जानिए ग्रहों की दशा से भी परे सबसे महत्वपूर्ण चीज क्या है...? / नाराज हो जाते हैं पितर...!
जानिए ग्रहों की दशा से भी परे सबसे महत्वपूर्ण चीज क्या है...?
प्रयागराज में महाकुंभ का शुभारंभ 13 जनवरी से हो चुका है, और यह 26 फरवरी 2025 तक चलेगा।
प्रयागराज में महाकुंभ का शुभारंभ 13 जनवरी से हो चुका है, और यह 26 फरवरी 2025 तक चलेगा।
संगम नगरी में लगे इसे महाकुंभ में देश दुनिया से लाखों की संख्या में श्रद्धालु, साधु-संत और पर्यटक पवित्र डुबकी लगाने आ रहे हैं।
मान्यता है कि महाकुंभ के इस भव्य आयोजन में डुबकी लगाने से न केवल पापों का नाश होता है, बल्कि जीवन में सकारात्मकता और शांति का आगमन भी होता है।
इसी बीच 25 जनवरी 2025 यानी की आज महाकुंभ नगर में अमर उजाला और उससे जुड़े उपक्रम जीवांजलि और माय ज्योतिष की ओर से 'अमर उजाला ज्योतिष महाकुंभ महोत्सव' का आयोजन किया जा रहा है जहां कई ज्योतिषाचार्य शामिल होने के लिए आएं है, यहां सभी ज्योतिष शास्त्र के अद्भुत विज्ञान और इसकी गहराई पर अपनी राय रख रहे हैं,
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इस दौरान ज्योतिषाचार्य प्रभु ने अपनी बात रखते हुए लाल किताब के रहस्यमय संसार के बारे में जिक्र किया....!
लाल किताब क्या है....?
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार लाल किताब ज्योतिष की प्रमुख शाखा है, जो भारतीय ज्योतिष पर आधारित है।
माना जाता है कि इस लाल किताब में कुंडली दोष और जीवन की समस्याओं को सुलझाने के लिए कई उपाय बताए गए हैं।
फॉर्मूला आधारित है ज्योतिष :
लाल किताब विशेषज्ञ पंडारामा ज्योतिषाचार्य प्रभु राज्यगुरु ने कहा कि इस समय आकाश में ग्रहों की स्थिति इस प्रकार है कि महाकुंभ की धरती पर जो पानी है, वह अमृततुल्य है।
यहां त्रिवेणी है।
जब इंसान ग्रहों की अलग - अलग स्थिति में जन्म लेता है, तो इससे उसकी सोच दूसरों से अलग हो जाती है।
अपनी बात आगे बढ़ाते हुए पंडारामा ज्योतिषाचार्य प्रभु राज्यगुरु ने कहा कि आजकल ज्योतिष विज्ञान में कई लोग यह गलती कर देते हैं कि वे एक घर के अंदर बैठे ग्रह के फल को पढ़ देते हैं।
ज्योतिष असल में एक विज्ञान है एक गणित है जो भी इसके फॉर्मूले समझ जाएगा, वह ज्योतिष विज्ञान समझ पाएगा।
संस्कार की परिभाषा का किया जिक्र :
ऋषि-मुनियों ने ग्रहों की दिशा से अलग हमें एक महत्वपूर्ण चीज बताई, जिसका नाम है संस्कार।
पंडारामा ज्योतिषाचार्य प्रभु राज्यगुरु ने कहा कि जब तक हम किसी चीज की गहराई में नहीं उतर जाते है तब तक उसके बारे में पूरा ज्ञान नहीं मिल पाता।
आजकल लोग व्यसनों से जूझ रहे हैं और बच्चे बिगड़ रहे हैं।
ऐसा ना हो इस लिए ही संस्कार बनाए गए थे।
जिनके ग्रह खराब हैं, उनके आचार-विचार को भी नियंत्रण में रखा जाए, इसी के लिए संस्कार बने थे।
दुनिया में बड़ी सोच वाले लोग सिर्फ 20 फीसदी है, उनमें भी श्रेष्ठ विचार रखने वालों की संख्या एक-दो फीसदी ही है।
दुनिया में आज नासमझों की भीड़ बहुत ज्यादा है।
नाराज हो जाते हैं पितर मौनी अमावस्या के दिन भूलकर भी न करें ये काम, लगता है पाप....!
