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जय द्वारकाधीश
।। श्री सामवेद ऋग्वेद और अथर्वेद के अनुसार सूर्य किरण चिकित्सा पद्धति मकर संक्रांति के वहान फल ।।
हमारे सामवेद ऋग्वेद और अथर्वेद में बहुत इस प्रकार से सूर्य के किरण द्वारा चिकित्सा पद्धति का वर्णन बताया गया है।
हमारे सूर्य के किरणों से हर नाना प्रकार के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं।
वाष्प स्नान से जो लाभ होता है वही लाभ धूप स्नान से होता है।
धूप स्नान से रोम कूप खुल जाते हैं और शरीर से पर्याप्त मात्रा में पसीना निकलता है और शरीर के अन्दर का दूषित पदार्थ गल कर बाहर निकल जाता है।
जिससे स्वास्थ्य सुधर जाता है।
जिन गायों को बाहर धूप में घूमने नहीं दिया जाता है ।
और सारे दिन घर में ही रख कर खिलाया - पिलाया जाता है ।
उनके दुग्ध में विटामिन डी विशेष मात्रा में नहीं पाया जाता है।
उदय काल का सूर्य निखिल विश्व का प्राण है।
प्राणःप्रजानामुदयत्येष सूर्यः प्राणोपनिषद् 1 / 8 सूर्य प्रजाओं का प्राण बन कर उदय होता है।
हमारे अथर्ववेद में सूर्य किरणों से रोग दूर करने की चर्चा है।
अथर्ववेद काँड 1 सूक्त 22 में-
अनुसूर्यमुदयताँ हृदयोतो हरिमा चते।
गौ रोहितस्य वर्णन तेन त्वा परिद्धयसि॥ 1॥
अर्थ- हे रोगाक्राँत व्यक्ति।
तेरा हृदय धड़कन, हृदयदाह आदि रोग और पाँडुरोग सूर्य के उदय होने के साथ ही नष्ट हो जायं।
सूर्य के लाल रंग वाले उदयकाल के सूर्य के उस उदय कालिक रंग से भरपूर करते हैं।
इस मंत्र में सूर्य की रक्त वर्ण की किरणों को हृदय रोग के नाश करने के लिए प्रयोग करने का उपदेश है।
सूर्य किरण चिकित्सा के अनुसार कामला और हृदयरोग के रोगी को सूर्य की किरणों में रखे लाल काँच के पात्र में रखे जल को पिलाने का उपदेश है।
“परित्वा रोहितेर्वर्णेदीर्घायुत्वाय दम्पत्ति।
यथायमरपा असदथो अहरितो भुवत्॥ 2॥
अर्थ- हे पाँडुरोग से पीड़ित व्यक्ति।
दीर्घायु प्राप्त कराने के लिए तेरे चारों ओर सूर्य की किरणों से लाल प्रकाश युक्त आवरणों में तुझे रखते हैं ।
जिससे यह तू रोगी पाप के फलस्वरूप रोग रहित हो जाय और जिससे तू पाँडुरोग से भी मुक्त हो जाय।
ऐसे रोगियों को नारंगी, सन्तरे, सेब, अंगूर आदि फलों को खिलाने तथा गुलाबी रंग के पुष्पों से विनोद कराना भी अच्छा है।
या रोहिणी दैवत्या गावो या उत रोहिणीः।
रुपं रुपं वयोवयस्तामिष्ट्रवा परिदध्यसि॥ 3॥
अर्थ- जो देव, प्रकाश सूर्य की प्रातःकालीन रक्त वर्ण की किरणें हैं और जो लाल वर्ण की कपिला गायें हैं या उगने वाली औषधियाँ हैं ।
उनके भीतर विद्यमान कान्तिजनक चमक को और दीर्घायु जनक उन द्वारा तुझको सब प्रकार से परिपुष्ट करते हैं।
हृदयरोग के सम्बन्ध में वाव्यटूट अष्ठग संग्रह हृदय रोग निदान अ. 5 में लिखते हैं ।
पाँच प्रकार का हृदय रोग होता है वातज, पितज, कफज, त्रिदोषज और कृमियों से।
इनके भिन्न भिन्न लक्षण प्रकट होते हैं।
इसी प्रकार पाँडुरोग का एक विकृत रूप हलीमक है।
