सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश.
लड़का या लड़की की जन्म कुंडली मेडापक्ष के बारे में जाने.......!
लड़का या लड़की की जन्म कुंडली मेडापक्ष के बारे में जाने........!
जन्म कुंडली के बार स्थान के साथ सकडायेली विगतो खास कर के देह भाव – तंदुरस्ती – वहान – धन – मित्रों – पेसो – स्वभाव – अभियास जमीन – जायदाद – माता – पिता के सुख – भाईओं – बहेनो के साथ लेनादेनी – रोग – दुश्मनावट – पितृक सप्ति – वारसो- भाग्य – लाभ –गेरलाभ – धंधो या नोकरी – स्त्रिसुख – दाम्पत्यजीवन – पति या पत्नी सुख – दगो – फटको – संतान – धर्म – वैराग्य –अधत्मिकता – कर्म – व्यय – नुकशान ये सब विगेरे विगेरे, ये उपरोक्त विगतो समजने के लिए दिनों की कुंडली का अभियाश करना जरुरी है ,
जन्म कुंडली ये आप का जन्म समय के पडछायो है, आप का प्रतिबिब है ?
आप केसी व्यक्ति है ?
आप का सवभाव कैसा है ?
आप को क्या क्या पसंद है ?
आप को शेना तरफ अणगमो है, क्या गमता है ?
क्या नही गमता ?
आप की प्रकृति केशी है ?
विगेरे बाबते जानी शक्ति है
ज्योतिष शास्त्र से छोकरा – छोकरी की जन्मकुंडलीया का अभियाश करने से दोनों का जीवन संसार की रथयात्रा शांतिपूर्वक भोग शकते है या नहीं ?
वाही देखना जरुरी होता है आज के पठी – लिखी लड़की औ के लड़का औ सामान ह्रदय और सहचर्य मागता है
मात्र भोजन – वस्त्रों और संतानो में इस का सुख समाई जाता नही है, इस का संस्कार – स्वभाव शिक्षण – मित्र मंडल शत्रुओ की अशरो अनुशर इस का सुख – दुःख का ख्यालो में रचे है संसार के संचालन बन्ने पक्षे बंध्छोद और सहनशीलता मागता है, ( परंतु वाही बंध्छोद और सहनशीलता के अभावसे आपघातो और छूटा छेड़ा की परम्परा सर्जता है,)
लड़का – लड़की की मेच्युरिटी लेवल भी सेम और अगत्य के है, दोनों एक दुशरे के समजी सकता है एक राग एक रंगे परस्पर का सुमेल निभावी सकता है और जीवन आनदमय वितावी सकता है एशी पूरक माहिती जन्म कुंडली पर से ही मिल सकती है,
मेरा पापा के और मेरा दादा के जो अनुभव पर से मेने जो अनुभव लिया है वाही सत्य में कहेता हू, जयादी व्यक्तिऔ एक एशी ही दलील करने के खातिर दलील कर लेता है, के पुरानो के जमानो में कब कुंडलीया मेल्वता था ये हमारी शादी हमारा वडीलो ये करदी है,
हम लोग भी कहा ग्रहों – कुंडलीऔ देखी थी हां भाई हां आप की बात सही है, आप के समय में इस समय सब लोग वडीलोके दबाण से किसी वडीलो के सामने एक भी शब्द बोल भी नहीं सकता था, लाकडे – माक्डू वल्गेलु हो भी चलावी लेता, परंतु अंदरो अंदर जिव कोचवता असख्य स्त्री – पुरुषों ने हम ने देखा और सुना है,
आज का जमाना मे लड़का – लड़कीऔ तटस्थ और वधु पड़ता बिंदास होता है माता - पिता की बात मानता होता नहीं, इसे समये लड़का – लड़की परनवालायक होते तब माता – पिता जयादा चितित होते है, ( पुरानो के जमानो में वडील वर्ग के सामने किसी को कुच्छ बोलने की हिमंत ज नही थी, ) आज के लड़का – लड़की पोतानी चोईस – पोतानो मन गम्तो ( साथी ) वर – वधु शोधता हो गया है,