माघ मास की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहते हैं।
इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने और दान पुण्य के कार्य करने का विशेष महत्व होता है।
इस साल मौनी अमावस्या पर श्रद्धालुओं को कुंभ स्नान का परम पुण्य प्राप्त होगा।
मौनी अमावस्या पर मौन व्रत रखने के साथ ही कुछ खास नियमों का पालन करना भी अनिवार्य माना जाता है।
आइए आपको बताते हैं कि मौनी अमावस्या पर कौन सी गलतियां भूलकर भी नहीं करनी चाहिए।
मौनी अमावस्या है और इस बार मौनी अमावस्या पर महाकुंभ का अद्भुत संयोग बना है।
इस दिन गंगा स्नान और दान पुण्य जैसे धार्मिक कार्य करने का विशेष महत्व होता है।
मौनी अमावस्या पर व्रत करने और पितरों का तर्पण करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और उनके आशीर्वाद से आपको जीवन में तरक्की प्राप्त होती है।
इस बार तो लोगों को मौनी अमावस्या पर कुंभ स्नान करने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है।
मौनी अमावस्या पर मौन व्रत रखने का महत्व शास्त्रों में बहुत खास माना गया है।
साथ ही इस दिन कुछ विशेष नियमों का पालन भी किया जाता है।
तो आइए आपको बताते हैं कि मौनी अमावस्या के नियम और किन बातों का रखें विशेष ध्यान।
मौनी अमावस्या पर क्या करें :
मौनी अमावस्या पर बिना अन्न जल ग्रहण किए अनाज का दान करें।
मौनी अमावस्या पर ब्राह्मणों को भोजन करवाने का खास महत्व होता है।
अगर आप ऐसा नहीं कर सकते हैं तो कम से कम एक व्यक्ति के खाने की मात्रा के अनुसार काली उड़द और चावल दान करें।
साथ ही तिल और गरम वस्त्रों का भी दान करें।
साथ ही उसमें कुछ सामर्थ्य के अनुसार धन राशि भी दान करें।
ऐसा करने से आपकी ग्रह दशा में सुधार होता है और आपको पितरों की कृपा प्राप्त होती है।
मौनी अमावस्या पर गाय, कुत्ते और कौवे जैसे जानवरों को खाना खिलाने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है।
इस दिन ऐसा करने से पितृ खुश होते हैं और आशीर्वाद देते हैं।
मान्यता है कि ऐसा करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है।
मौनी अमावस्या पर घर में सत्य नारायण भगवान की कथा करवाने से घर में नकारात्मक शक्तियों का अंत होता है और आपके परिवार में सुख शांति बढ़ती है।
मौनी अमावस्या पर सुबह के वक्त पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाएं और शाम में सरसों के तेल का दीपक भी जलाएं।
साथ ही इस दिन नदी में दीपक प्रवाहित करना भी शुभ माना जाता है।
इसके साथ ही घर में लगी पूर्वजों की तस्वीर के पास भी दीपक जलाना चाहिए!
