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जय द्वारकाधीश
।। श्री यजुर्वेद और ऋग्वेद के अनुसार मकर संक्रांति के वहान फल ।।
शादी / लग्न
लग्न / शादी की सबसे अच्छी तारीख खोजने के लिए दोनों कुंडलियों का मिलान कैसे किया जाता है?
यजुर्वेद के अनुसार और ऋषियों ने अपने अनुभव से यह तय किया कि पुरुष और स्त्री के जन्मक्षरो के आधार पर से ही दोनों लड़का और लड़की का पूर्ण जीवन के सभी पासाओ का निरीक्षण करने का अनिवार्य बन जाता है।
पुरुष और स्त्री की जन्म कुंडली पर से लग्न स्थान - सप्तम स्थान दोनों का शारीरिक और लग्न जीवन का सुख दुख का विचार किया जाता है ।
उसके बाद दुतीय स्थान - अष्टम स्थान से दोनों की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखा जाता है ।
तृतीय स्थान - नवम स्थान से दोनों के धार्मिक प्रवृत्ति और पारिवारिक रिश्तेदार लोगो के बारे में विचार किया जाता है ।
पंचम स्थान - अगियार में स्थान से संतान आवक की संपति का विचार किया जाता है ।
छठ्ठा स्थान - बारमे स्थान से सङ्गा सबंधी हेतु मित्रो और शुत्रु आवक जावक का विचार किया जाता है ।
उदाहरण कुंडली :-
यह लड़का की जन्म डेटा लिस्ट है ।
जन्म तारीख : 09/10/1981
जन्म समय : 20/30
जन्म स्थान : अमदावाद गुजरात
लग्न - 02 /सूर्य - 06 / चंद्र - 11 / मंगल - 04 / बुध - 06 / गुरु - 06 / शुक्र - 08 / शनि - 06 / राहु - 04 / केतु - 10
यह लड़की की जन्म डेटा लिस्ट है ।
जन्म तारीख : 30/12/1980
जन्म समय : 04 /10 सुबह
जन्म स्थान : जाम खंभलिया गुजरात
लग्न - 07 / सूर्य - 09 / चंद्र- 06 /मंगल - 10 / बुध - 09 / गुरु - 06 / शुक्र - 08 / शनि - 06 / राहु - 04 / केतु - 10
यह लड़का और लड़की का ही की कुंडली है ।
आज यह लड़का और लड़की पति पत्नी के रूप में अच्छा लग्न जीवन के निर्माण कर रहा है और लड़का के माता पिता को भी पालन पोषण सेवा चाकरी अच्छा तरह से ही कर रहा है ।
लड़का और लड़की की जन्म कुंडली से ही दोनो का नक्षत्रों में कुछ नक्षत्र तो एक - दूसरे को बहुत अधिक सहयोग करते हैं और कुछ नक्षत्र एक - दूसरे को बिल्कुल सहयोग नहीं करते।
गुण - मिलाने की पद्धति का मुख्य आधार नक्षत्रों की परस्पर शत्रुता या मित्रता है।
उदाहरण ; -
यदि पुरुष का अश्विनी नक्षत्र हो और स्त्री का भरणी नक्षत्र हो तो 34 गुण मिलते हैं।
इसी भांति उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र का पुरुष हो और पूर्वाफाल्गुनी की स्त्री हो तो 35 गुण मिलते हैं।
हस्त नक्षत्र का पुरुष हो और मृगशिरा नक्षत्र के अंतिम चरणों में स्त्री का जन्म हुआ हो तो 34 गुण मिलते हैं।
दूसरी तरफ उत्तराषाढ़ा में पुरुष हो और मघा में स्त्री का जन्म हो तो साढ़े तीन गुण मिलते हैं।
चित्रा नक्षत्र में पुरुष का जन्म हो और भरणी नक्षत्र में स्त्री का जन्म हो तो केवल 4 गुण मिलते हैं।