आज काल तो खुलेआम “ जीवन साथी चाहिए “ लग्न सबंधी जहेरातो भी वर्तमानपत्रों में आते है, और वाही जहेरातो में अमुक वाक्यो बहु ज उंडे अखिया में टच होता है ऐसा भी लिखा जाता है “ जहेरात का हेतु योग्य पसंदगी के लिए “ और एसा भी लिखा है “ मगल है / मगलवाली लड़की है, या मगलवाला लड़का है, शनि है – शनि नहीं है, और जन्माक्षर की कोपी “
आज के समाज आधुनिकता के साथ साथ ज्योतिष शास्त्र की सेवा भी लेते है, दोनों व्यक्तिकी जन्माक्षर दिखाना कई भी जूठा नही है, लेख के आंरभ में प्रथम भी बताया है के जन्म कुंडली के बार स्थानों के साथ संक्डायेली विगतो जोइंट करके टका वारी से जयादा से जयादा गुणांक से सुखी बन सकाता है, छूटाछेड़ा या आप्घातो जेशी घटनाओं घटाड़ी सकता है, इस लिए जन्म कुंडली के मिलान करवाना जरुरी है,
लालच और दहेज बुरी चीज है, इस समाज के लाल्चुओं और दहेज को लेनाराओ जन्म कुंडली मिलान करवाना में मानता नहीं है,
जन्म कुंडली के बारे स्थानों की तुलना कर ने ने बाद निचे दिया हवा विगतो भी ध्यान में लेनेकी जरुरी होती है जन्म कुंडली में चन्द्र माँ की स्थिति के आधार पर ये अष्टकुटो का गुणाक देखना जरुरी है,
1. वर्ण 2. वश्य 3. तारा 4. योनी 5. ग्रह- मैत्री 6. गण 7. भुकुट 8. नाडी, उपरोक्त अष्टकुटो को क्रमश एक से आठ गुण मिलान किया जाता है,
इन गुणों का कुल जोड़ 36 बनता है तथा इन्हीं 36 गुणों के आधार पर कुंडलियों का मिलान सुनिश्चित किया जाता है।
36 में से जितने अधिक गुण मिलें, उतना ही अच्छा कुंडलियों का मिलान माना जाता है। 36 गुण मिलने पर उत्तम, 36 से 30 तक बहुत बढ़िया, 30 से 25 तक बढ़िया तथा 25 से 20 तक सामान्य मिलान माना जाता है।
20 से कम गुण मिलने पर कुंडलियों का मिलान शुभ नहीं माना जाता है।
कुंडली मिलान के लिए प्रयोग की जाने वाली गुण मिलान की विधि में मिलाए जाने वाले अष्टकूटों में नाड़ी और भकूट को सबसे अधिक गुण प्रदान किए जाते हैं।
नाड़ी को 8 तथा भकूट को 7 गुण प्रदान किए जाते हैं।
इस तरह अष्टकूटों के इस मिलान में प्रदान किए जाने वाले 36 गुणों में से 15 गुण केवल इन दो कूटों अर्थात नाड़ी और भकूट के हिस्से में ही आ जाते हैं।
इसी से गुण मिलान की विधि में इन दोनों के महत्व का पता चल जाता है।
नाड़ी और भकूट दोनों को ही या तो सारे के सारे या फिर शून्य गुण प्रदान किए जाते हैं, अर्थात नाड़ी को 8 या 0 तथा भकूट को 7 या 0 अंक प्रदान किए जाते हैं।
नाड़ी को 0 अंक मिलने की स्थिति में वर - वधू की कुंडलियों में नाड़ी दोष तथा भकूट को 0 अंक मिलने की स्थिति में वर-वधू की कुंडलियों में भकूट दोष बन जाता है।
भारतीय ज्योतिष में प्रचलित धारणा के अनुसार इन दोनों दोषों को अत्यंत हानिकारक माना जाता है तथा ये दोनों दोष वर - वधू के वैवाहिक जीवन में अनेक तरह के कष्टों का कारण बन सकते हैं और वर - वधू में से किसी एक या दोनों की मृत्यु का कारण तक बन सकते हैं।
तो आइए आज भारतीय ज्योतिष की एक प्रबल धारणा के अनुसार अति महत्वपूरण माने जाने वाले इन दोनों दोषों के बारे में चर्चा करते हैं।
१
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वर्ण
|
सामाजिक मूल्यों की अनुकूलता
|
१ अंक
|
२
|
वैश्य
|
