में हम को दो प्रकार के मनुष्य को अनुभव होता है , इस मे एक है मोह माया , स्वार्थ और कमानी से भरा हुवा है, दुश्ररा निर्लेप , निर्स्वर्थ ,निष्काम , एषा व्यक्तिओं संसार मे होता है, ये संसार की आती घुटी से अलिप्त होते है



ये संसार के जीवन चक्र एक ही होता है , व्यक्ति व्यक्ति से जीवन जीना का अभिनय जुदा जुदा होता है, कोई पैसा को महत्त्व देता है, कोई सता को महत्व देता है, कोई भोग विलास को महत्त्व देता है , तो कोई मात्र ने मात्र  इश्वर को महत्त्व देता है,   

में एशि कुंडलीओ की चर्चा बताउगा जीवन मे वैराग्य प्राप्त किया है, इस ने धर्म प्रदेशक बनकर समाज  सेवा की है , एषा विरल ये समाज मे पैदा हुवा था, तो इस के जन्म के ग्रहों पर एक नजर देखे , तो कटक को वैराग्य की तरह कैसे वरते है वाही देखे,    

संसार मे रह कर संसार से अलिप्तता अनुभवता जातक से लेकर महापुरुषों तक कुंडली मे वैराग्य देनेवाला कोमन ग्रहयोग देखे 

वैराग्य प्रेरक ग्रह शनि का मन का कारक चन्द्र और आत्मा का कारक ग्रह सूर्य के साथ सबंध , मेरा देखने में आनेवाली ९५% से भी जयादा कुंडलीऔ मेने ये मार्क किया है, जो व्यक्ति को संसार के प्रतिये अलिप्तता बनता होता है, इसकी कुंडलीऔ मे अवश्य शनि के साथ चन्द्र और सूर्य का सबंध होता है, जोके  सांसारिक दर्ष्टि से विचार किये तो शनि -चन्द्र  या शनि सूर्य का योग एच्छीय नही है केम के ते जीवन की सब सांसारिक भोग -विलास जेसे सब बाबतो पर अवरोध खड़ा करके जातक को एक प्रकारकी उदासीनता देता है, लेकिन ये योग योग मार्गी, सन्यासी , धर्मप्रेमी, व्यक्ति के लिए उपकारक साबित होता है, और ये योग जीवन मे कैसे भाग भजवता है, और जातक को वैराग्य की तरह तैयार करता है,

सामान्य रीते एक ऐसी कहावत है " नदी का मूल और साधू का कुल " पूछा नही जाता लेकिन जयादा वखत अध्यात्म का अभियासुओं मे ऐसी बाबत मदद करती है

मेरा परिचय मे आया हुवा संत जब उसका भूतकाल की बनी हुई बाबत मुझे बताई तब मुझे समाजमे आया,  

एक छोटा गाव मे रहेता था और उसका परिवार बहुत आर्थिक सकंट का अनुभव करता था, थोडा कम पठाई करने के बाद इस ने आजीविका और अर्थोपार्जक मे जुड़ा गाया, उसके बाद उसका उसकी नात मे एक लड़की के साथ शादी हुई, इस दरमियान हर क्षेत्रे संघर्ष चालू था, लेकिन भक्ति वाला जीव था,  इस ने प्रभु स्मरण कर के किसी सिकायत किया बिना सब चलाते थे, लेकिन लग्न के कम समय बाद पत्नी की मृत्यु हुई, इस के बाद आघात से ही उसको सब सत्य समझ मे हो चूका था और माया रूपी सब संसार को त्याग किया

ये उदाहण देने का  सिर्फ हेतु ये है, जब शनि -चन्द्र और सूर्य का सबंध आता है, तब जातक सांसारिक की दर्ष्टि से सुखी नही होते, और सांसारिक संघर्ष दरमियाँ भी उसका जीवन आधियात्मिक चेतना मे जाग्रत होता है, ( लेकिन दोनों बात एक दुशरो से पूरक होने का काम करते है ) वाही सिर्फ शनि -चन्द्र और सूर्य की युति ये बाबत खास जवाबदार uहै , तो भी दूशरा योगो के बारे मे भी देखना और विचारना जरुरी होता है, इसलिए जब लोहे का घाट करने मे लोहे को भठ्ठी मे बहुत गर्म करना जरुरी बनता है, ऐसे इश्वर भी महा पुरुषो को घाट देने मे संसार रूपी भठ्ठी मे तपाते है,  





उदाहण ०१ .

लग्न . सूर्य . चन्द्र . मगल. बुध . गुरु. शुक्र . शनि. राहू. केतु. 
04.    01.   07.    01.   02.   01.  01.   01. 03. 09.