प्राचीन भारतीय आचार्यों ने सांख्यिकीय आधार पर अनुसंधान करके एक ऐसी सारिणी का आविष्कार कर लिया था ।
जिसमें एक व्यक्ति के नक्षत्र का दूसरे जातक के जन्म नक्षत्र से मिलान करने के लिए सामग्री उपलब्ध थी।
आज यह सारिणी हर पंचाङ्ग में उपलब्ध रहती है।
भारतीय ज्योतिष में शामिल गिए गए सभी नक्षत्रों की परस्पर मेलापक सारिणी आज सहज उपलब्ध है।
परन्तु स्त्री-पुरुष के विवाह के पश्चात उनका वैवाहिक जीवन सफल सिद्ध हो इसके लिए केवल नक्षत्रों के आधार पर मेलापन पर्याप्त नहीं है ।
उसमें कुछ और तथ्यों का समावेश और परीक्षण किया जाना आवश्यक है।
अष्टकूट गुण मिलान:-
अष्टकूट गुण मिलान में 8 गुण समूह हैं ।
जिन्हें समन्वित रूप से विचार करके मेलापन किया जाता है।
इनमें वर्ण को एक गुण,
वश्य के 2 गुण,
तारा के 3 गुण,
योनि के 4 गुण,
ग्रहमैत्री 5 गुण,
गण के 6 गण,
भकूट के 7 एवं नाड़ी के 8 गुण माने गए हैं।
दक्षिण भारत में दसकूट पद्धति में 10 आधार हैं ।
जिनके आधार पर गुण मेलापन किया जाता है।
इनके नाम है ।
दिन (भाग्य),
गण (संपत्ति),
महेन्द्रम (परस्पर प्रेम),
स्त्रीदीर्घम् (सामान्य शुभत्व),
योनि (प्रणय सुख),
राशि (पारिवारिक उन्नति),
राश्याधिपति (धन-धान्य),
वश्य (संतान),
रज्जु (वैवाहिक दीर्घता),
वेध (पुत्र प्राप्ति) इसके अलावा पुरुष - स्त्री नक्षत्र, गोत्र व वर्ण भी दक्षिण भारत में देखे जाते हैं।
उत्तर भारत में अष्टकूट गुण मिलान में वर्ण से कार्यक्षमता, वश्य से प्रधानता, तारा से भाग्य, योनि में मानसिकता, ग्रहमैत्री से सामंजस्य, गण से गुण प्रधानता, भकूट से प्रेम और नाड़ी दोष से स्वास्थ्य देखा जाता है।
आजकल लोग नाड़ी दोष का समीकरण रक्त के आर.एच. ( -या+ ) से करने लगे हैं।
भकूट और नाड़ी दोष में जाति वैशिष्ट्य के आधार पर भी भेदाभेद किया जाता है।
मैं नक्षत्रों के कुछ ऐसे जोड़े लिख रहा हूँ ।
जिनमें 30 या 30 से अधिक गुण मिलते हैं।
भरणी - अश्विनी 33-34
पुनर्वसु - भरणी 31 ।।
शतभिषा-कृत्तिका 31 ।।
मृगशिरा-रोहिणी 36
पूर्वाभाद्रपद-रोहिणी 30 ।।
हस्त-मृगशिरा 34
पुनर्वसु-मृगशिरा 31 ।।
मघा-पूर्वाफाल्गुनी 30
अनुराधा-उत्तराफाल्गुनी 31 ।।
आर्द्रा-हस्त 33
ऐसे कुछ और भी जोड़े हैं, जिनमें गुणों की संख्या 25 से कम नहीं है।
उन जोड़ो की संख्या भी 15 से कम नहीं है।
जब लड़का और लड़की के जन्म कुंडली के बाद जब लग्न की तारीख पक्की करनी होती है तब उसी समय मे भी लड़का की जन्मकुंडली पर सूर्य पावर फूल डिग्री पर गोचर के सूर्य के साथ मित्र क्षेत्री में सबंध हो और गोचर का सूर्य लड़का को लग्न के तारीख के दिन उच्च प्रबलता स्थान पर होना जरूरी है ।
यह ही ऊपर का ही जन्म कुंडली वाले लड़का और लड़की के शादी के तारीख का डेटा लिस्ट है ।
शादी / लग्न तारीख के डेटा लिस्ट :
