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Saturday, December 28, 2024

पौष मास की अमावस्या पर सूर्य-चंद्र रहते हैं एक राशि में, जानिए इस दिन पितरों के लिए धूप-ध्यान क्यों करना चाहिए? शनि देव को क्यों प्राप्त है क्रूर ग्रह का दर्ज़ा ?

 

पौष मास कीअमावस्या पर सूर्य - चंद्र रहते हैं एक राशि में, जानिए इस दिन पितरों के लिए धूप-ध्यान क्यों करना चाहिए?  शनि देव को क्यों प्राप्त है क्रूर ग्रह का दर्ज़ा ?


पौष मास कीअमावस्या पर सूर्य-चंद्र रहते हैं एक राशि में, जानिए इस दिन पितरों के लिए धूप-ध्यान क्यों करना चाहिए? 





सोमवार को पौष मास का एक पक्ष पूरा हो जाएगा, इस दिन अमावस्या है। जब सोमवार को अमावस्या होती है से इसे सोमवती अमावस्या कहते हैं। इस तिथि पर देवी-देवताओं की पूजा करने के साथ ही पितरों के लिए धर्म-कर्म करने का महत्व है। 

जानिए अमावस्या पर पितरों के लिए धूप-ध्यान करने की परंपरा क्यों है और इस दिन कौन-कौन से शुभ काम कर सकते हैं...!

अमावस्या तिथि के स्वामी पितर देव माने जाते हैं और इस तिथि का नाम अमा नाम के पितर के नाम पर पड़ा है, इस कारण इस दिन पितरों के लिए खासतौर पर धर्म - कर्म करने की परंपरा है।

महाभारत के अनुशासन पर्व में लिखा है कि पितरों के लिए तर्पण और श्राद्ध कर्म करने से पितर देव प्रसन्न होते हैं और घर - परिवार के सदस्यों पर कृपा बरसाते हैं। 

पितरों की कृपा से घर - परिवार में सुख - समृद्धि बनी रहती है। 

इन कामों के लिए अमावस्या तिथि सबसे शुभ मानी जाती है।

गरुड़ पुराण में लिखा है कि जो लोग अमावस्या पर पितरों के लिए तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध, धूप-ध्यान करते हैं, उनके पितर तृप्त होते हैं। 

पितरों को शांति मिलती है और वे प्रसन्न होकर घर - परिवार को आशीर्वाद देते हैं।

पद्म पुराण के अनुसार अमावस्या पर किए जाने वाले शुभ कामों के बारे में बताया गया है। 

इस दिन व्रत, नदी स्नान और दान - पुण्य करने की परंपरा है। 

अमावस्या तिथि पर भगवान विष्णु की पूजा खासतौर पर की जाती है।

स्कंद पुराण के मुताबिक अमावस्या पर तीर्थ यात्रा, गंगा जैसी पवित्र नदियों में स्नान और भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। 

अमावस्या पर किए गए धर्म - कर्म से जाने - अनजाने में किए गए पापों का नाश होता है।

ज्योतिष के अनुसार अमावस्या पर चंद्र और सूर्य एक साथ एक राशि में होते हैं। 

30 दिसंबर को चंद्र - सूर्य धनु राशि में रहेंगे। 

सूर्य की वजह से चंद्र की स्थिति कमजोर हो जाती है। 

इस दिन सूर्य को जल चढ़ाने के साथ ही चंद्र देव की प्रतिमा की भी पूजा करनी चाहिए। 

ऐसा करने से कुंडली के चंद्र और सूर्य से जूड़े दोष शांत होते हैं।

महाभारत के अनुसार पांडवों ने भी अमावस्या पर अपने पितरों का श्राद्ध-तर्पण किया था। 

इस दिन जल, अनाज, कपड़े और धन का दान करने से पितर तृप्त होते हैं।

जानिए अमावस्या पर और कौन - कौन से शुभ काम कर सकते हैं...!
  • अमावस्या पर हनुमान जी के सामने दीपक जलाकर हनुमान चालीसा और सुंदरकांड का पाठ करना चाहिए। 
  • आप चाहें तो राम नाम का जप भी कर सकते हैं।
  • शिवलिंग पर जल-दूध चढ़ाएं। 
  • चंदन का लेप करें। 
  • बिल्व पत्र, धतूरा, आंकड़े के फूल चढ़ाएं और ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जप करें।
  • इस तिथि पर महालक्ष्मी और भगवान विष्णु का अभिषेक करना चाहिए। 
  • पूजा में ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करें।
  • भगवान श्रीकृष्ण को दूध चढ़ाएं और माखन - मिश्री का भोग लगाएं। 
  • कृं कृष्णाय नम: मंत्र का जप करें।
  • किसी मंदिर में पूजन सामग्री जैसे कुमकुम, गुलाल, अबीर, भोग के लिए मिठाई, घी - तेल, भगवान के वस्त्र आदि दान कर सकते हैं।

 शनि काले कर्मों से पीड़ा देतेकाले रंग से नहीं :


काले रंग को शनि ग्रह से जोड़कर शुभ कामों में त्यागने की धारणा बना दी है जो सही नहीं है। 

शनि, न्याय के देवता हैं। 

वह सिर्फ काले कर्मों से कारण पीड़ा देते हैं। 

काले रंग की वजह से नहीं। 

विज्ञान के अनुसार काला रंग सबसे ज्यादा ऊर्जा सोखने वाला रंग है। 

वहीं, सफेद रंग सबसे ज्यादा ऊर्जा परिवर्तित करने वाला रंग होता है। 

किसी भी तरह की ऊर्जा को सबसे कम सोखता है।

इसी तरह हम नजर से बचने के लिए किसी देवालय से, साधु, संत और ऋषि द्वारा काला धागा बंधवाते हैं, क्योंकि उनकी सकारात्मक ऊर्जा ज्यादा समय तक काले रंग में रह सकती है। 

