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जय द्वारकाधीश.
केन्सर एक भयानक भीषणता ग्रहों और नक्षत्रो से दिखे...!
केन्सर एक भयानक भीषणता ग्रहों और नक्षत्रो से दिखे
केन्सर रोगों की बीमारी निविर्वाद भयानक और भीषण हे , इस लिए केन्सर वही केन्सर होता हे इस में एक एसी भी मान्यता हे केन्सर ( Cancer ) का अर्थ करचलो करकोटो होता हे, जिशमे उसका पंजा ( tentecles ) आया हवा किसी प्राणी को ते छोड़ता भी नही हे, इसे केन्सर मनुष्य को छोड़ता भी नही हे, उधाय जेसे रोग मनुष्य को अंदर से ही कोतर कर खता हे, और मनुष्य को बहुत खोखलो कर देता हे शरीर के अंग अंग में कहोवाट ( decay ) फेलाते हे,
केन्सर अर्वाचीन समय के देणगी हे, इस में ये रोग प्राचीन समय में नही था ऐसा मेरा कहेने का अर्थ नही हे , प्राचीन ज्योतिषाचार्यो और ऋशि मुनियो माशपेशियोकी अन्यमित विकृति के लक्षणों बहुत पूरी तरह से जनता था, इस लिए वही गांठ के रूप में दिखाय देते थे, इस रोग को अर्बुद या रकताबुर्द के नाम से ही दिखे देते हे, ये गाँठ बहुत झेरी होती हे, जब जन्म कुंडली में चन्द्र – शनि को विष योग कहा जाता हे वाही युति होति हे तो जातक को केन्सर होने का कारण भुत माना जाता हे,
परंतु सा प्रतकाल में जीवन जिने की अनैसग्रीक सैली और अनेक प्रकार के विरुद्ध आहार के सेवन, खान पान की विषमता, ( पान मसाला , जर्दा , सिगारेट , सुगन्धि सोपारी , और दारू , नशीला पदार्थो के सेवन ) और कुदरका नियम विरुद्ध वर्तन से केन्सर के प्रमोट करनेमे आगे पड़ता हिशा हे, इस लिए केन्सर प्राचीन काल जे ज्यादा अवार्चीन काल के समय जयादा दिखे देते हे
अभी के वैज्ञानिक युग में केन्सर के असान्ध्य रोग मानने में आता हे, समय सर योग्य उपचार से वाही नाबुत भी हो सकता हे, आज से लगभग ५० साल पहेले टी.बी. नाम का रोग को बहुत जिवलेने वाला कहेते हे, वाही भी इस समय में मिटा जाता हे, हाल में इस की जगा पर ये केन्सर आया हे,
केन्सर क्या हे ?
केन्सर कैसे होता हे ?
जब पृथ्वी की उत्पति हूइ थी तब से भूपुष्ट पर पर पदार्थ सज्ञंक और जिव सज्ञंक प्राणी पदार्थो के असित्व हिशा था, जिस में जिवसज्ञको – जिसमे जिव - चेतन था वाही प्राणी , वनस्पति , और मानव जाती में ( metabolism ) चयापचय की क्रिया होती हे, इस पचमहाभूत छोटा छोटा सुक्षमतीसुक्षम जीवत कोशो का बना हुवा हे, चयापचयकी क्रियामें कितना जिविंत कोशो के नाश भी होते हे तो उसकी जगा पर नया कोशो लेते हे, ये एक रेखाकित पक्रिया होती हे, लेकिन जिविंत कोशो की वर्धि रेखा में होने से वजा से अनियमित स्वरुपे एक दुशरे के उपरा उपरी होने से वह सोजा या गांठ के रूप में दिखे देते हे ये मॉसपेशी के जिवंत कोशो के असामान्य असमान और बेकाबू वर्धि की घटना से केन्सर का जन्म होता हे
वही गांठ शुरू शुरू में बहुत निरुपद्रवि होने से हर मनुष्य के ध्यान इस में नहीं जता बाद में आमुक समय के बाद गांठ में वर्धि होने से गाँठ बहुत झेरी और दुखद रूप में हो जाती हे, वह के बाद गांठ बहुत आगे के स्टेज पर पहुच चुकी होती हे, गांठ के बाहरी दर्शन में जो देखे तो इस रोग जयादा गरदन , छाती या स्तन पर सहेज ज्यादा दबाने से परख हो सकती हे , अन्न्नली, आतरडा, जठर या फेफ्सा में आंतरिक गांठ की प्रक्रिया तुर्ताज जल्दी परख नही हो सकती, इस में और गांठो रक्त स्त्राव वाली भी होती हे,
शारीर में होने वाली सब गांठो केन्सर की नही होती केन्सर के बायोलोजिकल मुलभुत कर्ण लोही की अशुधि एषा होता हे
केन्सर होने के ग्रहों के योग:-