उसमें शरीर हरा, नीला, पीला हो जाता है।
उसके सिर में चक्कर, प्यास, निद्रानाश, अजीर्ण और ज्वर आदि दोष अधिक हो जाते हैं।
इनकी चिकित्सा में रोहिणी और हारिद्रव और गौक्षीर का प्रयोग दर्शाया गया है।
रोहित रोहिणी, रोपणाका, यह एक ही वर्ग प्रतीत होता है।
हारिद्रव हल्दी और इसके समान अन्य गाँठ वाली औषधियों का ग्रहण है।
शुक भी एक वृक्ष वर्ग का वाचक है।
अथर्ववेद काण्ड 6, सूक्त 83 में गंडमाला रोग को सूर्य से चिकित्सा करने का वर्णन है।
अपचितः प्रपतत सुपर्णों वसतेरिव।
सूर्यः कृणोतु भेषजं चन्द्रमा वो पोच्छतु॥
(अथर्व. 6। 83।1)
अर्थ- हे गंडमाला ग्रन्थियों। घोंसले से उड़ जाने वाले पक्षी के समान शीघ्र दूर हो जाओ।
सूर्य चिकित्सा करे अथवा चन्द्रमा इनको दूर करे।
यहाँ सूर्य की किरणों से गंडमाला की चिकित्सा करने का उपदेश है।
नीले रंग की बोतल से रक्त विकार के विस्फोटक दूर होते हैं।
यही प्रभाव चंद्रालोक का भी है।
रात में चन्द्रातप में पड़े जल से प्रातः विस्फोटकों को धोने से उनकी जलन शान्ति होती है और विष नाश होता है।
एन्येका एयेन्येका कृष्णे का रोहिणी वेद।
सर्वासामग्रभं नामावीरपूनीरपेतन॥
(अथर्व. 6। 83। 2)
अर्थ- गंडमालाओं में से एक हल्की लाल श्वेत रंग की स्फोटमाला होती है, दूसरी श्वेत फुँसी होती है।
तीसरी एक काली फुँसियों वाली होती है।
और दो प्रकार की लाल रंग की होती है उनको क्रम से ऐनी, श्येनी, कृष्णा और रोहिणी नाम से कहा जाता है।
इन सबका शल्य क्रिया के द्वारा जल द्रव पदार्थ निकालता हूँ।
पुरुष का जीवन नाश किये बिना ही दूर हो जाओ।
असूतिका रामायणयऽपचित प्रपतिष्यति। ग्लोरितः प्र प्रतिष्यति स गलुन्तो नशिष्यति ॥
(अथर्व. 6।83।3)
अर्थ- पीव उत्पन्न न करने वाली गंडमाला, रक्तनाड़ियों के मर्म स्थान में होने वाली, ऐसी गंडमाला भी पूर्वोक्त उपचार से विनाश हो जायेगी।
इस स्थान से व्रण की पीड़ा भी विनाश हो जायेगी।
वीहि स्वामाहुतिं जुषाणो मनसा स्वाहा यदिदं जुहोमि। ।
(अथर्व. 6।83।4)
अर्थ- अपने खाने-पीने योग्य भाग को मन से पसन्द करता हुआ सहर्ष खा, जो यह सूर्य किरणों से प्रभावित जल, दूध, अन्नादि पदार्थ मैं देता हूँ।
सं ते शीष्णः कपालानि हृदयस्य च यो विधुः।
उद्यन्नादित्य रश्मिमिः शीर्ष्णो रोगमनीनशोंग भेदमशीशमः।।
(अथर्व. 9।8।22)
अर्थ- हे रोगी तेरे सिर के कपाल सम्बन्धी रोग और हृदय की जो विशेष प्रकार की पीड़ा थी वह अब शाँत हो गई है।
हे सूर्य! तू उदय होता हुआ ही अपनी किरणों से सिर के रोग को नाश करता है और शरीर के अंगों को तोड़ने वाली तीव्र वेदना को भी शाँत कर देता है।
इस प्रकार समस्त रोगों को सूर्य उदय होता हुआ अपनी किरणों से दूर करता है।
धूप स्नान करते समय रोगी का शरीर नग्न होना चाहिए।
जब सूर्य की किरणें त्वचा पर पड़ती है तो उससे विशेष लाभ होता है।
सिर को सदैव धूप लगने से बचाना चाहिए।
छाजन( एक्जिमा ) रोग में धूप स्नान से बहुत लाभ होता है।
यदि शरीर का कोई प्रधान अंग निर्बल हो गया हो, तो धूप स्नान से उन्हें लाभ होता है।
