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Thursday, February 13, 2025

महा मास कृष्ण पक्ष से फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष पूनम तक ?

महा मास कृष्ण पक्ष से फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष पूनम तक ?

महा मास कृष्ण पक्ष से फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष पूनम तक ?

महा / फाल्गुन को आनंद और उल्लास का महीना कहा जाता है। 

सनातन धर्म में फाल्गुन माह को विशेष स्थान प्राप्त है। 

हिंदू पंचांग के अनुसार, वर्ष का अंतिम एवं बारहवां महीना होता है महा / फाल्गुन जो कि बेहद शुभ माना जाता है, विशेष रूप से शादी-विवाह, गृह प्रवेश और मुंडन आदि कार्यों के लिए। 

इस समय धरती दुल्हन की तरह सजी - धजी रहती है क्योंकि महा / फाल्गुन और वसंत मिलकर प्रकृति को सुंदर बनाते हैं। ज्योतिषी पंडारामा प्रभु राज्यगुरु के इस ख़ास ब्लॉग में हम महा / फाल्गुन माह से जुड़े रोमांचक तथ्यों के बारे में विस्तार से बात करेंगे जैसे कि इस दौरान कौन - कौन से व्रत - त्योहार मनाए जाएंगे? 








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इस माह में किन उपायों को करना चाहिए? क्या है इस माह का धार्मिक महत्व? 

इस मास में आपको क्या करना चाहिए और क्या करने से बचना चाहिए? 

ऐसी ही कई महत्वपूर्ण जानकारियों आपको इस लेख में मिलेगी, इसलिए अंत तक पढ़ना जारी रखें।


आपको बता दें कि महा / फाल्गुन माह को धार्मिक, वैज्ञानिक और प्राकृतिक रूप से एक विशेष दर्जा प्राप्त है। 

इस मास में वैसे तो अनेक व्रत एवं पर्व मनाए जाते हैं, लेकिन होली, महाशिवरात्रि जैसे त्योहार महा / फाल्गुन के महत्व को बढ़ा देते हैं। 

आइए अब बिना देर किये आगे बढ़ते हैं और जानते हैं कि 2025 में महा /  फाल्गुन माह कब से शुरू होगा, इस महीने की विशेषता और इस माह के बारे में सब कुछ।


महा /  फाल्गुन मास 2025 में कब से शुरू हो रहा है ?


महा / फाल्गुन मास का महत्व :


धार्मिक रूप से महा /  फाल्गुन मास को विशेष माना गया है क्योंकि इस दौरान कई बड़े पर्वों को मनाया जाता है। 

बात करें महा /  फाल्गुन माह के नाम की, तो इस मास का नाम महा / फाल्गुन होने के पीछे कारण यह है कि इस महीने की पूर्णिमा तिथि यानी कि फाल्गुन पूर्णिमा को चंद्रमा फाल्गुनी नक्षत्र में होता है इस लिए इसे महा /  फाल्गुन माह कहा जाता है। 

इस मास में भगवान शिव, विष्णु जी और श्रीकृष्ण की पूजा करना फलदायी होता है। 

एक तरफ, जहाँ महा / फाल्गुन में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। 

वहीं, इस माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर भगवान विष्णु को समर्पित आमलकी एकादशी का व्रत करने का विधान है। 

इस प्रकार, हम कह सकते हैं कि महा /  फाल्गुन माह में विधि - विधान से उपासना करने से भक्तजनों को भगवान शिव और विष्णु जी की कृपा प्राप्त होती है। 

सनातन धर्म में दान का विशेष महत्व होता है फिर चाहे वह माघ मास में हो या फाल्गुन मास में, इस बारे में भी हम विस्तार से बात करेंगे, लेकिन इससे पहले नज़र डालते हैं महा /  फाल्गुन माह के व्रत - त्योहारों पर।


महा / फाल्गुन मास 2025 कब से शुरू हो रहा है ?


जैसे कि हम आपको बता चुके हैं कि हिंदू कैलेंडर का अंतिम माह महा / फाल्गुन अपने साथ प्रकृति में सुंदरता लेकर आता है। 

बात करें वर्ष 2025 में महा / फाल्गुन मास की, तो इस साल महा / फाल्गुन माह का आरंभ 13 फरवरी 2025 को होगा और इसका समापन 14 मार्च 2025 को हो जाएगा। 

अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, यह महीना फरवरी या मार्च में आता है। 

महा / फाल्गुन को ऊर्जा और यौवन का महीना भी कहते हैं और ऐसी मान्यता है कि इस माह में वातावरण खुशनुमा हो जाता है और हर जगह नई उमंग छा जाती है।


महा / फाल्गुन मास में चंद्र पूजा से दूर होगा चंद्र दोष :


धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, चंद्र देव का जन्म महा / फाल्गुन मास में हुआ था इस लिए इस माह में चंद्रमा की पूजा - अर्चना करना शुभ माना जाता है। 

ऐसा कहा जाता है कि महा / फाल्गुन के महीने में चंद्र देव की आराधना से मानसिक समस्याओं का अंत होता हैं और इंद्रियों को नियंत्रित करने की शक्ति में भी बढ़ोतरी होती है। 

इस के अलावा, जिन जातकों की कुंडली में चंद्र दोष होता है, उनके द्वारा महा /  फाल्गुन माह में चंद्रमा की उपासना करने से चंद्र दोष का निवारण हो जाता हैं।


दिनांक   एवं    दिन      नक्षत्र तिथि   मुहूर्त का   समय :


13 फरवरी 2025, गुरुवार मघा प्रतिपदा सुबह 07 बजकर 03 मिनट से सुबह 07 बजकर 31 मिनट तक 

14 फरवरी 2025, शुक्रवार उत्तरा फाल्गुनी तृतीया रात 11 बजकर 09 मिनट  से सुबह 07 बजकर 03 मिनट तक

15 फरवरी 2025, शनिवार उत्तरा फाल्गुनी व हस्त चतुर्थी रात 11 बजकर 51 मिनट से सुबह 07 बजकर 02 मिनट तक

16 फरवरी 2025, रविवार हस्त चतुर्थी सुबह 07 बजे से सुबह 08 बजकर 06 मिनट तक 

18 फरवरी 2025, मंगलवार स्वाति षष्ठी सुबह 09 बजकर 52 मिनट से अगली सुबह  07 बजे तक

19 फरवरी 2025, बुधवार स्वाति सप्तमी, षष्ठी सुबह 06 बजकर 58 मिनट से सुबह 07 बजकर 32 मिनट तक 

21 फरवरी 2025, शुक्रवार अनुराधा नवमी सुबह 11 बजकर 59 मिनट से दोपहर 03 बजकर 54 मिनट तक 

23 फरवरी 2025, रविवार मूल एकादशी दोपहर 01 बजकर 55 मिनट से शाम 06 बजकर 42 मिनट तक

25 फरवरी 2025, मंगलवार उत्तराषाढ़ा द्वादशी, त्रयोदशी सुबह 08 बजकर 15 मिनट से शाम 06 बजकर 30 मिनट तक

01 मार्च 2025, शनिवार उत्तराभाद्रपद द्वितीया, तृतीया सुबह 11 बजकर 22 मिनट से अगली सुबह 07 बजकर 51 मिनट तक

02 मार्च 2025, रविवार उत्तराभाद्रपद,  रेवती तृतीया, चतुर्थी सुबह 06 बजकर 51 मिनट से रात 01 बजकर 13 मिनट तक

05 मार्च 2025, बुधवार रोहिणी सप्तमी रात 01 बजकर 08 मिनट से सुबह 06 बजकर 47 मिनट तक

06 मार्च 2025, गुरुवार रोहिणी सप्तमी सुबह 06 बजकर 47 मिनट से सुबह 10 बजकर 50 मिनट तक

06 मार्च 2025, गुरुवार रोहिणी, मृगशीर्ष अष्टमी रात 10 बजे से सुबह 06 बजकर 46 मिनट तक

7 मार्च 2025, शुक्रवार मृगशीर्ष अष्टमी, नवमी सुबह 06 बजकर 46 मिनट से रात 11 बजकर 31 मिनट तक

12 मार्च 2025, बुधवार माघ चतुर्दशी सुबह 08 बजकर 42 मिनट से अगली सुबह 04 बजकर 05 मिनट तक


श्रीकृष्ण की पूजा महा / फाल्गुन में क्यों की जाती है ? 