सामांजस्य स्तर पर अनुकूलता
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२ अंक
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३
|
तारा / दिना
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व्यक्तिगत नियति की अनुकूलता
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३ अंक
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४
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योनि
|
यौन अनुकूलता
|
४ अंक
|
५
|
गृह /मैत्री
|
वैवाहिक सद्भाव की अनुकूलता
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५ अंक
|
६
|
गण
|
व्यक्तिगत लक्षण की अनुकूलता
|
६ अंक
|
७
|
भकूट
|
सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति की अनुकूलता
|
७ अंक
|
८
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नाड़ी
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संतति पैदा करने की अनुकूलता
|
८ अंक
|
इस प्रणाली का पालन करके किए जाने वाले जोड़े मेल वैज्ञानिक रुप से सही होते हैं।
कुंडली में नाड़ी दोष संतान के जन्म में कठिनाईयों को दिखाता है।
यदि गुण मिलाप के समय मध्य नाड़ी दोष का संकेत मिलता है, तो युगल के संतान सुख से वंचित रखने की संभावना काफी मजबूत होती है।
कारण – नाड़ी किसी व्यक्ति की प्रकृति ( मूल तत्व ) को इंगित करता है।
ये प्रकृति वात, पित्त और कफ हैं।
यदि दोनों भागीदार एक ही प्रकृति में जन्म लेते हैं तो नाड़ीके तहत प्राप्त अंक शून्य होगा।
विवाह का मकसद एक दूसरे के साथ सुखी जीवन ही नहीं है, बल्कि परिवार का विस्तार भी है।
यदि युगल संतानसुख से वंचित रहते हैं तो वैवाहिक जीवन में कुछ वर्षों के पश्चात उदासी आ सकती है,
नाड़ी के प्रकार तथा उनके अर्थ निम्न प्रकार से हैं -
आद्य नाड़ी
|
वात
|
वायु स्वभाव
|
सूखा तथा ठंड़ा
|
मध्य नाड़ी
|
पित्त
|
पित्त स्वभाव
|
उच्चतम मेटाबोलिक दर
|
अंत नाड़ी
|
कफ
|
सुस्त स्वभाव
|
तैलिय तथा विनित
|
मध्य नाड़ी दोष इन तीनों में से सबसे मजबूत माना जाता है, जैसा कि पित्त प्रकृति वीर्य की गुणवत्ता का नाश करता है।
इस कारण से सफल गर्भाधान की संभावना काफी कम हो जाती है, अधिकांशतः इसलिए कि शुक्राणु की आयु ३ से ५ दिन की होती है और पित्त प्रकृति का स्वभाव इसका नाश करने का है।
फलतः मध्य नाड़ी दोष वाले युगल की प्रजनन क्षमता काफी कम होती है।
आइए सबसे पहले यह जान लें कि नाड़ी और भकूट दोष वास्तव में होते क्या हैं तथा ये दोनों दोष बनते कैसे हैं।
नाड़ी दोष से शुरू करते हुए आइए सबसे पहले देखें कि नाड़ी नाम का यह कूट वास्तव में होता क्या है।
नाड़ी तीन प्रकार की होती है, आदि नाड़ी, मध्या नाड़ी तथा अंत नाड़ी।
प्रत्येक व्यक्ति की जन्म कुंडली में चन्द्रमा की किसी नक्षत्र विशेष में उपस्थिति से उस व्यक्ति की नाड़ी का पता चलता है।
नक्षत्र संख्या में कुल 27 होते हैं तथा इनमें से किन्हीं 9 विशेष नक्षत्रों में चन्द्रमा के स्थित होने से कुंडली धारक की कोई एक नाड़ी होती है।
उदाहरण के लिए :
चन्द्रमा के निम्नलिखित नक्षत्रों में स्थित होने से कुंडली धारक की आदि नाड़ी होती है :