ये कुंडली मे सूर्य - शनि और चन्द्र का सबंध होता है, वाही अलिप्तता और वैराग्य देने का जवाबदार होता है, इस से भी उपरांत केतु -शनि और गुरु मोक्ष भाव पर दर्ष्टि होती है, दशमे स्थान मे बिराजमान गुरु और सवग्रही मगल बहुत सुन्दर प्रतिभा और धर्म प्रचारक / प्रवक्ता बना देता है, शनि -सूर्य और चन्द्र एकसाथ बैठ कर विरकित देता है, इसे भी उपरांत राहू की चन्द्र पर दर्ष्टि का योग बहुत बन्वातर बनता है, सूर्य - शनि की साथ मे बिराजमान चतुर्थेश और एकादश का भी मालिक बनकर होने से समग्र जीवन दरमियान मोज शोख देता नही है, ये जीवन का भोग्वाटो कुमार रहेने तक होता है, इस से भी उपरांत गुरु - शनि का मिलन है वाही जीव का शिव (परमात्मा ) से मिलन भी देता है , इसे भी बाद लग्नेश चन्द्र के साथ गुरु केंद्र मे होनेका शुभ योग रचता है,   

ये प्रकार का जन्मला जातक आध्यात्मिक चरमसीमाऔ से स्पर्शी दुशरे लोगो को भी भक्ति का मार्ग दिया 

उदाहण २.

लग्न. सूर्य. चन्द्र. मगल. बुध. गुरु. शुक्र. शनि. राहू. केतु. 
9.   ०9.  ०6.   ०1.  10.  ०7.  10.  06. ०8. ०2. 

कर्म स्थान मे शनि - चन्द्र और सूर्य के साथ बिराजमान है वाही मोक्ष भाव को देखे तो मोक्ष भाव का स्वामी मगल पच्मेश स्वग्रही बनकर बिराजमान है

और ये ही मगल मोक्ष भाव पर आठ्मी दर्ष्टि करता है, इसे भी उपरांत मोक्ष भाव पर केतु और शनि की द्रष्टि है, वाही मोक्ष योग का सुचन करता है

इसे बाद मोक्षेस मगल पर लाभ स्थान मे बिराजमान गुरु सतमी द्रष्टि करता है, इसे भी उपरांत लग्न मे बिराजेल सूर्य  और लग्नेश मालिक गुरु की अच्छी द्रष्टि की स्थिति है, जातक को समाज मे मान माभो दिया है, और वाणी स्थान मे बिराजमान बुध - शुक्र और दुतियेश मालिक शनि ये वाणी को वैराग्य की तरह वाली उपरांत जातक की वाणी मे एषा जदु भी हुवा सब लोग को उसकी वाणी मे रचा गया, और कर्म स्थान मे शनि - चन्द्र होते है वाही जातक को समाज सेवा परायण करके समाज उपियोगी कार्यो कराया है, जातक की कुंडली मे भाग्येश / धर्मेश सूर्य लग्न मे बिराजमान है, जो जातक को समग्र जीवन दरमियान धार्मिक कार्यो कराया
                      
उदाहण ३.

लग्न. सूर्य. चन्द्र. मगल. बुध. गुरु. शुक्र. शनि. राहू. केतु. 
02.    08.     09.     09.  09.  04.  09.   09.   12.  06. 

पराक्रम स्थान मे बिराजमान उच्च का गुरु धर्म स्थान पर दर्ष्टि करता है, उपरांत गुरु और चन्द्र के बिच बननेवाला परिवर्तन योग और शनि - चन्द्र की युति जातक को तर्क द्वारा इश्वर की खोज दर्शाता है, और गुरु - चन्द्र   का परिवर्तन योग अच्छी स्थिति के कारण जातक की तर्क शक्ति वाचन और टिका बहुत लोको मे लोकप्रिय बनी है

और शनि की केतु पर दसमी दर्ष्टि से जातक का जीवन मे आध्यात्म विद्या मिली है, और अगियारमा स्थान मे बिराजमान राहू और सप्तमेश और बारमेश मालिक मगले जातक को हमेश के लिए वाद -विवाद दिया, और केन्द्र ( सप्तमेश ) मे  बिराजमान सूर्य जातक को देश विदेश मे बहुत प्रखियात भी बनाया है, 
PANDIT PRABHULAL P. VORIYA RAJPUT JADEJA KULL GURU :-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
SHREE SARSWATI JYOTISH KARYALAY
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Shri Albai Nivas ", Near Mahaprabhuji bethak,
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Jamkhambhaliya - 361305 Gujarat – India
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश..
राधे ........राधे ..... राधे .....राधे..... राधे .....राधे..... राधे .....राधे..... राधे .....राधे....
       

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