सिर्फ इतना ही नहीं, महा / फाल्गुन के महीने में प्रेम और खुशियों का पर्व होली भी मनाया जाता है। 

इसी माह में भगवान श्रीकृष्ण के तीन स्वरूप की पूजा का विधान है जो कि इस प्रकार हैं: बाल रूप, युवा रूप और गुरु कृष्ण के रूप में। 

ऐसी मान्यता है कि महा / फाल्गुन के महीने में जो जातक श्रीकृष्ण की पूजा सच्चे मन और भक्तिभाव से करता है, उसके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। 

जो दंपति संतान सुख प्राप्त करना चाहते हैं, उनके लिए बाल गोपाल की विधि - विधान से पूजा करना शुभ रहता है। 

सुखी वैवाहिक जीवन के इच्छुक लोगों के लिए कृष्ण जी के युवा स्वरूप की पूजा करना फलदायी रहता है। 

वहीं, जो लोग गुरु के रूप में श्रीकृष्ण की विधिवत पूजा करते हैं, उनके लिए मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।


महा / फाल्गुन माह में दान का महत्व :


सनातन धर्म में दान - पुण्य को कितना अधिक महत्व दिया जाता है, इस बात को हम सभी जानते हैं। 

हिंदू वर्ष के प्रत्येक माह में अलग - अलग चीज़ों का दान करने से असीम पुण्य की प्राप्ति होती है। 

ठीक इसी तरह, महा / फागुन में कुछ विशेष वस्तुओं का दान करना शुभ माना जाता है। 

शास्त्रों में वर्णन किया गया है कि महा / फाल्गुन माह के दौरान आप अपने सामर्थ्य के अनुसार वस्त्र, सरसों का तेल, शुद्ध घी, अनाज, मौसमी फल आदि का जरूरतमंदों को दान करना चाहिए क्योंकि ऐसा करना बेहद कल्याणकारी माना जाता है। 

ऐसी मान्यता है कि महा / फाल्गुन माह में इन चीज़ों का दान करने से जातक को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और पुण्य कर्मों में वृद्धि होती है। 

साथ ही, यह माह पितरों के निमित्त तर्पण करने के लिए भी श्रेष्ठ होता है।


महा / फाल्गुन मास में कब से होलाष्टक शुरू हो रहा है  ?


यह हम आपको बता चुके हैं कि महा / फाल्गुन में होली का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। 

लेकिन, शायद आप नहीं जानते होंगे कि इस माह में कुछ ऐसे दिन होते हैं जब किसी भी शुभ एवं मांगलिक कार्य को करना वर्जित होता है। 

यहां हम बात कर रहे हैं होलाष्टक के बारे में जिस की शुरुआत होली से ठीक 8 दिन पहले हो जाती है। 

बता दें कि होलाष्टक के आठ दिनों में सभी तरह के शुभ कार्यों जैसे कि सगाई, विवाह, मुंडन आदि को नहीं किया जाता है। 

मान्यता है कि इस अवधि में दिया गया आशीर्वाद भी व्यर्थ हो जाता है। 

हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल होलाष्टक का आरंभ शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से होता है और इसका समापन होलिका दहन के साथ हो जाता है। 

वर्ष 2025 में होलाष्टक का आरंभ 07 मार्च 2025, शुक्रवार से होगा और इसका अंत 13 मार्च 2025, गुरुवार के दिन होगा। 

बता दें कि होलाष्टक के दौरान सभी आठ ग्रह अशुभ स्थिति में होते हैं इस लिए यह अवधि शुभ कार्यों के लिए अनुकूल नहीं मानी जाती है। 

इस दौरान किए गए कार्यों में शुभ फलों की प्राप्ति नहीं होती है या फिर वह असफल हो जाते हैं।


महा / फाल्गुन 2025 में जरूर करें ये उपाय :


अगर आपके वैवाहिक जीवन में प्रेम की कमी होने लगी है या प्यार खत्म होता जा रहा है और पति - पत्नी के बीच आपसी सामंजस्य भी नहीं है, तो आप महा / फाल्गुन माह में भगवान श्रीकृष्ण को मोरपंख अर्पित करें। 

ऐसा करने से रिश्ते में मधुरता आने लगेगी।

महा / फाल्गुन माह में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करना शुभ होता है। 

इस दौरान आप अबीर और गुलाल रंगों से कृष्णजी की पूजा करें। 

ऐसा करने से आपके स्वभाव से चिड़चिड़ापन दूर होता है और क्रोध को आप नियंत्रित करने में सक्षम होते हैं। 

साथ ही, श्रीकृष्ण के आशीर्वाद से मनचाहा जीवनसाथी मिलता है।

श्री वैदिक ज्योतिष के अनुसार, धन लाभ की प्राप्ति के लिए महा / फाल्गुन माह में आपको सुगंधित परफ्यूम का उपयोग करना चाहिए और अपने आसपास चंदन का इत्र या रंग - बिरंगे फूल रखें। 

ऐसा करने से शुक्र देव प्रसन्न होते हैं और धन लाभ के रास्ते खुलते हैं। 

मान्यताओं के अनुसार महा / फाल्गुन माह में चंद्र देव का जन्म हुआ था इस लिए इस माह में इनकी पूजा - अर्चना करें। 

साथ ही, चंद्र देव से जुड़ी वस्तुओं जैसे दूध, मोती, चावल, दही और चीनी आदि का दान करें। 

इस उपाय को करने से चंद्र दोष दूर होता है। 

चलिए अब जानते हैं महा / फाल्गुन 2025 में आप किन कार्यों को कर सकते हैं और किन कामों को करने से आपको बचना चाहिए।


महा / फाल्गुन मास के दौरान क्या करें ?


महा / फाल्गुन 2025 के दौरान आप ज़्यादा से ज़्यादा फलों का सेवन करें।

इस माह में ठंडे या साधारण पानी से नहाने की कोशिश करें।

संभव हो, तो रंग - बिरंगे और सुंदर कपड़े धारण करें।

भोजन में कम से कम अनाज का सेवन करने का प्रयास करें।

परफ्यूम/इत्र का इस्तेमाल करें। यदि चंदन की ख़ुशबू का इस्तेमाल करते हैं, तो शुभ फल प्राप्त होंगे।

महा / फाल्गुन माह में रोज़ाना भगवान श्रीकृष्ण की उपासन करें और उन्हें फूल चढ़ाएं।


महा / फाल्गुन 2025 के दौरान क्या न करें ?


महा /  फाल्गुन माह के दौरान नशीले पदार्थों एवं मांस - मदिरा का सेवन बिल्कुल न करें। 

इस महीने जब होलाष्टक लग जाए, उस समय किसी भी शुभ कार्य का आयोजन न करें।

आयुर्वेद के अनुसार, इस माह में अनाज का सेवन ज्यादा नहीं करना चाहिए। 

इस दौरान महिलाओं और बुजुर्गों का अपमान न करें। 

महा /  फागुन माह में किसी के प्रति मन में गलत विचार लेकर आने से बचें।


🙏🌹 जय श्री कृष्ण 🌹🙏


सद्गुणों की शुरुआत स्वयं से ही करनी होती है;


जब तक खुद की उंगली पर कुमकुम नहीं लगेगा,


तब तक दूसरे के ललाट पर तिलक कैसे लगाओगे...?