अमावस्या तिथि पितरों को समर्पित होती है इस लिए दक्षिण दिशा में शाम के वक्त सरसों के तेल का दीपक जरूर जलाएं और साथ ही मुख्य द्वार पर दोनों तरफ 2 दीपक भी जलाकर रखें।
मौनी अमावस्या पर क्या न करें :
मौनी अमावस्या पर लोग अपने पितरों को याद करते हैं और उनका आशीर्वाद लेते हैं।
इस दिन कुछ तामसिक भोजन जैसे मांस, मछली और शराब का सेवन नहीं करना चाहिए।
ऐसा माना जाता है कि इससे पितरों को कष्ट होता है।
पितरों की आत्मा की शांति के लिए उन्हें याद करते समय कुछ भी नकारात्मक नहीं बोलना चाहिए।
कुत्ता, गाय और कौवे जैसे जानवरों को भी परेशान नहीं करना चाहिए।
पितरों के लिए पिंडदान, तर्पण और दान-पुण्य करना बहुत महत्वपूर्ण है।
ऐसा करने से पितरों को शांति मिलती है और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।
साफ - सफ़ाई का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए।
घर के आस - पास गंदगी नहीं फैलानी चाहिए।
इस दिन स्वच्छता का महत्व है।
यह माना जाता है कि स्वच्छ वातावरण सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है।
चन्द्रमा का प्रभाव, महत्त्व, फल तथा उपाय :
ऋग्वेद में कहा गया है कि ‘चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत:।‘
अर्थात चंद्रमा जातक के मन का स्वामी होता है। मन का स्वा मी होने के कारण यदि जन्म कुंडली में चंद्रमा की स्थिति ठीक न हो या वह दोषपूर्ण स्थिति में हो तो जातक को मनऔर मस्तिष्क से संबंधी परेशानियां होती हैं।
चन्द्रमा मां का सूचक है और मन का कारक है। इसकी राशि कर्क होती हैं।
प्रत्येक जन्मपत्री में दो लग्न बनाये जाते हैं।
एक जन्म लग्न और दूसरा चन्द्र लग्न। जन्म लग्न को देह समझा जाये तो चन्द्र लग्न मन है।
बिना मन के देह का कोई अस्तित्व नहीं होता और बिना देह के मन का कोई स्थान नहीं है।
देह और मन हर प्राणी के लिए आवश्यक है इसी लिये लग्न और चन्द्र दोनों की स्थिति देखना ज्योतिष शास्त्र में बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।
सूर्य लग्न का अपना महत्व है।
वह आत्मा की स्थिति को दर्शाता है।
मन और देह दोनों का विनाश हो जाता है परन्तु आत्मा अमर है।
चन्द्र ग्रहों में सबसे छोटा ग्रह है।
परन्तु इसकी गति ग्रहों में सबसे अधिक है।
शनि एक राशि को पार करने के लिए ढ़ाई वर्ष लेता है, बृहस्पति लगभग 13 माह, राहू लगभग 18 महीने और चन्द्रमा सवा दो दिन कितना अंतर है।
चन्द्रमा की तीव्र गति और इसके प्रभावशाली होने के कारण किस समय क्या घटना होगी, चन्द्र से ही पता चलता है।
विंशोत्तरी दशा, योगिनी दशा, अष्टोतरी दशा आदि यह सभी दशाएं चन्द्र की गति से ही बनती है।
चन्द्र जिस नक्षत्र के स्वामी से ही दशा का आरम्भ होता है।
अश्विनी नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक की दशा केतु से आरम्भ होती है क्योंकि अश्विनी नक्षत्र का स्वामी केतु है।