कुछ रोगों में धूप स्नान मना भी है यथा सभी प्रकार के ज्वर में।
इस तरह से वेदों में नैसर्गिक सूर्य क्रिया चिकित्सा का स्पष्ट वर्णन है।
आर्युवेद में सूर्य किरण चिकित्सा पद्धति दिलाती है हर बीमारी से मुक्ति : -
आर्युवेद में भी सूर्य किरण चिकित्सा पद्धति इस प्रकार की चिकित्सा है ।
जिसका उपयोग प्रत्येक व्यक्ति आसानी से अपने घर पर कर सकता है।
इससे व्यक्ति अपने शरीर को बीमार होने से बचा सकता है या अपनी बीमारी से मुक्ति पा सकता है।
सूर्य चिकित्सा के अपने सिद्धांत हैं जो कि पूर्णत: प्राकृतिक हैं।
आर्युवेद में क्या कहते हैं सूर्य किरण चिकित्सा पद्धति के सिद्धान्त : -
सूर्य विज्ञान के अनुसार रोगोत्पत्ति का कारण शरीर में रंगों का घटना-बढ़ना है।
सूर्य किरण चिकित्सा के अनुसार अलग-अलग रंगों के अलग - अलग गुण होते हैं|।
लाल रंग उत्तेजना और नीला रंग शक्ति पैदा करता है।
इन रंगों का लाभ लेने के लिए रंगीन बोतलों में आठ - नौ घण्टे तक पानी रखकर उसका सेवन किया जाता है।
मानव शरीर रासायनिक तत्वों का बना है।
रंग एक रासायनिक मिश्रण है।
जिस अंग में जिस प्रकार के रंग की अधिकता होती है शरीर का रंग उसी तरह का होता है।
जैसे त्वचा का रंग गेहुंआ, केश का रंग काला और नेत्रों के गोलक का रंग सफेद होता है।
शरीर में रंग विशेष के घटने - बढ़ने से रोग के लक्षण प्रकट होते हैं ।
जैसे खून की कमी होना शरीर में लाल रंग की कमी का लक्षण है।
सूर्य स्वास्थ्य और जीवन शक्ति का भण्डार है।
सूर्य किरणों के फ़ायदे : -
मनुष्य सूर्य के जितने अधिक सम्पर्क में रहेगा उतना ही अधिक स्वस्थ रहेगा।
जो लोग अपने घर को चारों तरफ से खिड़कियों से बन्द करके रखते हैं और सूर्य के प्रकाश को घर में घुसने नहीं देते वे लोग सदा रोगी बने रहते हैं ।
जहां सूर्य की किरणें पहुंचती हैं, वहां रोग के कीटाणु स्वत: मर जाते हैं और रोगों का जन्म ही नहीं हो पाता।
सूर्य अपनी किरणों द्वारा अनेक प्रकार के आवश्यक तत्वों की वर्षा करता है और उन तत्वों को शरीर में ग्रहण करने से असाध्य रोग भी दूर हो जाते हैं।
शरीर को कुछ ही क्षणों में झुलसा देने वाली गर्मियों की प्रचंड धूप से भले ही व्यक्ति स्वस्थ होने की बजाय बीमार पड़ जाए ।
लेकिन प्राचीन ग्रंथ अथर्ववेद में सुबह धूप स्नान हृदय को स्वस्थ रखने का कारगर तरीका बताया गया है।
इसमें कहा गया है कि जो व्यक्ति सूर्योदय के समय सूर्य की लाल रश्मियों का सेवन करता है उसे हृदय रोग कभी नहीं होता।
जैसा कि आप सब जानते ही होंगे कि सूर्य के प्रकाश में सात रंग होते हैं ।
उन सात रंगों में से प्रत्येक की अलग - अलग प्रकृति होती है।
यह एक अलग तरह का फ़ायदा पहुंचाती है।
इस बात को ध्यान में रख कर हम आपको उन सात रंगों के बारे में विशेष जानकारी दे रहे हैं ताकि आप उनसे लाभ ले सकें।
हमारे सूर्य के सातों रंगों की चिकित्सा के बारे में जानेंगे : -
1. लाल किरण : -
सूर्य रश्मि पूंज में 80% केवल लाल किरण होती है ।