🙏🙏 🙏🌹 जय श्री कृष्ण 🌹🙏🙏🙏

ज्योतिषी पंडारामा प्रभु राज्यगुरु 

ऑन लाइन / ऑफ लाइन ज्योतिषी  का जय श्री कृष्णा 


Saturday, February 8, 2025

વૈદિક જ્યોતિષ શાસ્ત્ર વિદ્યા માં બુધ કુંભ રાશીના ગોચર માં/सूतक/पातक विचार :

વેદિક જ્યોતિષ શાસ્ત્ર વિદ્યા માં બુધ કુંભ રાશી ના ગોચર માં 


બુધ કુંભ રાશી ની અંદર ગોચર માં આવશે


વૈદિક જ્યોતિષ માં બુધ ગ્રહ ને સંચાર,બુદ્ધિ અને તર્ક નો કારક માનવામાં આવે છે.

આપણે કઈ જ રીતે કઇ પણ વિચારીએ છીએ,અને જીવન માં કાઈ નવું શીખીએ છીએ અને એ બધું સળતાપૂર્વક ની જાણકારી ને કઈ રીતે સમજીએ છીએ,

આ બધુજ બુધ ગ્રહ ઉપર નિર્ભર કરે છે.આના કારણે આ ગ્રહ માનસિક કામો માટે મહત્વપુર્ણ માનવામાં આવે છે.







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બુધ મિથુન અને કન્યા રાશિ નો સ્વામી ગ્રહ છે.

મિથુન રાશિ સંચાર,જીજ્ઞાશા અને બદલાવ ને સ્વીકાર કરવાની આવડત ને દર્શાવે છે.

જે લોકોની કુંડળી માં મિથુન રાશિમાં બુધ મજબુત સ્થિતિ માં હોય છે,

એ લોકો હાજીર જવાબ,વાતો અને માનસિક રૂપથી મજબુત હોય છે.

ત્યાં કન્યા રાશિ વિશ્લેષણ , દરેક નાની વસ્તુ ઉપર ધ્યાન દેવા અને વેવહારિક્તા ને દર્શાવે છે.

જે લોકોની કુંડળી માં કન્યા રાશિમાં બુધ હોય છે,

એ લોકો દરેક વસ્તુ ઉપર નજર રાખે છે,

સ્પષ્ટ અને જાણકારી શોધવામાં બહુ વધારે માહિર જ હોય છે.

બુધ નો કુંભ રાશિમાં ગોચર : 

સમય તો ચાલો હવે જાણીએ કે ફેબ્રુઆરી ના મહિનામાં બુધ ગ્રહ ક્યાં સમયે અને તારીખ ઉપર ગોચર કરશે.

બુદ્ધિ અને જ્ઞાન નો દેવતા બુધ ગ્રહ 11 ફેબ્રુઆરી,2025 ના દિવસે બપોરે 12 વાગીને 41 મિનિટ ઉપર કુંભ રાશિમાં પ્રવેશ કરવા જઈ રહ્યો છે.

કુંભ રાશિમાં બુધ : 

ખાસિયત જે લોકોની કુંડળી માં કુંભ રાશિમાં બુધ ગ્રહ હોય છે,

એ લોકો પ્રગતિશીલ,ભવિષ્ય વિશે વિચારવાવાળા અને જીજ્ઞાશુ સ્વભાવ વાળા હોય છે.

આગળ આ લોકોની ખાસ ખાસિયત વિશે જણાવામાં આવ્યું છે:

અલગ વિચારો છો : 

કુંભ રાશિમાં બુધ વાળા લોકો બીજા કરતા અલગ કે હટકે વિચારે છે અને અપરંપરાગત વિચારો ની તરફ આકર્ષિત હોય છે.

આ લોકો મોકા તેમજ ભવિષ્ય ની અવધારણાઓ માં રુચિ રાખે છે અને આ તકનીકી કે વિજ્ઞાન જેવા અત્યાધુનિક જગ્યા એ શામિલ થઇ શકે છે.

તર્ક અને તથ્યો ઉપર ધ્યાન આપે છે : 

આ પરિસ્થિતિઓ નું આંકલન કરતી વખતે ભાવનાઓ માં આવીને તર્ક અને તથ્યો ઉપર ધ્યાન આપે છે.

એના કારણે આમાં સમસ્યાઓ નો સુલજાવા માટે ઉત્કૃષ્ટ કૌશલ હોય છે જેના કારણે આ નીસ્પક્ષ થઈને ચુનોતીઓ નો સામનો કરી શકે છે.

વાસ્તવિકતા પસંદ કરો છો : 

આ લોકો પોતાના વિચારો ને હંમેશા અનુઠા કે અપરંપરાગત રીતે વ્યક્ત કરે છે.

આમનો વાત કરવાનો તરીકો વિશ્લેષણ કે બીજા થી અલગ થઇ શકે છે.આ પરંપરા થી વધારે વાસ્તવિકતા ને મહત્વ આપે છે.

દુનિયા ને સારી બનાવાની હોય છે રુચિ : 

આ લોકો હંમેશા સમય કરતા આગળ રહે છે અને નવી અવધારણાઓ કે આદર્શો ને અપનાવે છે.

આ લોકોની રુચિ દુનિયા ને સારી બનાવા માં હોય છે એટલે આ સામાજિક અને માનવીય કામો માં આગળ આવીને ભાગ લેય છે.

વૈચારિક સ્વતંત્રતા પસંદ હોય છે : 

જે લોકો ની કુંડળી માં કુંભ રાશિમાં બુધ ગ્રહ બિરાજમાન હોય છે,એ લોકો માટે સ્વતંત્રતા બહુ મહત્વ રાખે છે.

આ બુદ્ધિક રૂપથી સ્વતંત્ર હોવાનું વધારે મહત્વ આપે છે અને પારંપરિક અને ઘણા લોકોની માન્યતા અનુસરવા છતાં પોતાની સલાહ બનાવાનું પસંદ કરે છે.

કલ્પના માં જીવે છે : 

આ લોકો કલ્પના ની દુનિયા માં જીવે છે એટલે રોજિંદી જીવનમાં થવાવાળી વાતો આ લોકોને પસંદ કરે છે.

પરંતુ,આ લોકોના સપના બહુ મોટા હોય છે.

સામાજિક રૂપથી જાગરૂક હોય છે : 

આ લોકો સમાજ ને લઈને જાગરૂક હોય છે અને સમાનતા કે માનવ અધિકારો સાથે સબંધિત વાતો ઉપર ખુલીને પોતાની સલાહ આપે છે.

કુંભ રાશિમાં હોવા ઉપર લોકો હંમેશા વિદ્રોહી સ્વભાવ ના હોય છે 

જેના કારણે આ સમાજ ની પરંપરાઓ ને ચુનોતી આપી શકે છે.એની સાથે આ લોકો પોતાના જ્ઞાન ને વધારવા ની ઈચ્છા રાખે છે.

આ નવા વિચારો,સ્વતંત્રતા અને સામાજિક પ્રગતિ ને મહત્વ દેવાવાળો સંચારક હોય છે.

બુધ નો કુંભ રાશિમાં ગોચર : 

દુનિયા ઉપર તેમની અસર તેમજ રિસર્ચ કે ડેવલોપમેન્ટ :

બુધ કુંભ રાશિમાં ગોચર કરવા ઉપર ઘણી જગ્યા ખાસ કરીને એન્જીન્યરીંગ અને સારવાર ની જગ્યા માં રિસર્ચ અને ડેવલોપમેન્ટ ને બઢાવો મળે છે.

બુધ અને કુંભ રાશિનો સ્વામી ગ્રહ શનિ નો સબંધ જ્ઞાન અને શિક્ષણ સાથે હોય છે 

એટલે આ ગોચર થી રિસર્ચ અને ડેવલોપમેન્ટ ને બઢાવો મળશે અને વૈજ્ઞાનિકો ને પોતાની શોધ માટે આધાર બનાવા માં મદદ મળશે.