इस प्रकार जब चन्द्र भरणी नक्षत्र में हो तो व्यक्ति शुक्र दशा से अपना जीवन आरम्भ करता है क्योंकि भरणी नक्षत्र का स्वामी शुक्र है।
अशुभ और शुभ समय को देखने के लिए दशा, अन्तर्दशा और प्रत्यंतर दशा देखी जाती है।
यह सब चन्द्र से ही निकाली जाती है।
ग्रहों की स्थिति निरंतर हर समय बदलती रहती है।
ग्रहों की बदलती स्थिति का प्रभाव विशेषकर चन्द्र कुंडली से ही देखा जाता है।
जैसे शनि चलत में चन्द्र से तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव में हो तो शुभ फल देता है और दुसरे भावों में हानिकारक होता है।
बृहस्पति चलत में चन्द्र लग्न से दूसरे, पाँचवे, सातवें, नौवें और ग्यारहवें भाव में शुभ फल देता है और दूसरे भावों में इसका फल शुभ नहीं होता।
इसी प्रकार सब ग्रहों का चलत में शुभ या अशुभ फल देखना के लिए चन्द्र लग्न ही देखा जाता है।
कई योग ऐसे होते हैं तो चन्द्र की स्थिति से बनते हैं और उनका फल बहुत प्रभावित होता है।
चन्द्र से अगर शुभ ग्रह छः, सात और आठ राशि में हो तो यह एक बहुत ही शुभ स्थिति है।
शुभ ग्रह शुक्र, बुध और बृहस्पति माने जाते हैं। यह योग मनुष्य जीवन सुखी, ऐश्वर्या वस्तुओं से भरपूर, शत्रुओं पर विजयी , स्वास्थ्य, लम्बी आयु कई प्रकार से सुखी बनाता है।
जब चन्द्र से कोई भी शुभ ग्रह जैसे शुक्र, बृहस्पति और बुध दसवें भाव में हो तो व्यक्ति दीर्घायु, धनवान और परिवार सहित हर प्रकार से सुखी होता है।
चन्द्र से कोई भी ग्रह जब दूसरे या बारहवें भाव में न हो तो वह अशुभ होता है।
अगर किसी भी शुभ ग्रह की दृष्टि चन्द्र पर न हो तो वह बहुत ही अशुभ होता है।
इस प्रकार से चन्द्र की स्थिति से 108 योग बनते हैं और वह चन्द्र लग्न से ही बहुत ही आसानी के साथ देखे जा सकते हैं।
चन्द्र का प्रभाव पृथ्वी, उस पर रहने वाले प्राणियों और पृथ्वी के दूसरे पदार्थों पर बहुत ही प्रभावशाली होता है।
चन्द्र के कारण ही समुद्र मैं ज्वारभाटा उत्पन्न होता है।
समुद्र पर पूर्णिमा और अमावस्या को 24 घंटे में एक बार चन्द्र का प्रभाव देखने को मिलता है।
किस प्रकार से चन्द्र सागर के पानी को ऊपर ले जाता है और फिर नीचे ले आता है।
तिथि बदलने के साथ-साथ सागर का उतार चढ़ाव भी बदलता रहता है।
प्रत्येक व्यक्ति में 60 प्रतिशत से अधिक पानी होता है।
इस से अंदाज़ा लगाया जा सकता है चन्द्र के बदलने का व्यक्ति पर कितना प्रभाव पड़ता होगा।
चन्द्र के बदलने के साथ - साथ किसी पागल व्यक्ति की स्थिति को देख कर इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
चन्द्र साँस की नाड़ी और शरीर में खून का कारक है।
चन्द्र की अशुभ स्थिति से व्यक्ति को दमा भी हो सकता है।
दमे के लिए वास्तव में वायु की तीनों राशियाँ मिथुन, तुला और कुम्भ इन पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि, राहु और केतु का चन्द्र संपर्क, बुध और चन्द्र की स्थिति यह सब देखने के पश्चात ही निर्णय लिया जा सकता है।