लग्न तारीख : 25/01/2007
लग्न समय : 12/00 दुपोर
लग्न स्थान : राजकोट गुजरात
लग्न -01 /सूर्य - 10 / चन्द्र - 01 / मंगल - 09 / बुध - 10 / गुरु - 08 / शुक्र - 11 / शनि - 04 / राहु - 11 / केतु - 05
इस दोनों लड़का लड़की के अच्छा जीवनसाथी धर संसार के फल स्वरूप प्रथम ही पुत्र संतान की प्राप्ति ।
इन दोनों के पुत्र का डेटा लिस्ट :
जन्म तारीख : 09/10/2008
जन्म समय : 0746 सुबह
जन्म स्थान : अमदावाद गुजरात
लग्न - 07/ सूर्य - 06 / चन्द्र - 10 / मंगल - 07 / बुध - 06 / गुरु - 09 / शुक्र - 07 / शनि - 05 / राहु - 10 /केतु - 04
लग्न का तारीख पक्का करने में चन्द्र,गुरु,सूर्य इन तीनों का बल देखकर लग्न रखा जाता है।
जब कुण्डली मिलान के बाद त्रिबल शुद्धि के हिसाब से विवाह का लग्न की तारीख देते हैं।
जिसमें भद्रा,मृत्यु बाण आदि भी देख कर सब विचार किया जाता है ।
जिस दिन तारीख को विवाह लग्न रखना होगा उसके दिन तारीख के चन्द्र राशि के आधारित मुहूर्त रखा जाएगा ।
विवाह मुहूर्त का विचार करते समय त्रिबल का विचार करना अत्यंत आवश्यक माना जाता है।
त्रिबल अर्थात तीन बल इसमें हम सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति का बल देखते हैं ।
त्रिबल में वर के लिए सूर्य का बल, कन्या के लिए बृहस्पति ( गरू ) का बल और वर - कन्या दोनों के लिए चंद्रमा बल पर विचार किया जाता है.
स्त्रीणां गुरुबलं श्रेष्ठं पुरुषाणां रवेर्बलम।
तयोश्चन्द्रबलं श्रेष्ठमिति गर्गेण निश्चितम।।
यदि मिलान में सूर्य, चंद्रमा तथा बृहस्पति का बल कुछ कम या पूर्ण नहीं हो तो विवाह नहीं किया जाता है।
गुरू को जीवन एवं भाग्य का कारक माना जाता है ।
चंद्रमा धन एवं मानसिक शांति प्रदान करता है तथा सूर्य तेज प्रदान करने का कार्य करते हैं ।
इस लिए यदि विवाह के समय यह ग्रह पूर्ण अनुकूल हों तो वर एवं वधु का आने वाला जीवन सूख पूर्वक व्यतीत होता है ।
वधु के लिए गुरु एवं चंद्रमा का बल और पुरुष के लिए सूर्य तथा चंद्रमा के बल का विचार किया जाता है ।
यह तीनों बल अत्यंत आवश्यक माने जाते हैं ।
शरीर एवं धन का संबंध पुरुष से बनता है ।
और वही बुद्धि का बल ही इन्हें नियंत्रित करने में भी सक्षम बनता है ।
इस लिए कन्या के लिए गुरू का बल देखा जाता है ।
क्योंकि शरीर और धन के संवर्धन में गुरु की महत्वपूर्ण भूमिका होती है ।
यदि गृहलक्ष्मी का बुद्धि बल श्रेष्ठ है तो गृहस्थ जीवन सुखद रह पाएगा ।
त्रिबल विचार के लिए वर - वधु की जन्म राशि से विवाह के समय गुरू - सूर्य तथा चंद्र जिन राशियों में विचरण कर रहे हैं ।
वहां तक गिनती की जाती है ।
जैसे पुरूष के लिए सूर्य का विचार करने हेतु देखते हैं कि उसकी चंद्र राशि से वर्तमान राशि में गतिशील सूर्य यदि गिनती करने पर चौथे, आठवें या बारहवें स्थान में आता है तो इस समय विवाह का त्याग करना उचित होता है ।