ये गर्मी की किरण होती है, जिनको हमारा चर्म भाग 80% सोख लेता है ।
स्नायु मंडल को उत्तेजित करना इनका विशेष काम है|
लाल रंग गर्मी बढ़ता है व शरीर के निर्जीव भाग को चैतन्यता प्रदान करता है।
शरीर के किसी भाग में यदि गति ना हो तो उस भाग पर लाल रंग डालने से उसमें चैतन्यता आ जाती है।
लाल रंग से जोड़ों का दर्द, सर्दी का दर्द, सूजन, मोच, गठिया आदि रोगों मे लाभ मिलता है|
जिसकी पगतली ठंडी हो तो उसे लाल रंग के मोजे पहनने चाहिए।
शरीर में लाल रंग की कमी से सुस्ती अधिक होती है।
नींद ज़्यादा आती है पर भूख कम हो जाती है।
सूर्य तप्त लाल रंग के जल व तेल से मालिश करने से गठिया व किसी प्रकार के बाल रोग नहीं होते हैं।
सूर्य तप्त लाल रंग के जल से फोड़े फुंसी धोएं तो लाभ मिलता है।
विशेष सावधानी : -
1) जिस कमरे में लाल रंग का पेंट किया हो वहां भोजन ना करें।
लाल रंग का टेबल कवर बिछा कर भोजन ना करें, इससे पाचन बिगड़ जाता है।
2) केवल लाल रंग का सूर्य तप्त जल थोड़ा सा ही पिएं, ज़्यादा पीने से उल्टी व दस्त होने का डर रहता है।
2. नारंगी किरण : -
यह रंग भी गर्मी बढ़ाता है।
यह रंग दमा रोग के लिए रामबाण है।
दमा, टीबी, प्लीहा का बढ़ना, आंतों की शिथिलता आदि रोगों में नारंगी किरण तप्त जल 50 सी. सी. दिन में दो बार देने से लाभ मिलता है।
लकवे में नारंगी किरण तप्त तेल से मालिश करने से लाभ मिलता है।
3. पीली किरण : -
पीला रंग बुद्धि, विवेक व ज्ञान की वृद्धि करने वाला है।
हमारे ऋषि मुनि इसी कारण पीले कपड़े पहनते थे।
पेट में गड़बड़, विकार, क्रमी रोग, पेट फूलना, कब्ज, अपच आदि रोगों में पीली किरण द्वारा सूर्य तप्त जल देने से लाभ मिलता है।
पानी की मात्रा 50 सी. सी. दिन में 2 बार दें।
4. हरी किरण : -
इसका स्वभाव मध्यम है।
यह रंग आंख व त्वचा के रोगों में विशेष लाभकारी है।
यह रंग भूख बढ़ाता है, हरा रंग दिमाग़ की गर्मी शांत करने व आंखों की ज्योति बढ़ाने में रामबाण है।
समय से पहले सफेद हो रहे बालों में अगर हरी किरण द्वारा सूर्य तप्त तेल से मालिश करें तो आराम होगा।
सिर व पांव मे मालिश करने से नेत्र रोग नहीं होते हैं व नींद अच्छी आती है।
कान के रोगों में हरे तेल की 4 - 5 बूंदें डालने से लाभ होता है।
जिन्हें खुजली हो, फोड़े फुंसी हो उन्हें हरे रंग के कपड़े पहनने चाहिए।
5. आसमानी किरण : -
इनमें चुंबकीय व विद्युत शक्ति होती है।
यह सब रंगों में बेस्ट रंग है, यह रंग शांति प्रदान करता है।
भगवान राम व कृष्ण भी यही रंग लिए हुए थे।
आसमानी रंग जितना हल्का होता है उतना ही अच्छा होता है।
टॉन्सिल या गले के रोग में आसमानी रंग का सूर्य तप्त जल दिन में 50 सी. सी. दो बार देने से लाभ मिलता है।
अस्थि रोग या गठिया में इस जल से भीगी पट्टियां बांधें तो लाभ होगा।
इस रंग के तेल की मालिश से शरीर मजबूत व सुंदर बनता है।
स्वस्थ मानव भी अगर यह जल पिए तो टॉनिक का काम करता है।
मधुमक्खी, बिच्छू के काटने पर उस स्थान को आसमानी रंग से धोएं तो लाभ होगा।