अश्विनी, आर्द्रा, पुनर्वसु, उत्तर फाल्गुणी, हस्त, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा तथा पूर्व भाद्रपद।
चन्द्रमा के निम्नलिखित नक्षत्रों में स्थित होने से कुंडली धारक की मध्य नाड़ी होती है :
चन्द्रमा के निम्नलिखित नक्षत्रों में स्थित होने से कुंडली धारक की मध्य नाड़ी होती है :
भरणी, मृगशिरा, पुष्य, पूर्व फाल्गुणी, चित्रा, अनुराधा, पूर्वाषाढ़ा, धनिष्ठा तथा उत्तर भाद्रपद। चन्द्रमा के निम्नलिखित नक्षत्रों में स्थित होने से कुंडली धारक की अंत नाड़ी होती है :
कृत्तिका, रोहिणी, श्लेषा, मघा, स्वाती, विशाखा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण तथा रेवती।
गुण मिलान करते समय यदि वर और वधू की नाड़ी अलग - अलग हो तो उन्हें नाड़ी मिलान के 8 में से 8 अंक प्राप्त होते हैं, जैसे कि वर की आदि नाड़ी तथा वधू की नाड़ी मध्या अथवा अंत।
किन्तु यदि वर और वधू की नाड़ी एक ही हो तो उन्हें नाड़ी मिलान के 8 में से 0 अंक प्राप्त होते हैं तथा इसे नाड़ी दोष का नाम दिया जाता है।
नाड़ी दोष की प्रचलित धारणा के अनुसार वर - वधू दोनों की नाड़ी आदि होने की स्थिति में तलाक या अलगाव की प्रबल संभावना बनती है तथा वर - वधू दोनों की नाड़ी मध्य या अंत होने से वर - वधू में से किसी एक या दोनों की मृत्यु की प्रबल संभावना बनती है।
नाड़ी दोष को निम्नलिखित स्थितियों में निरस्त माना जाता है :
यदि वर - वधू दोनों का जन्म एक ही नक्षत्र के अलग - अलग चरणों में हुआ हो तो वर-वधू की नाड़ी एक होने के बावजूद भी नाड़ी दोष नहीं बनता।
यदि वर - वधू दोनों की जन्म राशि एक ही हो किन्तु नक्षत्र अलग - अलग हों तो वर - वधू की नाड़ी एक होने के बावजूद भी नाड़ी दोष नहीं बनता।
यदि वर - वधू दोनों का जन्म नक्षत्र एक ही हो किन्तु जन्म राशियां अलग - अलग हों तो वर - वधू की नाड़ी एक होने के बावजूद भी नाड़ी दोष नहीं बनता।
नाड़ी दोष के बारे में विस्तारपूर्वक जानने के बाद आइए अब देखें कि भकूट दोष क्या होता है।
कुंडलियों में चन्द्रमा परस्पर 6-8, 9-5 या 12-2 राशियों में स्थित हों तो भकूट मिलान के 0 अंक माने जाते हैं तथा इसे भकूट दोष माना जाता है।
उदाहरण के लिए मान लीजिए कि वर की जन्म कुंडली में चन्द्रमा मेष राशि में स्थित हैं, अब :
यदि कन्या की जन्म कुंडली में चन्द्रमा कन्या राशि में स्थित हैं तो इसे षड़ - अष्टक भकूट दोष का नाम दिया जाता है क्योंकि मेष राशि से गिनती करने पर कन्या राशि छठे तथा कन्या राशि से गिनती करने पर मेष राशि आठवें स्थान पर आती है।
यदि कन्या की जन्म कुंडली में चन्द्रमा धनु राशि में स्थित हैं तो इसे नवम - पंचम भकूट दोष का नाम दिया जाता है क्योंकि मेष राशि से गिनती करने पर धनु राशि नवम तथा धनु राशि से गिनती करने पर मेष राशि पांचवे स्थान पर आती है।
यदि कन्या की जन्म कुंडली में चन्द्रमा मीन राशि में स्थित हैं तो इसे द्वादश - दो भकूट दोष का नाम दिया जाता है क्योंकि मेष राशि से गिनती करने पर मीन राशि बारहवें तथा मीन राशि से गिनती करने पर मेष राशि दूसरे स्थान पर आती है।