यदि पहले, दूसरे, पांचवें, सातवें या नवें स्थान में सूर्य स्थित हो तो सूर्य का दान और पूजादि करके विवाह किया जा सकता है।
यदि सूर्य तीसरे, छठे, दसवें या ग्यारहवें स्थान में हों तो विवाह का होना बहुत शुभप्रद माना जाता है।
कन्या की चंद्र राशि से गोचर का गुरू यदि चौथे, आठवें या बारहवें स्थान में भ्रमण कर रहा है तो विवाह नहीं करना चाहिए व ऎसे समय का विवाह के लिए त्याग करना ही उचित होता है ।
इसके अतिरिक्त यदि पहले, तीसरे, छठे या दशवें स्थान में गुरू हों तो उसकी पूजा एवं दान कराके ही विवाह का विचार शुभकारक भी होता है ।
यदि दूसरे, पांचवे, सातवें, नौवें या ग्यारहवें स्थान में गुरू हों तो विवाह करना शुभप्रद माना जाता है।
चंद्र विचार के लिए वर एवं वधु की चंद्र राशि से गोचर का चंद्रमा यदि चौथे, आठवें या बारहवें स्थान में पड़े तो अशुभ माना जाता है ।
अन्य सभी स्थानों पर चंद्रमा के गोचर को विवाह के लिए शुभ माना जाता है.
सूर्य - चंद्र तथा गुरू तीनों ही विवाह के समय यदि चौथे, आठवें या बारहवें स्थान में भ्रमण कर रहे हों तो अशुभ होते हैं ।
इस समय विवाह नहीं करना चाहिए।
कुछ ज्योतिषाचार्यों के अनुसार वर के लिए चंद्रमा को बारहवें में शुभ मानते हैं ।
लेकिन कन्या के लिए बारहवां चंद्रमा पूर्ण रुप से निषिद्ध माना गया है ।
इसी प्रकार त्रिबल में सूर्य - चंद्र तथा गुरू का विचार करते हुए ग्यारहवां स्थान सर्वथा शुभ माना जाता है।
भावी वर एवं वधु की पत्रिका के आधार पर गोचर में ग्रहों की क्या स्थिति है उसे इस सारणी के आधार पर देखा जा सकता है।
त्रिबल पूजा शुद्ध पूज्य नेष्ट : -
वर की राशि से सूर्य :-
3, 6, 10, 11 1, 2, 5, 7, 9 4, 8, 12
कन्या की राशि से गुरू :-
2, 5, 7, 9, 11 1, 3, 6, 10 4, 8, 12
दोनों की राशि से चंद्र : -
3, 6, 7, 10, 11 1, 2, 5, 9, 11 4, 8
जब इस मे लड़की की जन्मकुंडली के अनुशार गुरु शुभ फल के साथ गोचर का गुरु मित्र क्षेत्री फल दायक जरूरी है ।
वही लग्न के तारीख के समय लड़की को गुरु मित्र क्षेत्री उच्च फल दायक है कि नही वही भी देखना अनिवार्य है ।
लड़का और लड़की के जन्मकुंडली के चन्द्र गोचर के चंद्र और लग्न के दिन का चन्द्र शुभ नक्षत्र के साथ साथ दोनों को दो अंक का पुष्टि कारक जरूरी है ।
ये ही लड़का और लड़की दोनों ही लड़का के माता पिता के साथ अच्छा धर संसार लग्न जीवनसाथी से जीवन गुजार रहे है ।
!!!!! शुभमस्तु !!!
🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
श्री सरस्वति ज्योतिष कार्यालय
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Satvara vidhyarthi bhuvn,
" Shri Aalbai Niwas "
Shri Maha Prabhuji bethak Road,
JAM KHAMBHALIYA - 361305 (GUJRAT )
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