चन्द्र माता का कारक है।
चन्द्र और सूर्य दोनों राजयोग के कारक होते हैं।
इन की स्थिति शुभ होने से अच्छे पद की प्राप्ति होती है।
चन्द्र जब धनी बनाने पर आये तो इसका कोई मुकाबला नहीं कर सकता।
चन्द्र खाने-पीने के विषय में बहुत प्रभावशाली है।
अगर चन्द्र की स्थिति ख़राब हो जाये तो व्यक्ति कई नशीली वस्तुओं का सेवन करने लगता है।
जातक पारिजात के आठवें अध्याय के 100 वे श्लोक में लिखा है चन्द्र उच्च का वृष राशि का हो तो व व्यक्ति मीठे पदार्थ खाने का इच्छुक होता है।
जातक पारिजात के अध्याय 6, श्लोक 81 में लिखा है कि चन्द्र खाने-पीने की आदतों पर प्रभाव डालता है।
इसी प्रकार बृहत् पराशर होरा के अध्याय 57 श्लोक 48 में लिखा है कि अगर चन्द्र की स्थिति निर्बल हो तो शनि की अंतरदशा में व्यक्ति को समय से खाना नहीं मिलता।
किसी भी कुंडली में चंद्र अशुभ होने पर माता को किसी भी प्रकार का कष्ट या स्वास्थ्य को खतरा होता है, दूध देने वाले पशु की मृत्यु हो जाती है।
स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है. घर में पानी की कमी आ जाती है या नलकूप, कुएं आदि सूख जाते हैं।
इस के प्रभाव से मानसिक तनाव, मन में घबराहट, मन में तरह तरह की शंका और सर्दी बनी रहती है. व्यक्ति के मन में आत्महत्या करने के विचार भी बार - बार आते रहते हैं।
अगर मन अच्छा है, मनोबल ऊँचा है तब व्यक्ति के भीतर आत्मविश्वास भी बढ़ता है और वह विपरीत परिस्थितियो में भी डटा रहता है लेकिन यदि किसी व्यक्ति का मन कमजोर है या वह बहुत जल्दी परेशान हो जाता है इस का अर्थ है कि कुण्डली में उसका चंद्रमा कमजोर अवस्था में है।
आज हम कमजोर चंद्रमा की बात करेगें. चंद्रमा जब कुंडली के 6, 8 या 12वें भाव में अकेला स्थित होता है तब कमजोर हो जाता है. व्यक्ति का मन हमेशा अशांत रहता है।
ग्रहों में चंद्रमा को स्त्री स्वरूप माना गया है। भगवान शिव ने चंद्रमा को मस्तक पर धारण किया हुआ है, इस लिए भगवान शिव को चंद्रमा का देवता कहा गया है।
जिस प्रकार सूर्य हमारे व्यक्तित्व को आकर्षक बनाते हैं, उसी प्रकार चंद्रमा हमारे मन को मजबूत करते हैं।
चंद्रमा हमारे मन का कारक है।
चंद्रमा हमारी माता का भी कारक है।
जिनकी कुंडली में चंद्रमा उच्च का होता है, उनको अपनी मां का भरपूर प्यार मिलता है।
जिनकी कुंडली में चंद्रमा दूर होता है, उनको मां का प्यार उतना नहीं मिल पाता।
जिसकी कुंडली में चंद्रमा अच्छा होता है, उसको बलवान कुंडली माना जाता है।
चंद्रमा की उच्च स्थिति मन में सकारात्मक विचारों का प्रवाह करती है।
ऐसे जातक जो भी कार्य करने की ठान लेते हैं, उसको सफलतापूर्वक सम्पादित करके ही दम लेते हैं।
जिनकी कुंडली का स्वामी चंद्र होता है, उनकी कल्पनाशक्ति गजब की होती है।