भकूट दोष की प्रचलित धारणा के अनुसार षड़ - अष्टक भकूट दोष होने से वर - वधू में से एक की मृत्यु हो जाती है, नवम - पंचम भकूट दोष होने से दोनों को संतान पैदा करने में मुश्किल होती है या फिर सतान होती ही नहीं तथा द्वादश - दो भकूट दोष होने से वर - वधू को दरिद्रता का सामना करना पड़ता है।
भकूट दोष को निम्नलिखित स्थितियों में निरस्त माना जाता है :
यदि वर - वधू दोनों की जन्म कुंडलियों में चन्द्र राशियों का स्वामी एक ही ग्रह हो तो भकूट दोष खत्म हो जाता है।
जैसे कि मेष - वृश्चिक तथा वृष - तुला राशियों के एक दूसरे से छठे - आठवें स्थान पर होने के बावजूद भी भकूट दोष नहीं बनता क्योंकि मेष - वृश्चिक दोनों राशियों के स्वामी मंगल हैं तथा वृष - तुला दोनों राशियों के स्वामी शुक्र हैं। इसी प्रकार मकर-कुंभ राशियों के एक दूसरे से 12-2 स्थानों पर होने के बावजूद भी भकूट दोष नहीं बनता क्योंकि इन दोनों राशियों के स्वामी शनि हैं।
यदि वर - वधू दोनों की जन्म कुंडलियों में चन्द्र राशियों के स्वामी आपस में मित्र हैं तो भी भकूट दोष खत्म हो जाता है जैसे कि मीन - मेष तथा मेष - धनु में भकूट दोष नहीं बनता क्योंकि इन दोनों ही उदाहरणों में राशियों के स्वामी गुरू तथा मंगल हैं जो कि आपसे में मित्र माने जाते हैं।
इसके अतिरिक्त अगर दोनो कुंडलियों में नाड़ी दोष न बनता हो, तो भकूट दोष के बनने के बावजूद भी इसका असर कम माना जाता है।
किन्तु इन दोषों के द्वारा बतायी गईं हानियां व्यवहारिक रूप से इतने बड़े पैमाने पर देखने में नहीं आतीं और न ही यह धारणाएं तर्कसंगत प्रतीत होती हैं।
उदाहरण के लिए नाड़ी दोष लगभग 33 प्रतिशत कुंडलियों के मिलान में देखने में आता है कयोंकि कुल तीन नाड़ियों में से वर और वधू की नाड़ी एक होने की सभावना लगभग 33 प्रतिशत बनती है।
इसी प्रकार की गणना भकूट दोष के विषय में भी करके यह तथ्य सामने आता है कि कुंडली मिलान की लगभग 50 से 60 प्रतिशत उदाहरणों में नाड़ी या भकूट दोष दोनों में से कोई एक अथवा दोनों ही उपस्थित होते हैं।
और क्योंकि बिना कुंडली मिलाए विवाह करने वाले लोगों में से 50 - 60 प्रतिशत लोग ईन दोनों दोषों के कारण होने वाले भारी नुकसान नहीं उठा रहे इस लिए इन दोनों दोषों से होने वाली हानियों तथा इन दोनों दोषों की सार्थकता पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है।
नाड़ी दोष तथा भकूट दोष अपने आप में दो लोगों के वैवाहिक जीवन में उपर बताई गईं विपत्तियां लाने में सक्षम नहीं हैं तथा इन दोषों और इनके परिणामों को कुंडली मिलान के अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं के साथ ही जोड़ कर देखना चाहिए। नाड़ी दोष तथा भकूट दोष से होने वाले बुरे प्रभावों को ज्योतिष के विशेष उपायों से काफी हद तक कम किया जा सकता है।
दूसरी बात, वो ये कि आजकल जन्मकुंडली मिलान वगैरह के लिए भी कम्पयूटर का ही सहारा लिया जाने लगा है. खैर इसमें कोई बुराई नहीं बल्कि ये तो अच्छी बात है क्यों कि कम्पयूटर के इस्तेमाल से गलती की कैसी भी कोई संभावना नहीं रहती......