शरीर में सूजन हो तो आसमानी रंग के कपड़े पहनें।
6. नीली किरण : -
इस रंग की कमी से पेट में मरोड़, आन्त्रसोध व बुखार होता है।
इसमें नीली किरण का सूर्य तप्त जल 50 सी. सी. दिन में दो बार दें, लाभ होगा।
फोड़े फुंसी को इस जल से धोने पर उनमें पस नहीं पड़ता है।
इस जल से कुल्ले करने पर टॉन्सिल व छालों में लाभ मिलता है।
इस रंग के तेल से सिर में मालिश करने पर बाल काले व मुलायम बनते हैं।
सिर दर्द नहीं होता है और दिमाग़ को ताक़त मिलती है।
स्मरण शक्ति तेज होती है।
7. बैंगनी किरण : -
यह किरण शीतल होती है।
इस रंग की कमी से शरीर में गर्मी बढ़ जाती है।
हैजा, हल्का ज्वर व परेशानी रहती है।
बैंगनी किरण से बना सूर्य तप्त जल रैबीज के रोगी को 50 सी. सी. दिन में 2 बार देने से लाभ मिलता है।
टी. बी. के रोगी को भी इस जल से लाभ मिलता है।
नीली किरण वाले जल से बुद्धि बढ़ती है, दिमाग़ शांत रहता है।
शरीर में इस रंग से बने तेल की मालिश से नींद अच्छी आती है व थकान दूर होती है।
सूर्य की किरण से सम्बंधित कुछ अन्य महत्वपूर्ण जानकारी : -
सूर्य किरण चिकित्सा प्रायः चार माध्यमों से की जाती है ।
1. : पानी द्वारा भीतरी प्रयोग
2. : तेल द्वारा बाहरी प्रयोग
3. : सांस द्वारा
4. : सीधे ही किरण द्वारा
सूर्य की किरण में सात रंग होते हैं किंतु मूल रंग तीन ही होते है। : -
1. : लाल
2. : पीला
3. : नीला
सूर्य चिकित्सा इन रंगों की सहायता से की जाती है। : -
1. : नारंगी ( लाल, पीला, नारंगी में से एक )
2. : हरा रंग
3. : नीला ( नीला, आसमानी, बैंगनी में से एक )
सूर्य तप्त ( सूर्यतापी ) जल तैयार करने की विधि : -
साफ कांच की बोतल में साफ ताज़ा जल भरकर लकड़ी के कार्क से बंद कर दें।
बोतल का मुंह बंद करने के बाद उसे लकड़ी के पट्टे पर रख कर धूप में रखें।
6 - 7 घंटे बाद सूर्य की किरण के प्रभाव से सूर्य तप्त होकर पानी दवा बन जाता है और रोग निरोधक तत्वों से युक्त हो जाता है।
चाहें तो अलग - अलग बोतल में पानी बनाएं पर ध्यान रहे कि एक रंग की बोतल की छाया दूसरे रंग की बोतल पर ना पड़े।
धूप में रखी बोतल गरम हो जाने से उसमें खाली भाग पर भाप के बिंदु या बुलबुले दिखने लगें तो समझ जाएं कि पानी दवा के रूप में उपयोग के लिए तैयार है।
धूप जाने से पहले लकड़ी के पट्टे सहित उसे घर में सही जगह पर रख दें व सूर्य तप्त जल को अपने आप ठंडा होने दें।
यह पानी तीन दिन तक काम में लिया जा सकता है।
पुराने रोगों में पानी की खुराक 25 सी. सी. दिन में तीन बार लें।
तेज रोगों में 25 सी. सी. दो-दो घंटे के बाद, बुखार, हैजा में 25 सी. सी. 1 / 2 घंटे के अंतराल से देना चाहिए।
नारंगी रंग की बोतल का पानी नाश्ते या भोजन के 15 मिनट बाद लेना चाहिए।
नीले व हरे रंग का पानी खाली पेट लेना चाहिए ।
क्योंकि इसका काम शरीर में जमा गंदगी बाहर निकलना व खून साफ करना है।
यदि आप टॉनिक के रूप में सूर्य तप्त जल पीना चाहते हैं तो उसे सफेद कांच की बोतल में भरकर बनाएं।