बच्चों के लिए मां ही भगवान होती हैं। 

सबसे ज्यादा वात्सल्य से भरी होती हैं, इसी लिए उनके हाथ का लगाया काला टीका बच्चों की रक्षा करता है। 

ये ही वजह है कि जब आप सत्संग, प्रवचन, देवदर्शन और किसी से शिक्षा प्राप्त करने जाए तो काली टोपी का इस्तेमाल करें तो आप वहां की सकारात्मक ऊर्जा को ज्यादा संचित कर पाते हैं और लंबे समय तक उपयोग कर पाते हैं।

जब हम किसी शोक सभा में जाते हैं तो सफेद कपड़े पहनकर जाते हैं। 

जिससे वहां की शोकाकुल भावनाएं हम में न आएं। 

डॉक्टर का एप्रीन भी सफेद रंग का होता है। 

जिससे बीमारियों के प्रभाव का उन पर कम हो। 

इसी तरह विमान और जहाज चलाने वाले ही सफेद कपड़े पहनते हैं। 

जिससे सूर्य के ताप का कम कम से कम अवशोषण हो।

इसी तरह जैन संत, साध्वियां, ईसाई धर्म में पादरी और नन, जो संसार से विरक्त होने के भाव से अपना जीवन जीना चाहते हैं। 

ऐसे लोगों को भी सफेद कपड़े पहनने का नियम होता है। 

जिससे संसार का मोह - माया, लोभ और लालच का उन पर प्रभाव न पड़े।

शनि देव को क्यों प्राप्त है क्रूर ग्रह का दर्ज़ा ?



सूर्यपुत्र  नमस्तेऽस्तु   भास्करेऽभयदायिनी 
अधोदृष्टे  नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोस्तुऽते।

नमो मंदगते तुभ्यं निष्प्रभाय नमो नमः
 तपनाज्जातदेहाय नित्ययोगधराय  च।।

शनिदेव साक्षात रुद्र हैं। उनकी शरीर क्रांति इन्द्रनील मणि के समान है। 

शनि भगवान के शीश पर स्वर्ण मुकुट, गले में माला तथा शरीर पर नीले रंग के वस्त्र सुशोभित हैं। 

शनिदेव गिद्ध पर सवार रहते हैं। 

हाथों में क्रमश: धनुष, बाण, त्रिशूल और वरमुद्रा धारण करते हैं। 

वे भगवान सूर्य तथा छाया ( सवर्णा ) के पुत्र हैं। 

वे क्रूर ग्रह माने जाते हैं। 

इनकी दृष्टि में क्रूरता का मुख्य कारण उनकी पत्नी का श्राप है। 

ब्रह्मपुराण के अनुसार बाल्यकाल से ही शनिदेव भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे। 

वे भगवान श्रीकृष्ण के अनुराग में निमग्न रहा करते थे। 

युवावस्था में उनके पिता श्री ने उनका विवाह चित्ररथ की कन्या से करवा दिया। 

उनकी पत्नी सती, साध्वी एवं परम तेजस्विनी थी।

एक रात्रि वह ऋतु स्नान कर पुत्र प्राप्ति की इच्छा लिए शनिदेव के पास पहुंची, पर देवता तो भगवान के ध्यान में लीन थे। 

उन्हें बाह्य संसार की सुधि ही नहीं थी। 

उनकी पत्नी प्रतीक्षा करके थक गई। 

उनका ऋतकाल निष्फल हो गया।\ 

इसलिए उन्होंने क्रुद्ध होकर शनिदेव को श्राप दे दिया कि आज से जिसे तुम देखोगे, वह नष्ट हो जाएगा।

ध्यान टूटने पर शनिदेव ने अपनी पत्नी को मनाया।

उनकी धर्मपत्नी को अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ किंतु श्राप के प्रतिकार की शक्ति उनमें नहीं थी, तभी से शनिदेव अपना सिर नीचा करके रहने लगे, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि किसी का अनिष्ट हो। 
 
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि ग्रह यदि कहीं रोहिणी भेदन कर दे, तो पृथ्‍वी पर 12 वर्षों का घोर दुर्भिक्ष पड़ जाए और प्राणियों का बचना ही कठिन हो जाए। 

शनि ग्रह जब रोहिणी भेदन कर बढ़ जाता है, तब यह योग आता है। 

यह योग महाराज दशरथ के समय में आने वाला था। 

जब ज्योतिषियों ने महाराज दशरथ को बताया कि यदि शनि का योग आ जाएगा तो प्रजा अन्न-जल के बिना तड़प- तड़पकर मर जाएगी। 

प्रजा को इस कष्ट से बचाने हेतु महाराज दशरथ अपने रथ पर सवार होकर नक्षत्र मंडल में पहुंचे। 

पहले तो उन्होंने नित्य की भांति शनिदेव को प्रणाम किया, इसके पश्चात क्षत्रिय धर्म के अनुसार उनसे युद्ध करते हुए उन पर संहारास्त्र का संधान किया। 

शनिदेव, महाराज दशरथ की कर्तव्यनिष्ठा से अति प्रसन्न हुए और उनसे कहा वर मांगो- महाराज दशरथ ने वर मांगा कि जब तक सूर्य, नक्षत्र आदि विद्यमान हैं, तब तक आप संकटभेदन न करें। 

शनिदेव ने उन्हें वर देकर संतुष्ट किया।

 || जय श्री शनिदेव प्रणाम आपको ||

पंडारामा प्रभु ( राज्यगुरु )
🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

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