केन्सर होने में किश ग्रहो, राशिओ, नक्षत्रो का जयादा भाग होते हे, वाही देखे तो जन्मलग्न या चन्द्रलग्न में होने वाली जल राशिओ ( कर्क , वर्चिक , और मीन ) हे,
चन्द्र – मगल का लोही के ऊपर प्रभुत्व होता हे , लोही के बिगाड के लिए चन्द्र – मगल दूषित होता हे , जब शनि की युति या द्रष्टा में होते तब चन्द्र – शनि के विषयोग बनता हे और मगल - शनि के बंधन योग बनता हे , जब चन्द्र – शनि की युति हे तब गांठ उत्पन होती हे और जब शनि – मगल की बंधन योग में गांठ में रक्ताबुर्द बनता हे जब चन्द्र – राहू ग्रहण योग या मगल – राहू अगरक देवादार योग में गांठ में जहर फेलता हे वाही सदी गांठ में ही केन्सर के रूपांतर करता हे,
जब जन्मकुंडली , चन्द्रकुंडली , चालितकुंडली , नवमांसकुंडली और कसपकुंडली में देविशक्ति शुभ ग्रहों जेसे चन्द्र , बुध , गुरु , शुक्र के प्रबल शुभत्व वाली लाइफ गिविंग वितालिटी जयादा होने से सूर्य के शुभत्व केन्सर के सामना करने में रेसिस्ट ताकत पूरी पड़ता हे जब शुभ ग्रहो के प्रमाण कम होने से दूषित ग्रहों के बहुत ज्यादा प्रभाव होने से केन्सर होते हे, जब सूर्य पीड़ित कम बन जाता हे तब और शनि – मगल – राहू या बुध – मगल – राहू को केन्सर फेलाने में पूरी सवतंत्रता मिलती हे
शुभ ग्रहों और सूर्य के प्रभुत्व क्षीण होता हे और पाप ग्रहों के ग्रहों के वर्चस्व ज्यादा वधता हे
शनि – राहू - मगल या बुध – राहू – मगल के ६ ,८ , १२ और लग्न के साथ सबंध
बुध – रहू – मगल के रोग और देह स्थान साथै सधान इस में जयादा चन्द्र निर्बल होते हे तब गुरु भी बीगल जाता हे तब केन्सर होने की ज्यादा शक्यता रहेती हे,
जब चंडाल योग, कालसर्प योग, या ग्रहण योग और बंधन योग में अत्यत खराब होते हे तब झेरी गेस का भोग बहुत ज्यादा भाग भजते हे
किश अंग मे केन्सर दिखे देते हे :-
सामान्य रिते केन्सर होने का अन्य योग के साथ भाव ६ , ८ , १२ और लग्नेश , लग्नेश के चन्द्र – चंद्रेश राशियो में जे राशि ग्रह या नक्षत्र अत्यत दूषित होता हे तब इस के अंग में केन्सर होताहे
नक्षत्र सूचित अंग :-
अश्विनी –ठिचन , भरनी – शिर , कृतिका –नित्ब ,रोहिणी शांक्स , मृगशिश – आँख , आद्रा – खोपरी, मगज, किडनी, गर्भाशय ,.... विगेरे सब नक्षत्रो एक एक अंग पर बिराजमान होता हे,
दाखला नंबर १ :-
ल. ०४ / सु. ०१ / च. ०८ / म. १० / बू. १२ / गु. १२ / सु. १२ / श.०१ / रा. ०७ / के. ०१
लगने केन्सर परों जल राशि + कल सर्प योग ५ मु स्थान और सिह राशि गर्भाशय का घोतक पचमा स्थान में नीच का चन्द्र शनि ना अनुराधा नक्षत्र में बिराजमान हे वाही चन्द्र – शनि का सबंध – विषयोग – गांठ , शनि मगल की परस्पर द्रष्टि सबंध से जोडन होता हे इस लिए पचमेश मगल पर शनि की द्रष्टि राहू की शनि और निचका सूर्य पर द्रष्टि
इस लिए शनि द्रारा राहू + मगल के जोडन होते हे एषा इस में पचम स्थान और सिह राशि शनि +मगल + राहू से ही बहुत जयादा हानि देता हे लग्नेश चन्द्र दूषित षष्ठेश गुरु +व्ययेश बुध होता हे,
गुरु शनि का उतरा भाद्रपदा नक्षत्र में हे इस लिए षष्ठेश गुरु का राहू – चन्द्र – शनि के साथ बहुत घटा सबंध, लग्नेश + षष्ठेश + शनि +मगल +राहू का सकलन केन्सर करता हे सिह और पचम स्थान दूषित होने से इस जातक को गर्भाशय का केन्सर हूवा था..........., जय द्वारकाधीश ........., जय श्रीकृष्णा....... , हर हर महादेव ..........,
पंडित प्रभुलाल पी. वोरिया राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Shri Albai Nivas ", Near Mahaprabhuji bethak,
Opp. S.t. bus steson , Bethak Road,
Jamkhambhaliya - 361305 Gujarat – India
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