આ ગોચર થી દુનિયાભર ના વૈજ્ઞાનિકો, શોધકર્તાઓ, એન્જીન્યર, ડોક્ટરો અને મેડિકલ વિદ્યાર્થીઓ ને મદદ મળશે.

ઉપચાર અને સારવાર :

બુધ કુંભ રાશિમાં ગોચર કરવાથી યાદશક્તિ મજબુત થશે,તો શનિ દેવ સારવાર સાથે સબંધિત વેવસાયો માં સમર્થન કરશે.

આ રીતે આ જગ્યા માં કામ કરવાવાળા લોકોને લાભ થશે.આમાં ટેરો વાચક, ડોક્ટર, સારવાર કર્મી અને હિલર શામિલ છે.

ડોક્ટર,નર્સ અને બીજા ચિકિત્સા વેવસાયિક વગેરે પોતાના કામમાં ઉન્નતિ જોશે.

મેડિકલ જગ્યા માં રિસર્ચ અને શોધ ખાસ કરીને ચિકિત્સા માં ફાયદામંદ સાબિત થશે.

આ ગોચર પીએચડી જેવી એડવાન્સ ડિગ્રી લેવાવાળા લોકો માટે લાભકારી સિદ્ધ થશે.

જે લોકો પોતાની યોગ્યતા માં સુધારો કરવા માંગે છે કે પોતાના અભ્યાસ ચાલુ રાખવા માંગે છે એને સફળતા જરૂર મળશે.

બિઝનેસ અને કાઉન્સિલિંગ :

આ ગોચર એ લોકો માટે લાભકારી સિદ્ધ થશે જે કોઈ પણ કોઈ પણ પ્રકારના કાઉન્સિલિંગ નું કામ કરે છે.

પ્રખ્યાત વિશ્વવિદ્યાલય ના પ્રોફેસર ને આ ગોચર થી લાભ થશે.
જે વેપારી સ્ટેશનરી ની વસ્તુઓ ની નિકાસ કરે છે એને પણ બુધ કુંભ રાશિમાં ગોચર કરવાથી લાભ ની ઉમ્મીદ છે.

બુધ નો આ ગોચર શિક્ષકો અને અધ્યાપકો માટે બહુ વધારે ફાયદામંદ સાબિત થશે.તમે તમારા જ્ઞાન અને વિશેષયજ્ઞતા ને દુર - દુર સુધી સાજા કરવામાં સક્ષમ હસો.


બુધ નો કુંભ રાશિમાં ગોચર : 

શેર બાઝાર ઉપર તેમની કેવી અસર 11 ફેબ્રુઆરી, 2025 ના દિવસે બુધ ગ્રહ કુંભ રાશિમાં પ્રવેશ કરશે અને આની અસર શેર બાઝાર ઉપર પણ જોવા મળશે.

આગળ જ્યોતિષી પંડા રામાં પ્રભુ રાજ્યગુરુ દ્વારા જણાવામાં આવેલી બુધ કુંભ રાશિમાં ગોચર કરવાથી શેર બાઝાર ઉઔર શું બદલાવ કે ઉતાર ચડાવ આવી શકે છે.

શેર બાઝાર રિપોર્ટ મુજબ મીડિયા, પ્રસારણ અને દુરસંચાર સાથે સબંધિત ઉદ્યોગ સારું પ્રદશન કરશે.

ઓટોમોબાઇલ ઉદ્યોગ માં તેજી આવશે અને શેર બાઝાર ઉપર સકારાત્મક અસર પડશે.

આ સમયે સંસ્થાનો, આયાત અને નિકાસ બધીજ જગ્યા સમૃદ્ધ હશે. ફાર્મોસૂતિકાલ અને સાર્વજનિક બંને જગ્યા માં મજબુત પ્રદશન ના સંકેત છે. ટ્રાન્સપોર્ટ ઉદ્યોગ માં તેજી આવવાના સંકેત છે. હેવી ગેર અને મશીનરી વગેરે નું નિર્માણ વધશે.

બુધ નો કુંભ રાશિ માં ગોચર : 

આવનારા રમત - ગમત ની સ્પર્ધા અને એનો કેટલો કેવો પ્રભાવ હશે તે 11 ફેબ્રુઆરી, 2025 થી ચાલુ થવાવાળી રમત - ગમત ની સ્પર્ધા આ રીતે છે:

ટુર્નામેન્ટ તારીખ ઇનવિક્ટસ રમતો 

08 થી 16 ફેબ્રુઆરી, 2025 નોર્ડિક વર્લ્ડ સ્કી ચેમ્પિયનશિપ

26 ફેબ્રુઆરી થી 09 માર્ચ 2025 સુધી આઈસીસી ચેમ્પિયન્સ ટ્રોફી

19 ફેબ્રુઆરી થી 09 માર્ચ, 2025 સુધી અમે માર્ચ અને ફેબ્રુઆરી માં ગ્રહો ના ગોચર ના આધારે જ્યોતિષય વિશ્લેષણ કરીને અહીંયા મેળવામાં આવ્યું છે કે ગ્રહો ની સ્થિતિ ખિલાડીઓ ને મદદ કરશે અને આ દરમિયાન બુધ કુંભ રાશિમાં ગોચર કંઈક નવા ખિલાડીઓ સામે આવી શકે છે.

આ મહિનો રમત માટે બહુ સારો સાબિત થશે અને ખિલાડી પોતાનો નેતૃત્વ કરવાના ગુણ નું પ્રદશન કરશે.








सूतक/पातक विचार :

हमारे ऊपर आ रहे कष्टो का एक  कारण सूतक के नियमो का पालन नहीं करना भी हो सकता है।

सूतक का सम्बन्ध “जन्म एवं मृत्यु  के” निम्मित से हुई अशुद्धि से है ! 

जन्म के अवसर पर जो ""नाल काटा"" जाता है और जन्म होने की प्रक्रिया में अन्य प्रकार की जो हिंसा होती है, उसमे लगने वाले दोष/पाप के प्रायश्चित स्वरुप “सूतक” माना जाता है !

जन्म के बाद नवजात की पीढ़ियों को हुई अशुचिता....! 

3 पीढ़ी तक – 10 दिन 
4 पीढ़ी तक – 10 दिन 
5 पीढ़ी तक – 6 दिन

ध्यान दें :- एक रसोई में भोजन करने वालों के पीढ़ी नहीं गिनी जाती…! 

वहाँ पूरा 10 दिन का सूतक माना है !

प्रसूति (नवजात की माँ) को 45 दिन का सूतक रहता है 

प्रसूति स्थान 1 माह तक अशुद्ध है ! 

इसी लिए कई लोग जब भी अस्पताल से घर आते हैं तो स्नान करते हैं !

अपनी पुत्री :

पीहर में जनै तो हमे 3 दिन का, ससुराल में जन्म दे तो उन्हें 10 दिन का सूतक रहता है ! 

और हमे कोई सूतक नहीं रहता है !

नौकर - चाकर :

अपने घर में जन्म दे तो 1 दिन का, बाहर दे तो हमे कोई सूतक नहीं !

पालतू पशुओं का घर के पालतू गाय, भैंस, घोड़ी, बकरी इत्यादि को घर में बच्चा होने पर हमे 1 दिन का सूतक रहता है !

किन्तु घर से दूर - बाहर जन्म होने पर कोई सूतक नहीं रहता !

बच्चा देने वाली गाय, भैंस और बकरी का दूध, क्रमशः 15 दिन, 10 दिन और 8 दिन तक “अभक्ष्य/अशुद्ध” रहता है !

पातक :

पातक का सम्बन्ध “मरण के” निम्मित से हुई अशुद्धि से है !  