परन्तु अन्तिम निर्णय तो विद्वान ज्योतिषी को ही करना होता है. कम्पयूटर का कार्य है सिर्फ गणित (Calculations) करना. जन्मकुंडली देखना, उसके बारे में अन्तिम रूप से सारांशत: व्यक्तिगत रूचि लेकर किसी निर्णय पर पहुँचने का कार्य ज्योतिष के ज्ञाता का है. कम्पयूटर मानव कार्यों का एक सर्वोतम सहायक जरूर है, मानव नहीं.....
इसलिए कम्पयूटर का उपयोग करें तो सिर्फ जन्मकुंडली निर्माण हेतु....न कि कम्पयूटर द्वारा दर्शाई गई गुण मिलान संख्या को आधार मानकर कोई अंतिम निर्णय लिया जाए....
राशिओं का परश्पर शुभा शुभ योग –मगल दोष – शनि दोष – गुनेक्य दोष – कुतुम्बधिपति – पच्मादिपति – भाग्याधिपति और व्य्याधिपति योग को भी ध्यान लेना जरुरी है, क्या शनि के सामने शनि ज होता है ?
क्या मगल के सामने मगल ज होता है ?
क्या मगल वाली कुंडली के सामने शनि वाली कुंडली मेल चले ये सही है !!
दोनों व्यक्तिके प्रथम मिलन इंटरव्यू रुपे होने के पहेल जन्म कुंडली मेलापक्ष करना चाहिए या इंटरव्यू होने के बाद जन्म कुंडली मेलापक्ष करना चाहिए !!
क्या ( दोनों ) लड़का या लड़की व्यक्ति के प्रथम इंटरव्यू होने चाहिए या जन्म कुंडली मेलापक्ष करना चाहिए !!
जी हा प्रथम जन्म कुंडलीऔ दिखानी चाहिए इस के बाद इंटरव्यू सामान्य रुपे जन्म कुंडली मिलती हो तो इस के बाद दोनों पक्षका उम्लको भी रही सकता है, सामाजिक मोभो – स्टेट्स दोनों पक्ष को मंजूर भी होते है, परंतु कोई बार एषा भी बनता है, किशी न कहेने पर से कोई पण प्रकार के जन्माक्षर मेलापक्ष किया बिना इंटरव्यू बना लेते है, एक ओनो की बात भी गमती मिलती है, और बहुत उतावले चिला चालू विधि भी करलेते है, सबंध – वेविशाल भी करलेते है, बाद लग्न की दिनाक तिथि – मुहर्त को पक्का करने के लिए जब ज्योतिष के पास जाते है, तब ज्योतिषी बोले हे इस की जन्म कुंडली भी मिलती नही है, जो कदाच जन्मकुंडलीऔ ज न मिलती हो तो लग्नविधि के मुहर्त कैसे निकलेगा ?
जो शिर्फ लड़का और लड़की के नाम पर से लग्न के मुहर्त निकलता है तो कितना टिकता है?