इस पानी से बाल धोने से चमक आती है व बाल टूटते नहीं हैं।
सामान्य रूप से देखने पर सूर्य का प्रकाश सफेद ही दिखाई देता है पर वास्तव में वह सात रंगों का मिश्रण होता है।
कांच के त्रिपार्श्व से सूर्य की किरणों को गुजारने पर दूसरी ओर इन सात रंगों को स्पष्ट देखा जा सकता है।
किसी विशेष रंग की कांच की बोतल में साधारण पानी, चीनी, मिश्री, घी, ग्लिसरीन आदि तीन - चौथाई भरकर सूर्य की किरणें दिखाने से या धूप में रखने से उस कांच द्वारा सूर्य के प्रकाश से उसी रंग की किरणों को ग्रहण किया जाता है।
उसी रंग का तत्व और गुण पानी आदि वस्तु में उत्पन्न हो जाता है।
वह सूर्यतप्त ( सूर्य किरणों द्वारा चार्ज की गई वस्तु ) रोग - निवारण गुणों और स्वास्थ्यवर्धक तत्वों से युक्त हो जाती है।
इन सूर्यतापित वस्तुओं के उचित भीतरी और बाहरी प्रयोग से मनुष्य के शरीर में रंगों का संतुलन कायम रखा जा सकता है और अनेक प्रकार के रोगों को सहज ही दूर किया जा सकता है।
यही सूर्य किरण चिकित्सा है।
मनुष्य के जीवन मे प्रकृति की अमूल्य देन ही है सूर्य - किरणें : -
हमारे जीवन काल मे धूप और पाचन की क्रियाओं में बड़ा घनिष्ठ सम्बन्ध है।
यदि मनुष्य या अन्य किसी प्राणी पर प्रतिदिन सूर्य किरणें नहीं पड़तीं, तो उसकी पाचन और समीकरण शक्ति क्षीण हो जाती है।
स्फुरण ( Solar Radiation ) तथा मानव जीवन इन दोनों का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है।
हमारे जीवन का सम्बन्ध प्रकाश - शक्ति तथा उसके वर्ण - वैभव से है, न कि प्रोटीन, श्वेत सार, हाइड्रोजन, कार्बन अथवा उष्णाँक से।
आकाश और वायु - तत्व की भाँति प्रकाश-तत्व भी अत्यन्त सूक्ष्म है।
प्रकृति के हरे भरे प्रशस्त अंचल में हम जो नाना रंगों की चित्रपटी देखते हैं ।
यह सब सूर्य की सतरंगी किरणों की ही माया है।
प्रकाश में अन्तर्निहित रंगीनी केवल नेत्रों को ही सुन्दर प्रतीत नहीं होती प्रत्युत जीवन रंजक भी है।
सूर्य की किरणों का प्राणी जगत पर स्थायी प्रभाव पड़ा करता है।
सूर्य किरण चिकित्सा का यही मूलाधार है।
ग्लास या कांच की रंगीन बोतलों में पानी रखने से प्रकाश का प्रभाव भी बदलता रहता है और उसमें भाँति - भाँति के गुण उत्पन्न हो जाते हैं।
सूर्य की किरणों के रंग : -
चर्म चक्षुओं से सूर्य की किरणें श्वेत प्रतीत होती हैं ।
किन्तु वास्तव में ये सात रंगों की बनी हुई हैं।
सूर्य के इन सातों रंगों का रासायनिक प्रभाव पृथक - 2 होता है।
विभिन्न फलों तथा तरकारियों को प्रकाश तथा रंग नाना प्रकार के गुण प्रदान करता है।
इन रासायनिक गुणों के अनुसार हम पृथक भाजियों का प्रयोग करते हैं।
प्रकृति की तीन रचना में सबका कुछ न कुछ गुप्त प्रयोजन है।
वनस्पति जगत में प्रकाश तत्व के कारण ही नाना प्रकार के गुण, रंग, एवं रासायनिक तत्व सामने आते हैं।
सूर्य के किरणों का रंगीन फल तथा तरकारियों का प्रभाव : -
सूर्य के किरणों का रंगों के आधार पर हम फल तथा तरकारियों को निम्न वर्गों में विभाजित कर सकते हैं-