मरण के अवसर पर ""दाह-संस्कार"" में इत्यादि में जो हिंसा होती है, उसमे लगने वाले दोष/पाप के प्रायश्चित स्वरुप “पातक” माना जाता है !

मरण के बाद हुई अशुचिता : -

3 पीढ़ी तक – 12 दिन
4 पीढ़ी तक – 10 दिन 
5 पीढ़ी तक – 6 दिन

ध्यान दें : - जिस दिन """दाह-संस्कार"" किया जाता है, उस दिन से पातक के दिनों की गणना होती है, न कि मृत्यु के दिन से !

यदि घर का कोई सदस्य बाहर/विदेश में है, तो जिस दिन उसे सूचना मिलती है, उस दिन से शेष दिनों तक उसके पातक लगता है !
 
अगर 12 दिन बाद सूचना मिले तो स्नान - मात्र करने से शुद्धि हो जाती है ! 

गर्भपात :

किसी स्त्री के यदि गर्भपात हुआ हो तो, जितने माह का गर्भ पतित हुआ....! 

उतने ही दिन का पातक मानना चाहिए....!

घर का कोई सदस्य ""तपस्वी' साधु सन्यासी""" बन गया हो तो, उस साधु सन्त को , उसे घर में होने वाले जन्म-मरण का सूतक - पातक नहीं लगता है ! 

किन्तु स्वयं उसका ही मरण हो जाने पर उसके घर वालों को 1 दिन का पातक लगता है !

विशेष :

किसी अन्य की शवयात्रा में जाने वाले को 1 दिन का, मुर्दा छूने वाले को 3 दिन और मुर्दे को कन्धा देने वाले को 8 दिन की अशुद्धि जाननी चाहिए !

घर में कोई "आत्मघात "करले तो 6 महीने का पातक मानना चाहिए !

यदि कोई स्त्री अपने पति के मोह/निर्मोह से"आग लगाकर जल मरे," बालक पढाई में फेल होकर या कोई अपने ऊपर दोष देकर "आत्महत्या" कर  मरता है तो इनका पातक बारह पक्ष याने 6 महीने का होता है !

उसके अलावा भी कहा है कि जिसके घर में इस प्रकार "अपघात" होता है, वहाँ छह महीने तक कोई बुद्धिमान मनुष्य भोजन अथवा जल भी ग्रहण नहीं करता है ! 

वह मंदिर नहीं जाता और ना ही उस घर का द्रव्य मंदिर जी में चढ़ाया जाता है ! 

जहां आत्महत्या हुई है, उस घर का पानी भी ६ माह तक नहीं पीना चाहिए। 

एवं अनाचारी स्त्री-पुरुष के हर समय ही पातक रहता है।

यह भी ध्यान से पढ़िए :

सूतक - पातक की अवधि में “देव - शास्त्र - गुरु” का पूजन, प्रक्षाल, आहार आदि धार्मिक क्रियाएं वर्जित होती हैं !

इन दिनों में मंदिर के उपकरणों को स्पर्श करने का भी निषेध है !  

यहाँ तक की गुल्लक में रुपया डालने का भी निषेध बताया है ! 

दान पेटी मे दान भी नहीं देना चाहिए।

देव - दर्शन, प्रदिक्षणा, जो पहले से याद हैं वो विनती/स्तुति बोलना....! 

भाव - पूजा करना....! 

हाथ की अँगुलियों पर जाप देना  शास्त्र सम्मत है !

कहीं कहीं लोग सूतक - पातक के दिनों में मंदिर ना जाकर इसकी समाप्ति के बाद मंदिरजी से गंधोदक लाकर शुद्धि के लिए घर - दुकान में छिड़कते हैं....! 

ऐसा करके नियम से घोनघोर पाप का बंध करते हैं ! 

मानो या न मानो....!
 
यह सत्य है....! 

नहीं मानने पर दुःख, कष्ट, तकलीफ....! 

होगी इन्हे समझना इस लिए ज़रूरी है....! 

ताकि अब आगे घर - परिवार में हुए जन्म - मरण के अवसरों पर अनजाने से भी कहीं दोष का उपार्जन ना हो।


શુભસ્તું 
જ્યોતિષી પંડારામા પ્રભુ રાજ્યગુરુ 
( તમિલ /દ્રવિન બ્રાહ્મણ )

Monday, February 3, 2025

शुक्र प्रदोष व्रत/12 या 13 को माघ पूर्णिमा है

शुक्र प्रदोष व्रत/12 या 13 फरवरी...कब है माघ पूर्णिमा? 


शुक्र प्रदोष व्रत परिचय एवं विस्तृत विधि :

प्रत्येक चन्द्र मास की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत रखने का विधान है. यह व्रत कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों को किया जाता है. सूर्यास्त के बाद के 2 घण्टे 24 मिनट का समय प्रदोष काल के नाम से जाना जाता है. प्रदेशों के अनुसार यह बदलता रहता है. सामान्यत: सूर्यास्त से लेकर रात्रि आरम्भ तक के मध्य की अवधि को प्रदोष काल में लिया जा सकता है।








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ऐसा माना जाता है कि प्रदोष काल में भगवान भोलेनाथ कैलाश पर्वत पर प्रसन्न मुद्रा में नृ्त्य करते है. जिन जनों को भगवान श्री भोलेनाथ पर अटूट श्रद्धा विश्वास हो, उन जनों को त्रयोदशी तिथि में पडने वाले प्रदोष व्रत का नियम पूर्वक पालन कर उपवास करना चाहिए।

यह व्रत उपवासक को धर्म, मोक्ष से जोडने वाला और अर्थ, काम के बंधनों से मुक्त करने वाला होता है. इस व्रत में भगवान शिव की पूजन किया जाता है. भगवान शिव कि जो आराधना करने वाले व्यक्तियों की गरीबी, मृ्त्यु, दु:ख और ऋणों से मुक्ति मिलती है।

प्रदोष व्रत की महत्ता :

शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत को रखने से दौ गायों को दान देने के समान पुन्य फल प्राप्त होता है. प्रदोष व्रत को लेकर एक पौराणिक तथ्य सामने आता है कि " एक दिन जब चारों और अधर्म की स्थिति होगी, अन्याय और अनाचार का एकाधिकार होगा, मनुष्य में स्वार्थ भाव अधिक होगी. तथा व्यक्ति सत्कर्म करने के स्थान पर नीच कार्यो को अधिक करेगा।

उस समय में जो व्यक्ति त्रयोदशी का व्रत रख, शिव आराधना करेगा, उस पर शिव कृ्पा होगी. इस व्रत को रखने वाला व्यक्ति जन्म- जन्मान्तर के फेरों से निकल कर मोक्ष मार्ग पर आगे बढता है. उसे उतम लोक की प्राप्ति होती है।

व्रत से मिलने वाले फल :

अलग- अलग वारों के अनुसार प्रदोष व्रत के लाभ प्राप्त होते है।

जैसे सोमवार के दिन त्रयोदशी पडने पर किया जाने वाला वर्त आरोग्य प्रदान करता है। 

सोमवार के दिन जब त्रयोदशी आने पर जब प्रदोष व्रत किया जाने पर, उपवास से संबन्धित मनोइच्छा की पूर्ति होती है। 

जिस मास में मंगलवार के दिन त्रयोदशी का प्रदोष व्रत हो, उस दिन के व्रत को करने से रोगों से मुक्ति व स्वास्थय लाभ प्राप्त होता है एवं बुधवार के दिन प्रदोष व्रत हो तो, उपवासक की सभी कामना की पूर्ति होने की संभावना बनती है।

गुरु प्रदोष व्रत शत्रुओं के विनाश के लिये किया जाता है। 

शुक्रवार के दिन होने वाल प्रदोष व्रत सौभाग्य और दाम्पत्य जीवन की सुख - शान्ति के लिये किया जाता है। 

अंत में जिन जनों को संतान प्राप्ति की कामना हो, उन्हें शनिवार के दिन पडने वाला प्रदोष व्रत करना चाहिए। 