और भी दोनों पक्ष के बात मंजूर होने के कारण इस के इंटरव्यू में लड़का – लड़की भी योग्य सही मंजूर कर लेते है और इस के मर्जी अनुशार सागवाडिया लग्न भी शिर्फ नाम पर से अच्छा वार तिथि के समय निकाल लेते है, और इसमें अमुक ज्योतिषो भी ग्रहों के बिच में लेकर इस पूजा करो ये करो ऐसा बोल कर अमुक रूपया भी खाखेर लेते है,
एषा लग्नों में जब विघन आते है, या लगन के बाद दोनों पक्ष के बिच जब झिग्डा होता है, तब कोर्ट के धक्का खता है,
तब ज्योतिषी याद आता है “ महाराज कुच्छ करो में फस गया “ और काबुल भी करता है, आप की बात सही निकली मेंरे को आप की फीस तब जयादा लगती थी आज में वकील और कोर्ट में फस गया हू,
आप जो चाहो में करने तयार हू आप मुझे इस में से बचालो, आप बोला था के इस कुंडली मिलती नही है, तो भी हम लोगो ने तो शादी की इस का ये परिणाम हम को मिला है, तब मेने जो आप की बात मालिया हॉत तो आज मेरा संतान का ये तलाक के परिणाम में नही देखा हॉत,
इस परिणाम के खातिर ज्योतिषशास्त्र जूठा नही है, ज्योतिषी जूठा है,
ज्योतिष शास्त्र के अनुशार जब लड़का या लड़की की कुंडली पर से ये पता जरुर चल्जता है,
१. लड़का और लड़की की कुंडली मेलापक्ष में दोनों के माता पिता को क्या लाभ और कितने
समय में मिलता है,?
२. ये लड़का और लड़की के जीवन में क्या क्या लाभ हनी होगा,?
३. ये लड़का और लड़की के पहेला संतान क्या होगा,?
४. ये लड़का और लड़की के दूसरा भाई – बाहेंन का सबंध में कितना समय और कितना किलोमीटर दूर या नजदीक होगा?
५. लड़का और लड़की के कौटुम्बिक पारिवारिक और मित्रों सब्न्धिओं के बिच केशा रहेगा ?
कुंडली औ के दोरान में देखे तो सब ग्रहों भी देखना पड़ता है, जो जातक की कुंडली में शनि – मगल के गुणधर्मो भी अलग –अलग होते है, एकंदारे शनि एक आलसु प्रकृति स्वभाव के होते है, शनि वाला जातक जयादा एकलता अनुभवता होते है,
जो शनि सूर्य के दष्टि या युति में होता है तो जातक गर्म भी हो जाता है,
जो शनि मगल के द्रष्टि में या युति में होता है तो जातक समय आते हे तब डंख लगते है,
जो शनि बुध के द्रष्टि या युति में होता तो जातक बहु धीरी प्रगति शांत चीते करेगा,
जो शनि गुरु के द्रष्टि या युति में होता तो जातक धार्मिक प्रकृति वाला और वाही थोड़ा नम्र और जीदी स्वभाव का होता है,
जो शनि शुक्र के द्रष्टि या युति में होता तो जातक काम – विषय वासना से दूर भाग्नारा होता है
जो शनि राहू के द्रष्टि या युति में होता तो जातक एकलता में राचनारा होता है, किसी के साथ ज्यादा दोष्टि भी नही करता कुटुंब परिवार में भी बहुत शांत रहेता है किसी के साथ जयादा बात भी नहीं करता,
एषा शनि के गुणधर्म के सामने मगल के गुणधर्मो तदन विरुद्ध होता है,
जो मगल सूर्य के द्रष्टि या युति में हो तो जातक बहुत उग्र होते हे,
जो मगल चन्द्र के द्रष्टि या युति में हो तो जातक बहुत सत्य वाणी बोलते है बोलने के बाद उसके मगज में कुछ न होता है
जो मगल बुध के द्रष्टि या युति में हो तो जातक उत्शाही और उतावला होता है,