1. पीला रंग : -
पिला रंग से इस रंग वाले फलों का प्रभाव पाचन क्रिया पर बड़ा अच्छा पड़ता है ।
आमाशय और कोष्ठ के स्नायुओं को उत्तेजित करने में इसका विशेष महत्व है।
ये फल रेचक व पाचक होते हैं।
पेट की खराबियों में ये खासतौर पर काम में लाये जाते हैं।
इनमें कागजी नींबू, चकोतरा, मकोय, अनानास, खरबूजा, पपीता, बथुआ, अमरूद।
इनमें कार्बन, नाइट्रोजन या खनिज लवण प्रचुर मात्रा में होता है।
2. लाल रंग : -
लाल रंग में इस रंग वाले फलों में लोहा और पोटेशियम की मात्रा अधिक होती है।
नाइट्रोजन और ऑक्सीजन की भी पर्याप्त मात्रा होती है।
इस वर्ग में चुकन्दर, लालबेर, टमाटर, पालक, लालशाक, मूली इत्यादि रखें गये हैं।
3. नारंगी रंग : -
नारंगी रंग में इन फल तथा तरकारियों में चूना और लोहा विशेष रूप से पाया जाता है।
इस श्रेणी में नारंगी, आम, गाजर इत्यादि हैं।
4. नीला रंग : -
नीला रंग में इस रंग की श्रेणी में हम गहरा नीला और बैंगनी भी रखते हैं।
इन तरकारियों में ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, मैग्नीशियम तथा फास्फोरस अधिक होता है।
इस श्रेणी में जामुन फालसा, आलू बुखारा, बेल, सेब विशेष रूप से आते हैं।
5. हरे रंग : -
हरे रंग की तरकारियाँ शीतल प्रकृति की होती हैं, गुर्दों को हितकारी, पेट को साफ करने वाली और नेत्र तथा चर्म रोगों में लाभदायक सिद्ध होती है।
मनुष्य के शारीरिक अथवा मानसिक विकास में सूर्य किरणों द्वारा उत्पन्न उपरोक्त सभी रंगों के फल, शाक, भाजियों का संतुलन आवश्यक है।
यदि एक ही प्रकार के रंग का भोजन अधिक दिन तक लेते रहे तो वह रंग शरीर में अधिक हो जायेगा और रोग उत्पन्न हो सकता है।
अतः यथासंभव सभी रंगों का भोजन काम में लेना चाहिए।
व्यक्तिगत रंग - संतुलन स्थापित कर हम सामंजस्य स्थापित कर सकते हैं।
दैनिक जीवन में सूर्य किरणों का उपयोग : -
मनुष्य के लिए सूर्य का प्रकाश सर्वश्रेष्ठ एवं अकथनीय गुणकारी है।
हमारी आत्मा पर इसका प्रभाव इतना विकासपूर्ण होता है कि प्रायः हम अनुभव किया करते हैं कि अंधेरे में जैसे दम घुट रहा हो।
उजाले में रहने से आँतरिक द्वेष दूर होते और हृदय की खिन्नता मिटकर चित्त प्रसन्न होता है।
प्रकाश उत्साह, साहस और उत्सुकता का द्योतक है।
सूर्य स्नान : -
सूर्य में कीटाणुनाशक शक्तियाँ हैं अतः अधिक से अधिक धूप में रहने का अभ्यास करना चाहिए।
विदेशी लोगो ने ही हमारा वेदों पर से सूर्य की प्राण पोषक शक्तियों को ग्रहण करने के लिए आज के समय मे जब किसी भी अमेरिका और इंग्लैण्ड लोगो में सूर्य स्नान का बहुत रिवाज है।
विदेशी लोग समुद्र तट पर जब लोग सूर्य स्नान के लिए जाते हैं तो केवल जाँघिया के, अन्य पोशाक बिल्कुल उतार देते हैं, सूर्य की तेज किरणों में रेत पर लेट जाते हैं।
हमारे यहां भारत मे जो किसान मजदूर वर्ग शीतकाल , गर्मी बारिश के मौषम में उनका खेती के काम के साथ साथ सूर्य स्नान भी आसानी से कर रहे होते है ।
अनिद्रा में उपयोग : -