अपने उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए जब प्रदोष व्रत किये जाते है, तो व्रत से मिलने वाले फलों में वृ्द्धि होती है।

व्रत विधि :

सुबह स्नान के बाद भगवान शिव, पार्वती और नंदी को पंचामृत और जल से स्नान कराएं। 

फिर गंगाजल से स्नान कराकर बेल पत्र, गंध, अक्षत (चावल), फूल, धूप, दीप, नैवेद्य (भोग), फल, पान, सुपारी, लौंग और इलायची चढ़ाएं। 

फिर शाम के समय भी स्नान करके इसी प्रकार से भगवान शिव की पूजा करें। 

फिर सभी चीजों को एक बार शिव को चढ़ाएं।

और इसके बाद भगवान शिव की सोलह सामग्री से पूजन करें। 

बाद में भगवान शिव को घी और शक्कर मिले जौ के सत्तू का भोग लगाएं। 

इसके बाद आठ दीपक आठ दिशाओं में जलाएं। 

जितनी बार आप जिस भी दिशा में दीपक रखेंगे, दीपक रखते समय प्रणाम जरूर करें। 

अंत में शिव की आरती करें और साथ ही शिव स्त्रोत, मंत्र जाप करें। 

रात में जागरण करें।

प्रदोष व्रत समापन पर उद्धापन :

इस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद व्रत का समापन करना चाहिए. इसे उद्धापन के नाम से भी जाना जाता है।

उद्धापन करने की विधि :

इस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद व्रत का समापन करना चाहिए. इसे उद्धापन के नाम से भी जाना जाता है।

इस व्रत का उद्धापन करने के लिये त्रयोदशी तिथि का चयन किया जाता है. उद्धापन से एक दिन पूर्व श्री गणेश का पूजन किया जाता है. पूर्व रात्रि में कीर्तन करते हुए जागरण किया जाता है. प्रात: जल्द उठकर मंडप बनाकर, मंडप को वस्त्रों या पद्म पुष्पों से सजाकर तैयार किया जाता है. "ऊँ उमा सहित शिवाय नम:" मंत्र का एक माला अर्थात 108 बार जाप करते हुए, हवन किया जाता है. हवन में आहूति के लिये खीर का प्रयोग किया जाता है।

हवन समाप्त होने के बाद भगवान भोलेनाथ की आरती की जाती है। 

और शान्ति पाठ किया जाता है. अंत: में दो ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है. तथा अपने सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा देकर आशिर्वाद प्राप्त किया जाता है।

शुक्र प्रदोष व्रत :

सूत जी बोले-“अभीष्ट सिद्धि की कामना, यदि हो ह्रदय विचार ।
धर्म, अर्थ, कामादि, सुख, मिले पदारथ चार ॥”

व्रत कथा :

प्राचीनकाल की बात है, एक नगर में तीन मित्र रहते थे – एक राजकुमार, दूसरा ब्राह्मण कुमार और तीसरा धनिक पुत्र । 

राजकुमार व ब्राह्मण कुमार का विवाह हो चुका था । 

धनिक पुत्र का भी विवाह हो गया था, किन्तु गौना शेष था । 

एक दिन तीनों मित्र स्त्रियों की चर्चा कर रहे थे । 

ब्राह्मण कुमार ने स्त्रियों की प्रशंसा करते हुए कहा- ‘नारीहीन घर भूतों का डेरा होता है।’ 

धनिक पुत्र ने यह सुना तो तुरन्त ही अपनी पत्‍नी को लाने का निश्‍चय किया । 

माता-पिता ने उसे समझाया कि अभी शुक्र देवता डूबे हुए हैं । 

ऐसे में बहू-बेटियों को उनके घर से विदा करवा लाना शुभ नहीं होता । 

किन्तु धनिक पुत्र नहीं माना और ससुराल जा पहुंचा । 

ससुराल में भी उसे रोकने की बहुत कोशिश की गई, मगर उसने जिद नहीं छोड़ी । 

माता-पिता को विवश होकर अपनी कन्या की विदाई करनी पड़ी । 

ससुराल से विदा हो पति-पत्‍नी नगर से बाहर निकले ही थे कि उनकी बैलगाड़ी का पहिया अलग हो गया और एक बैल की टांग टूट गई । 

दोनों को काफी चोटें आईं फिर भी वे आगे बढ़ते रहे । 

कुछ दूर जाने पर उनकी भेंट डाकुओं से हो गई । 

डाकू धन - धान्य लूट ले गए । 

दोनों रोते - पीटते घर पहूंचे । 

वहां धनिक पुत्र को सांप ने डस लिया । 

उसके पिता ने वैद्य को बुलवाया । 

वैद्य ने निरीक्षण के बाद घोषणा की कि धनिक पुत्र तीन दिन में मर जाएगा  जब ब्राह्मण कुमार को यह समाचार मिला तो वह तुरन्त आया । 

उसने माता-पिता को शुक्र प्रदोष व्रत करने का परामर्ष दिया और कहा- ‘इसे पत्‍नी सहित वापस ससुराल भेज दें । 

यह सारी बाधाएं इस लिए आई हैं क्योंकि आपका पुत्र शुक्रास्त में पत्‍नी को विदा करा लाया है । 

यदि यह वहां पहुंच जाएगा तो बच जाएगा।’ 

धनिक को ब्राह्मण कुमार की बात ठीक लगी । 

उसने वैसा ही किया । 

ससुराल पहुंचते ही धनिक कुमार की हालत ठीक होती चली गई । 

शुक्र प्रदोष के महात्म्य से सभी घोर कष्ट टल गए।

प्रदोषस्तोत्रम् :

।। श्री गणेशाय नमः।। 

जय देव जगन्नाथ जय शङ्कर शाश्वत । जय सर्वसुराध्यक्ष जय सर्वसुरार्चित ॥ १॥ 

जय सर्वगुणातीत जय सर्ववरप्रद । 
जय नित्य निराधार जय विश्वम्भराव्यय ॥ २॥ 

जय विश्वैकवन्द्येश जय नागेन्द्रभूषण । 
जय गौरीपते शम्भो जय चन्द्रार्धशेखर ॥ ३॥ 

जय कोट्यर्कसङ्काश जयानन्तगुणाश्रय । जय भद्र विरूपाक्ष जयाचिन्त्य निरञ्जन ॥ ४॥ 

जय नाथ कृपासिन्धो जय भक्तार्तिभञ्जन । जय दुस्तरसंसारसागरोत्तारण प्रभो ॥ ५॥ 

प्रसीद मे महादेव संसारार्तस्य खिद्यतः । सर्वपापक्षयं कृत्वा रक्ष मां परमेश्वर ॥ ६॥ 

महादारिद्र्यमग्नस्य महापापहतस्य च । महाशोकनिविष्टस्य महारोगातुरस्य च ॥ ७॥ 

ऋणभारपरीतस्य दह्यमानस्य कर्मभिः । ग्रहैः प्रपीड्यमानस्य प्रसीद मम शङ्कर ॥ ८॥ 

दरिद्रः प्रार्थयेद्देवं प्रदोषे गिरिजापतिम् । अर्थाढ्यो वाऽथ राजा वा प्रार्थयेद्देवमीश्वरम् ॥ ९॥ 

दीर्घमायुः सदारोग्यं कोशवृद्धिर्बलोन्नतिः । 
ममास्तु नित्यमानन्दः प्रसादात्तव शङ्कर ॥ १०॥ 

शत्रवः संक्षयं यान्तु प्रसीदन्तु मम प्रजाः । नश्यन्तु दस्यवो राष्ट्रे जनाः सन्तु निरापदः ॥ ११॥ 

दुर्भिक्षमरिसन्तापाः शमं यान्तु महीतले । सर्वसस्यसमृद्धिश्च भूयात्सुखमया दिशः ॥ १२॥ 