जो मगल गुरु के द्रष्टि या युति में हो तो जातक थोडा जीदी होता है लेकिन सम्जाने के बाद तुरतज समज जाते है,
जो मगल शुक्र के द्रष्टि या युति में हो तो जातक मनमाँ ने मानमाँ अंदर से बलता नही है, परंतु कडवु वचन तुरत में ही सत्य कही देता है, थोडा रोमेंटिक और काम विषय की वाशना वाले होता है,
जो मगल शनि के द्रष्टि या युति में हो तो जातक एकलता कभी गमती भी नही है किसी अजन्या व्यक्तिके साथ भी तुरतज दोस्ती कर लेते है,
जो मगल राहू के द्रष्टि या युति में हो तो जातक कुटुंब समाज सबंधीऔ में मान मर्यादा प्रतिष्ठा हाशल करने वाला होता है,
मगल वाली व्यक्ति बहुत जल्दी समजावी सकाती है, वाही कभी किसी की बात सुनने के बाद तुरतज जल्दी स्वीकार कर लेते है, जब शनि वाला जातको को समजाने बहुत कठिन होते है, वाही पहेला निरिकक्षण करते हे, बात सत्य हे या जूठी बाद भी वाही इनकार भी करते है, ( जब तुला – मकर या कुम्भ के शनि को ये लागू पड़ता नही है, )
एकंदारे सामान्य रीते जन्म कुंडली में १ – ४ – ७ – ८ और १२ माँ स्थान में मगल होते तो कुंडली मगल वाली कहेते है, एषा ही रीत १ – ४ – ७ – ८ ओर १२ माँ स्थान में शनि होते तो कुंडली शनि वाली कहेते है,
लड़का और लड़की के जन्मकुंडली मेडापक्ष के बारे में दुश्ररा ग्रहों का विचार और अभियास भी बहुत जरुरी होते है,
जब मगल और शनि के विरोधाभाषी गुणधर्मो देख ने में आते है, तब मगल के सामने मगल वाली कुंडली और दुश्ररा ग्रहों की स्थिति और शनि के सामने शनि वाली कुंडली और दुश्ररा ग्रहों की स्थिति देखनी जरुरी होती है, जो इस में दुश्ररा ग्रहों की स्थिति अच्छी हो तो मगल के सामने मगल वाली कुंडली और शनि के सामने शनि वाली कुंडली में बहुत अच्छा और एक दूश्ररो की समज सकते है, शांति से जीवन बिता सकते है, इस में कोय शंका के स्थान भी नही होते,
विचारों में थोडा कम मतभेदों होते है तो चलते है परंतु मंनभेदो आते है तब सब पूर्ण हो जाते है और सब अस्त व्यस्त हो जाते है, इस लिए सेम गुणधर्म वाली जन्म कुंडली के व्यक्तिऔ को मनभेद कभी नहीं हो सकते वाही जीवन के लिए जरुरी है
जब मतभेद होते है तो एक दूश्ररो थोड़ी देर के लिए और दूश्ररो को बताने के लिए थोडा जगदा भी कर लेते है, बाद में सब एक हो जाते है, जब मनभेद होते है तो लग्न जीवन जरुर बिगाड देता है है और है,
मनभेद एक पूरा काच - ग्लास – शीशा होता है, जब एक बार शीशा में तिराल पड जाते है वाही अलग बनते ही होते है,
किसी न कारण तिराड जोडा नही सकती और बहुत आगे आगे तिराड होती रहेती है, जब लड़का और लड़की के जीवन में किसी न किसी शंका रूपी या किसी प्रकारे जब तिराड पड़ती है वाही अलग बनते ही रहेते है, इस के लिए कुंडली का पूरा अभियास करना बहुत जरुरी बनजाता है, क्युकी सब ग्रहों की डिग्री के साथ विचार करना जरुरी बनजाता है,
PANDIT PRABHULAL P. VORIYA RAJPUT JADEJA KULL GURU :-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
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