जिस प्रकार सूर्य का प्रभाव आत्मा पर पूरा पड़ता है, ठीक उसी प्रकार चन्द्रमा का भी मनुष्य पर प्रभाव पड़ता है. खगोलवेत्ता ज्योतिष काल से यह मानते आ रहे हैं कि ग्रह तथा उपग्रह मानव जीवन पर पल - पल पर प्रभाव डालते हैं. जगत की भौतिक परिस्थिति पर भी चंद्रमा का प्रभाव होता है।
चंद्रमा का घटता बढ़ता आकार जिस प्रकार पृथ्वी पर समुद्र में ज्वार भाटा का कारक बनता है उसी प्रकार इसका प्रभाव मनुष्य के तन और मन पर भी पड़ता है।
चन्द्रमा जैसे - जैसे कृष्ण पक्ष में छोटा व शुक्ल पक्ष में पूर्ण होता है वैसे - वैसे मनुष्य के मन पर भी चन्द्र का प्रभाव पड़ता है।
सूर्य के बाद धरती के उपग्रह चन्द्र का प्रभाव धरती पर पूर्णिमा के दिन सबसे ज्यादा रहता है।
जिस तरह मंगल के प्रभाव से समुद्र में मूंगे की पहाड़ियां बन जाती हैं और लोगों का खून दौड़ने लगता है उसी तरह चन्द्र से समुद्र में ज्वार - भाटा उत्पत्न होने लगता है।
जितने भी दूध वाले वृक्ष हैं सभी चन्द्र के कारण उत्पन्न हैं।
चन्द्रमा बीज, औषधि, जल, मोती, दूध, अश्व और मन पर राज करता है।
लोगों की बेचैनी और शांति का कारण भी चन्द्रमा है।
चंद्रमा के प्रभाव आपकी कुंडली मे :
कुंडली में चंद्रमा की स्थिति और उस पर दूसरे ग्रहों के प्रभावों के आधार पर इस बात की गणना करना बहुत आसान हो जाता है कि मनुष्य की मानसिक स्थिति कैसी रहेगी।
अपने ज्योेतिषीय अनुभव में कई बार यह देखा है कि कुंडली में चंद्र का उच्च या नीच होना व्यक्ति के स्वा्भाव और स्वपरूप में साफ दिखाई देता है।
कुछ जन्म कुंडलियां जिनमें चंद्रमा के पीडित या नीच होने पर जातक को कई परेशानियां हो रही थीं-
1. सिर दर्द व मस्तिष्क पीडा जन्म कुंडली में अगर चंद्र 11, 12, 1,2 भाव में नीच का होऔर पाप प्रभाव में हो, या सूर्य अथवा राहु के साथ हो तो मस्तिष्क पीडा रहती हैं ।
इस जातक को 28 वे वर्ष में मस्तिष्क पीडा शुरु हुई थी, जो कि 7 साल तक रही ।
इस दौरान जातक ने अनेक उपाय करवाये ।
2. डिप्रेशन या तनाव : चंद्र जन्म कुंडली में 6, 8, 12 स्थान में शनि के साथ हो ।
शनि का प्रभाव दीर्घ अवधी तक फल देने वाला माना जाता हैं, तथा चंद्र और शनि का मिलन उस घातक विष के समान प्रभाव रखने वाला होता हैं जो धीरे धीरे करके मारता हैं।
शनि नशो ( Puls ) का कारक होता हैं....!
इन दोनो ग्रहो का अशुभ स्थान पर मिलन परिणाम डिप्रेशन व तनाव उतपन्न करता हैं ।
3. भय व घबराहट ( Phobia ) : चंद्र व चतुर्थ भाव का मालिक अष्टम स्थान में हो...!
लग्नेश निर्बल हो तथा चतुर्थ स्थान में मंगल,केतु, व्ययेश, तृतियेश तथा अष्टमेश में से किन्ही दो ग्रह या ज्यादा का प्रभाव चतुर्थ स्थान में हो तो इस भयानक दोष का प्रभाव व्यक्ति को दंश की तरह चुभता रहता हैं।
चतुर्थ स्थान हमारी आत्मा या चित का प्रतिनिधित्व करता हैं....!