एवमाराधयेद्देवं पूजान्ते गिरिजापतिम् । ब्राह्मणान्भोजयेत् पश्चाद्दक्षिणाभिश्च पूजयेत् ॥ १३॥ 

सर्वपापक्षयकरी सर्वरोगनिवारणी । शिवपूजा मयाऽऽख्याता सर्वाभीष्टफलप्रदा ॥ १४॥ 

॥ इति प्रदोषस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

कथा एवं स्तोत्र पाठ के बाद महादेव जी की आरती करें

ताम्बूल, दक्षिणा, जल -आरती :

तांबुल का मतलब पान है। 

यह महत्वपूर्ण पूजन सामग्री है। फल के बाद तांबुल समर्पित किया जाता है। 

ताम्बूल के साथ में पुंगी फल ( सुपारी ), लौंग और इलायची भी डाली जाती है । 

दक्षिणा अर्थात् द्रव्य समर्पित किया जाता है। 

भगवान भाव के भूखे हैं। 

अत: उन्हें द्रव्य से कोई लेना-देना नहीं है। 

द्रव्य के रूप में रुपए, स्वर्ण, चांदी कुछ भी अर्पित किया जा सकता है।

आरती पूजा के अंत में धूप, दीप, कपूर से की जाती है। 

इस के बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। 

आरती में एक, तीन, पांच, सात यानि विषम बत्तियों वाला दीपक प्रयोग किया जाता है।

भगवान शिव जी की आरती :

ॐ जय शिव ओंकारा,भोले हर शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ हर हर हर महादेव...॥

एकानन चतुरानन पंचानन राजे।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
तीनों रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

अक्षमाला बनमाला मुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भोले शशिधारी ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता।
जगकर्ता जगभर्ता जगपालन करता ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठि दर्शन पावत रुचि रुचि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

लक्ष्मी व सावित्री, पार्वती संगा ।
पार्वती अर्धांगनी, शिवलहरी गंगा ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।

पर्वत सौहे पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।

जटा में गंगा बहत है, गल मुंडल माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।

त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

ॐ जय शिव ओंकारा भोले हर शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा ।। ॐ हर हर हर महादेव।।

कर्पूर आरती :

कर्पूरगौरं करुणावतारं, संसारसारम् भुजगेन्द्रहारम्।
सदावसन्तं हृदयारविन्दे, भवं भवानीसहितं नमामि॥

मंगलम भगवान शंभू
मंगलम रिषीबध्वजा ।
मंगलम पार्वती नाथो
मंगलाय तनो हर ।।

मंत्र पुष्पांजलि :

मंत्र पुष्पांजली मंत्रों द्वारा हाथों में फूल लेकर भगवान को पुष्प समर्पित किए जाते हैं तथा प्रार्थना की जाती है। 

भाव यह है कि इन पुष्पों की सुगंध की तरह हमारा यश सब दूर फैले तथा हम प्रसन्नता पूर्वक जीवन बीताएं।

ॐ यज्ञेन यज्ञमयजंत देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।

ते हं नाकं महिमान: सचंत यत्र पूर्वे साध्या: संति देवा:

ॐ राजाधिराजाय प्रसह्ये साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे स मे कामान्कामकामाय मह्यम् कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु।

कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नम:

ॐ स्वस्ति साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्ठ्यं राज्यं माहाराज्यमाधिपत्यमयं समंतपर्यायी सार्वायुष आंतादापरार्धात्पृथिव्यै समुद्रपर्यंता या एकराळिति तदप्येष श्लोकोऽभिगीतो मरुत: परिवेष्टारो मरुत्तस्यावसन्गृहे आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवा: सभासद इति।

ॐ विश्व दकचक्षुरुत विश्वतो मुखो विश्वतोबाहुरुत विश्वतस्पात संबाहू ध्यानधव धिसम्भत त्रैत्याव भूमी जनयंदेव एकः।
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥

नाना सुगंध पुष्पांनी यथापादो भवानीच पुष्पांजलीर्मयादत्तो रुहाण परमेश्वर

ॐ भूर्भुव: स्व: भगवते श्री सांबसदाशिवाय नमः। 
मंत्र पुष्पांजली समर्पयामि।।

प्रदक्षिणा :

नमस्कार, स्तुति - प्रदक्षिणा का अर्थ है परिक्रमा। 

आरती के उपरांत भगवन की परिक्रमा की जाती है, परिक्रमा हमेशा क्लॉक वाइज ( clock - wise ) करनी चाहिए। 

स्तुति में क्षमा प्रार्थना करते हैं, क्षमा मांगने का आशय है कि हमसे कुछ भूल, गलती हो गई हो तो आप हमारे अपराध को क्षमा करें।
 
यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि च। 
तानि सवार्णि नश्यन्तु प्रदक्षिणे पदे-पदे।।

अर्थ: जाने अनजाने में किए गए और पूर्वजन्मों के भी सारे पाप प्रदक्षिणा के साथ - साथ नष्ट हो जाए। 

12 या 13 को माघ पूर्णिमा है..! 

जानिए अमृत स्नान का शुभ मुहूर्त,जानें कब करें गंगा स्नान

इस साल माघ पूर्णिमा कब है और इस दिन महाकुंभ का चौथा अमृत स्नान भी होगा. 

ज्योतिषाचार्य के अनुसार इस दिन क्या करने से आपको लाभ मिलने वाला है.







माघ पूर्णिमा 12 फरवरी को है।

अमृत स्नान का शुभ मुहूर्त 12 फरवरी सुबह 5:19 से 6:10 तक है।

पूर्णिमा तिथि 11 फरवरी शाम 6:55 से 12 फरवरी शाम 7:22 तक है।

सनातन हिन्दू धर्म में हर पूर्णिमा तिथि का बहुत खास ज्यादा महत्व है।

पूर्णिमा के दिन स्नान और दान करने से सभी पापों का नाश होता है ।

इस दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा - अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

वैदिक धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, तो इस तिथि में व्रत रखकर विधि - विधान से पूजा - अर्चना की जाती है।

जिससे घर में सुख - समृद्धि और शांति का वास होता है।

माघ महीने की पूर्णिमा तिथि आने वाली है और इस दिन बेहद शुभ संयोग बनने जा रहा है।

आइए....!

ज्योतिषाचार्य पंडारामा प्रभु राज्यगुरु से जानते हैं कि माघ महीने की पूर्णिमा तिथि कब है और स्नान का शुभ मुहूर्त क्या है। 

ज्योतिषाचार्य प्रभु क्या कहता है :

प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित प्रभु राज्यगुरु पंडारामा कहा कि माघ महीने की पूर्णिमा तिथि को लेकर थोड़ी असमंजस की स्थिति बनी हुई है।

इस साल माघ महीने की पूर्णिमा तिथि 12 फरवरी को है।

इस माघ पूर्णिमा के दिन 144 साल बाद शुभ संयोग बन रहा है।

क्योंकि इस दिन महाकुंभ का चौथा शाही स्नान है।

इस दिन स्नान और दान का बहुत खास महत्व है। 

इसके साथ ही इस दिन सत्य नारायण की कथा सुनने का भी विधान है।

अगर कोई व्यक्ति पूरे माघ महीने गंगा स्नान नहीं कर सका हो।

 तो माघ महीने की पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान अवश्य करनी चाहिए।

इस से जीवन में सुख-समृद्धि की वृद्धि होती है।


कब शुरू हो रही है पूर्णिमा तिथि :


ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि ऋषिकेश पंचांग के अनुसार पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 11 फरवरी को शाम 06 बजकर 55 मिनट पर हो रही है और समापन अगले दिन यानी 12 फरवरी शाम 07 बजकर 22 मिनट पर होगा।

उदया तिथि के अनुसार 12 फरवरी को माघ पूर्णिमा का व्रत रखा जाएगा।

!!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!

जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर: -

श्री सरस्वति ज्योतिष कार्यालय

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-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-

(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 

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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....

जय द्वारकाधीश....

जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

Saturday, February 1, 2025

वरद तिलकुंद चतुर्थी /भौतिक विद्याएं :

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........

जय द्वारकाधीश


वरद तिलकुंद चतुर्थी 


वरद तिलकुंद चतुर्थी कल :


माघ महीने की शुरुआत हो चुकी है। 

इस माह का विशेष महत्व है और इस खास महीने में कई त्योहार पड़ते हैं इसी में वरद तिल चतुर्थी भी है। 

माघ महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को तिल कुंद चतुर्थी या वरद तिल चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। 








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वरद तिल चतुर्थी व्रत भगवान गणेश को समर्पित है। 

इस दिन गणेश जी की पूजा तिल और कुंद के फूलों से किए जाने का विधान है। 

वरद तिल चतुर्थी 1 

फरवरी 2025 को मनाया जाएगा। 

तिल और कुंद के फूल श्रीगणेश को अतिप्रिय है। 

कुछ लोग इस दिन गणेश जी को भोग के रूप में लड्डू भी अर्पित करते हैं।








वरद तिल चतुर्थी तिथि :

माघ माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि आरंभ: 01 फरवरी 2025, प्रातः11:38 से ।

माघ माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि समाप्त: 02 फरवरी 2025,प्रातः 09:14 पर ।

वरद तिल चतुर्थी का पूजा मुहूर्त :

01 फरवरी 2025, प्रातः 11:38 से दोपहर 01:40 तक...!

इस तरह वरद तिल चतुर्थी का व्रत 1...! 

फरवरी को रखा जाएगा। 

शास्त्र विहित मत मानें तो जिस दिन चतुर्थी तिथि लगी है चतुर्थी का व्रत भी उसी दिन से शुरू होगा। 

वरद तिल चतुर्थी पर गणेश जी की पूजा का महत्व :

माघ तिलकुंद चतुर्थी पर भगवान गणेश और चंद्र देव की पूजा से मन को शांति और सुख मिलता है। 

इस दिन व्रत रखने से गणेश जी अपने भक्तों के सभी कष्ट दूर करते हैं और धन, विद्या, बुद्धि और ऐश्वर्य का आशीर्वाद देते हैं। 

रिद्धि - सिद्धि की भी प्राप्ति होती है और जीवन के सभी संकट दूर होते हैं।

गणेश जी की पूजा से होती है हर मनोकामना पूरी :

पंडित पंडारामा प्रभु राज्यगुरु के मुताबिक संकष्टी चतुर्थी निकल चुकी है। 

संकष्टी चतुर्थी को भगवान श्री गणेश का प्राकट्य दिवस माना जाता है। 

इसके बाद आने वाली वरद तिल कुंड चतुर्थी भी अपना विशेष महत्व रखती है। 

आगामी शुक्रवार को भगवान श्री गणेश की पूजा का विशेष महत्व रहेगा। 

इस दिन पूजा करने से भक्तों की मनोकामना पूरी होगी।

ये भी रहेगा विशेष :

माघ मास में शुक्ल पक्ष की गुप्त नवरात्रि चल रही है। 

वर्तमान समय गुप्त नवरात्रि के साथ वरद तिल कुंड चतुर्थी का योग बनने से एक अद्भुत संयोग उत्पन्न हुआ है। 

इस दौरान गुप्त साधक श्री गणेश के मंत्रों के साथ - साथ आदि शक्ति के मंत्रों से संपुटिक अनुष्ठान करते हैं। 

अर्थात एक मंत्र भगवान श्री गणेश का उच्चारण किया जाता है। 

इसके बाद एक मंत्र माता जी का पढ़ा जाता है। 

इस प्रकार संपूटिक अनुष्ठान संपन्न होता है। 

वरद तिल चतुर्थी की पूजा विधि :

वरद तिल चतुर्थी गणेश जी की पूजा को समर्पित है। 

वरद तिल चतुर्थी की पूजा ब्रह्म मुहूर्त और गोधूलि मुहूर्त में की जाती है।  

वरद तिल चतुर्थी के दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर साफ - स्वच्छ वस्त्र पहनें। 

इसके बाद आसन पर बैठकर भगवान श्रीगणेश का पूजन करें।

पूजा के दौरान भगवान श्रीगणेश को धूप - दीप दिखाएं।

अब श्री गणेश को फल, फूल, चावल, रौली, मौली चढ़ाएं। 

पंचामृत से स्नान कराने के बाद तिल अथवा तिल - गुड़ से बनी वस्तुओं व लड्डुओं का भोग लगाएं।

जब श्रीगणेश की पूजा करें तो अपना मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखें। 

पूजा के बाद 'ॐ श्रीगणेशाय नम:' का जाप 108 बार करें।

शाम के समय कथा सुनें व भगवान की आरती उतारें।

शास्त्रों के अनुसार इस दिन गर्म कपड़े, कंबल, कपड़े व तिल आदि का दान करें।
पंडारामा प्रभु राज्यगुरू 
( द्रविड़ ब्राह्मण )
!!!!! शुभमस्तु !!!

भौतिक विद्याएं :

भौतिक विद्याएं, जैसे खगोल भूगोल विज्ञान गणित चिकित्सा संगीत आदि....! 

ये सब विद्याएं तो सांसारिक लोगों को आकर्षित करती हैं। 

परंतु अध्यात्म विद्या सबको अधिक आकर्षित नहीं करती। 

क्योंकि सब में अध्यात्म विद्या के पूर्व जन्मों के संस्कार अधिक नहीं होते। 

इस कारण से सब लोग अध्यात्म विद्या अर्थात ईश्वर आत्मा कर्म फल पुनर्जन्म बंधन मुक्ति आदि के विषय में जानकारी करने के लिए अधिक लोग अधिक रुचि नहीं रखते।

जो लोग पूर्व जन्मों में अध्यात्म विद्या को पढ़कर कुछ तपस्या कर चुके हैं....! 

उनके आध्यात्मिक संस्कार अधिक होने से उनको अध्यात्म विद्या आकर्षित करती है। 

और वे शीघ्र ही थोड़े से पुरुषार्थ से भी आध्यात्मिक उन्नति कर लेते हैं। 

क्योंकि उनके मन में आध्यात्मिक विचारों की फसल उत्पन्न होने की भूमिका पूर्व जन्मों की तपस्या के कारण तैयार हो चुकी होती है।

जिनके पूर्व जन्मों के आध्यात्मिक संस्कार इतने अधिक नहीं हैं....! 

तो कोई बात नहीं। 

यदि इस जन्म में वे लोग पुरुषार्थ करें, तो उनकी कुछ न कुछ उन्नति इस जन्म में भी होगी, और अगले जन्मों में भी। 

आध्यात्मिक उन्नति करना इस लिए अधिक महत्वपूर्ण है....! 

क्योंकि इसी से मन की शांति प्राप्त होती है। 

मन की शांति के बिना आज का मनुष्य डिप्रेशन में जा रहा है। 

उससे बचना बहुत आवश्यक है।

मन की शांति प्राप्त करने....! 

अपने मन बुद्धि शरीर इंद्रियों आदि को स्वस्थ रखने....! 

जीवन में आनंद प्राप्त करने....! 

तथा तनाव मुक्त जीवन जीने आदि के लिए अध्यात्म विद्या के बिना दूसरा कोई उपाय नहीं है। 

इस लिए अध्यात्म विद्या की प्राप्ति के लिए अवश्य ही पुरुषार्थ करें।

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर: -
श्री सरस्वति ज्योतिष कार्यालय
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Satvara vidhyarthi bhuvn,
" Shri Aalbai Niwas "
Shri Maha Prabhuji bethak Road,
JAM KHAMBHALIYA - 361305 (GUJRAT )
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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