अनिद्रा में एनीमिया अर्थात् रक्त की कमी में सूर्य का प्रकाश अमृत-तुल्य है।
अनिद्रा क्षय तक उत्पन्न कर सकती है।
सूर्य - प्रकाश लेने से रुधिर की प्राणपोषक वायु बढ़ जाती है ।
गति में भी तीव्रता आ जाती है।
प्रकाश में श्वास क्रिया गहरी और धीमी हो जाती है।
इसके फलस्वरूप रात्रि में अच्छी नींद आती है।
रक्त की कमी : -
( एनीमिया ) में रोगी सरदर्द से बड़ा परेशान रहता है।
ऐसी दशा में सूर्य किरणें देने से लाभ होता है।
रक्तचाप : -
सूर्य किरणों का बढ़े हुए रक्त चाप में उपयोग करने से रक्तचाप में कमी आ जाती है।
सर्व साधारण के लिए भी यह उपयुक्त है कि वह 10 - 15 मिनट के लिए अवश्य धूप में बैठे।
सूर्य किरण के सेवन से वजन बढ़ जाता है।
रक्तचाप की सभी अवस्थाओं में किसी योग्य चिकित्सक के आदेशानुसार ही सूर्य - प्रकाश का सेवन करना चाहिए।
घाव - घावों को ठीक करने में : -
सूर्य का प्रकाश बड़ा आश्चर्यजनक सिद्ध हुआ है ।
क्योंकि रक्त में गति आ जाती है।
सूर्य की किरणों से दूषित कीटाणु नष्ट होते हैं।
सूर्य किरण शरीर को पार कर जाती हैं और रुधिर में जीवाणुओं की अभिवृद्धि करती हैं।
इससे सब प्रकार की कमियाँ नष्ट होकर घाव अच्छा हो जाता है।
रोगी को थोड़ी देर तक रोज सर्वांग सूर्य - स्नान लेना चाहिए।
क्षय में सूर्य का चमत्कार : -
क्षय रोग में सूर्य किरणों से अत्यधिक लाभ होता है।
रुधिर में प्राण शक्ति का आविर्भाव होता है।
क्षय के रोगी को धूप में 10 से 20 मिनट तक बैठना चाहिये।
शरीर पर जितने कम कपड़े रहें उतना अच्छा है।
शरीर नंगा रहे तो सर्वोत्तम है।
आधुनिक चिकित्सक सूर्य किरण को क्षय के लिये महौषधि मानते हैं।
क्षय में सूर्य किरण का उपयोग करते हुए किसी योग्य चिकित्सक का आदेश लेना चाहिये।
साधारण जीवन में : -
सूर्य - स्नान बहुत महान उपयोगी है ।
प्रकृति की अमूल्य तथा अनुपम देन है।
छोटे - छोटे बच्चों का नित्य प्रति कुछ देर के लिए धूप में ही सेवन कराना चाहिये।
शीतकाल में उन्हें धूप में ही खेलने देना चाहिये।
गोद के शिशुओं को सूर्य किरणों में कुछ देर के लिए लिटाना चाहिए।
रोगियों के लिये सूर्य प्रकाश महौषधि है।
सूर्य स्नान से शरीर के रक्त में लोहे की मात्रा 2 प्रतिशत बढ़ जायेगी।
इसके लिए आप को लोह - प्रधान पदार्थ या लोह - तत्व बढ़ाने वाले भोजनों की आवश्यकता न पड़ेगी।
धूप - स्नान से शरीर में इतना प्रभावोत्पादक गुण उत्पन्न होता है ।
जो कि औषधि - प्रणाली के लिए सर्वदा अज्ञात ही है ।
उसकी किसी भी दवा में इतना प्रभावोत्पादक गुण कभी नहीं पाया जाता।
त्वचा के नीचे जो तत्व पहले से ही विद्यमान हैं ।
उसे सूर्य की किरणें तत्काल ही विटामिन डी. में परिणत कर देती हैं।
शरीर में चूने की कमी के कारण होने वाले रोगों का इलाज बड़ा सहज हैं।
वह है सूर्य - रश्मियों का उपयोग।
!!!!! शुभमस्तु !!!
🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Satvara vidhyarthi bhuvn,
" Shri Aalbai Niwas "
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