ऐसे में इस स्थान के पाप प्रभाव में होने पर उसका प्रभाव सीधे सीधे हमारे मन व आत्मा पर पडता हैं ।
4. मिर्गी के दौरे : चंद्र राहु या केतु के साथ हो तथा लग्न में कोई वक्री ग्रह स्थित हो तो मिर्गी के दौरे पडते हैं।
5- पागलपन या बेहोशी- चतुर्थ भाव का मालिक तथा लग्नेश पीडित हो या पापी ग्रहो के प्रभाव में हो, चंद्रमा सूर्य के निकट हो तो पागलपन या मुर्छा के योग बनते हैं।
इस योग में मन व बुद्धि को नियंत्रित करने वाले सभी कारक पीडित होते हैं ।
चंद्र, लग्न, व चतुर्थेश इन पर पापी प्रभाव का अर्थ हैं व्यक्ति को मानसिक रोग होना।
लग्न को सबसे शुभ स्थान माना गया हैं परन्तु इस स्थान में किसी ग्रह के पाप प्रभाव में होने से उस ग्रह के कारक में हानी दोगुणे प्रभाव से होती हैं ।
6. आत्महत्या के प्रयास : अष्टमेश व लग्नेश वक्री या पाप प्रभाव में हो तथा चंद्र के तृतिय स्थान में होने से व्यक्ति बार बार अपने को हानि पहुंचाने की कोशिश करता हैं ।
या फिर तृतियेश व लग्नेश शत्रु ग्रह हो, अष्टम स्थान में चंद अष्टथमेश के साथ होतो जन्म कुंडली में आत्म हत्या के योग बनते हैं ।
कुछ ऐसे ही योग हिटलर की पत्रिका में भी थे जिनकी वजह से उसने आत्मदाह किया।
कुंडली के बारह भावों में चंद्रमा का फल :
1 : पहले लग्न में चंद्रमा हो तो जातक बलवान, ऐश्वर्यशाली, सुखी, व्यवसायी, गायन वाद्य प्रिय एवं स्थूल शरीर का होता है...!
2 : दूसरे भाव में चंद्रमा हो तो जातक मधुरभाषी, सुंदर, भोगी, परदेशवासी, सहनशील एवं शांति प्रिय होता है....!
3 : तीसरे भाव में अगर चंद्रमा हो तो जातक पराक्रम से धन प्राप्ति, धार्मिक, यशस्वी, प्रसन्न, आस्तिक एवं मधुरभाषी होता है.
4 : चौथे भाव में हो तो जातक दानी, मानी, सुखी, उदार, रोगरहित, विवाह के पश्चात कन्या संततिवान, सदाचारी, सट्टे से धन कमाने वाला एवं क्षमाशील होता है.
5 : लग्न के पांचवें भाव में चंद्र हो तो जातक शुद्ध बुद्धि, चंचल, सदाचारी, क्षमावान तथा शौकीन होता है.
6 : लग्न के छठे भाव में चंद्रमा होने से जातक कफ रोगी, नेत्र रोगी, अल्पायु, आसक्त, व्ययी होता है.
7 : चंद्रमा सातवें स्थान में होने से जातक सभ्य, धैर्यवान, नेता, विचारक, प्रवासी, जलयात्रा करने वाला, अभिमानी, व्यापारी, वकील एवं स्फूर्तिवान होता है.
8 : आठवें भाव में चंद्रमा होने से जातक विकारग्रस्त, कामी, व्यापार से लाभ वाला, वाचाल, स्वाभिमानी, बंधन से दुखी होने वाला एवं ईर्ष्यालु होता है.
9 : नौंवे भाव में चंद्रमा होने से जातक संतति, संपत्तिवान, धर्मात्मा, कार्यशील, प्रवास प्रिय, न्यायी, विद्वान एवं साहसी होता है.
10 : दसवें भाव में चंद्रमा होने से जातक कार्यकुशल, दयालु, निर्मल बुद्धि, व्यापारी, यशस्वी, संतोषी एवं लोकहितैषी होता है.
11 : लग्न के ग्यारहवें भाव में चंद्रमा होने से जातक चंचल बुद्धि, गुणी, संतति एवं संपत्ति से युक्त, यशस्वी, दीर्घायु, परदेशप्रिय एवं राज्यकार्य में दक्ष होता है.
12 : लग्न के बारहवें भाव में चंद्रमा होने से जातक नेत्र रोगी, कफ रोगी, क्रोधी, एकांत प्रिय, चिंतनशील, मृदुभाषी एवं अधिक व्यय करने वाला होता है.
ज्योतिषाचार्य पंडारामा प्रभु राज्यगुरु
ऑन लाइन/ ऑफ लाइन ज्योतिषी


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