सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
सुखी दाम्पत्य जीवन और जन्म कुंडली............?
हर मनुष्य उसका जीवन मे पर्ण आयुष्य दरमियान उमर के हिसाब से अनेक अवस्थाओ से पसार होता है,
अवस्थाओं मे देखे तो बाल्यवस्था, किशोरावस्था , युवावस्था , पौठावस्था और वुध्धावस्था है,
किसी भी व्यक्तिका वैवाहिक जीवन सामान्य रीते युवावस्था से शुरू होता है,
एकंदारे कुल जिंदगी के वर्षो मे ६०% से ७०% जिंदगी का वर्षो वैवाहिक जीवन अर्थात दाम्पत्य जीवन मे पसार करता है ,
ये समय लंबा होने से जताक जब प्रभुता मे पगला पाड़ता है,
तब हर मनुष्य को अगत दाम्पत्य जीवन केशा होगा एशि चिंता होती है ?
उसके बाद का वर्षो कैसे पसार होगा ? क्या मे सुखी होगा या दुखी ?
जैसे अनेक सवाल मगज मे घुमा करते है,
इस लिए हर व्यक्ति पोतानी कुंडली और सामने वाला पात्र की कुंडली के साथ मिलान करता है ,
जब हम ज्योतिष
शास्त्र की दर्ष्टि से लग्न मेलापक्ष के लिए कुंडली मिलान करवाते है ,
तब अमुक ज्योतिष
लोग तो सिर्फ मगल दोष, नाडी दोष , और गुणाक को ही महत्व देता है,
और कुंडली के अनेक
दोषों भी यथावत रहेता है,
और गुणाक १८ से कम मिलता है, तो कुंडली मिलती
नहीं है,
एषा बोलते है, अथवा दोषों का निवारण करना पड़ेगा,
और गुणाक १८ से
ऊपर मिलता है,
कुंडली का मिलान होता है, येसा बोलता है,
आज तक २५ साल का
मेरा ज्योतिष का अनुभव मे और मेरा पापा और दादाजी के पास से भी मुझे
जो शिखने मे मिला है ,
वाही मुजब लग्न मेडापक्ष के लिए सिर्फ इतनी बाबतो देखने से निर्णय करना ये
योग्य बात नही है,
लग्न मेडापक्ष मे दुश्ररा पासाऔ का विचार करना जरुरी घटता है ,
इसके बाद निर्णय
लेना जरुरी है,
पहेला हर व्यक्ति अगत वैवाहिक जीवन सम्पूर्ण रीते तंदुरस्त और सुखी होने की
आशाऔ रखता है,
दाम्पत्य जीवन सुखी और तंदुरस्त रहे इसमे चार बाबतो का विचार करना जरुरी है,
१, शारीरिक सज्जता , २, जातीय सज्जता , ३, मानसिक सज्जता , और ४, आतिमय सज्जता ये
चार बाबतो मे कुंडली का क्या ग्रहों के भावो का निर्देश करता है,
ते ज्योतिष
शास्त्र से देखा जाता है, और जे ते भाव या ग्रहों का अमल जेते बाबतो की सज्जता ऊपर रहेला है
वाही भाव या
ग्रहों कुंडली मेडापक्ष मे ध्यान लेना पड़ता है,
लग्न जीवन की
शुरूआत सामान्य रीते युवावस्था मे होती है ,
इसे बाद पौठा
वस्था आती है बाद वृध्ध वस्था आती है,
ऐसे मात्र तिन तबक्काऔ
मे वैवाहिक जिदगी बाटी जाती है,
ये तिन तबक्काऔ मै जातीय सज्जता , मानसिक सज्जता और
आत्मीय सज्जता अनुक्रमे संकड़ाये होती है,
व्यक्ति के
दाम्पतीय जीवन मे सब से पहेली महत्त्व की सज्जता होती है,
शारीरिक सज्जता , " पहेला सुख ते जाते
नर्या
" जातक की शारीरिक सज्जता कुंडली के जेते भाव से स्फुटित होती
है,
वाही प्रथम भाव, अर्थात देह भाव, अर्थात लग्न भाव, जातक के कुंडली मे लग्न मे होने वाली राशी,
लग्नेश की स्थिति, लग्नेश के साथ
बिराजमान ग्रह, लग्न भाव पर दर्ष्टि करनेवाला ग्रहों, सब का अभ्यास कर
के जातक का देखाव,
तंदुरस्ती, वर्णन, स्वभाव, गुण, आगुण, खुबिओं, खामिओं, चरित्र, और दैहिक बंधारण, का विचार करना जरुरी है,
इसे उपरांत रोग
स्थान और रोगेश तेमज आयुष्य स्थान और अष्टमेश और इसका मारकेश का विचार करके
व्यक्ति का तंदुरस्ती और आयुष्य के बारे मे देखा जाता है,
इसमे सुखी
दम्पतियजीवन मे शारीरिक सज्जता ते मूल पायो है,
इस लिए ऊपर लिखी
बाबतो की चकाशनी करनी जरुरी होती है,
वैवाहिक जीवन मे
सब से पहेला पगला है जातीय सज्जता का है,
अर्थात व्यक्ति की
जातीय बाबतो के लिए सक्षम होना जरुरी है ,
इस मे सामनेवाला
पात्र (पति / पत्नी ) की जातीय बाबतो
द्वारा संतोष देने के समक्ष शक्तिमान होना चाहिए,
जातीय सज्जता शुक्र - मगल तथा शुक्र - चन्द्र के संबंधो से जानकारी मिल शक्ति है,
शुक्र से सुन्दरता , रसिकता , प्रेम , वात्सल्य , वासना, शुंगार, क्रम-भाव, और यौवन के बारेमे विचारी शकता है,
जब चन्द्र से मन , विचारो , और लगनिओं उर्मिओं के बारेमे विचार किया जाता है ,
स्त्री - पुरुष की कुंडली मे एक न शुक्र पर दुश्ररा का चन्द्र पड़ता होय या द्रष्टि से भी सबंध होता है ,
या दोनों के बिच शुभ सबंध होता है,
अर्थात शुभ नव - पंचम , शुभ बिया - बारू , शुभ षडाषट्क, शुभ त्रिरेकादाश, या शुभ चतुर्थ - दशम का योग होता है ,
एषा पत्रों मे एक दुशरो के बिच मे पर्थम द्रष्टि से प्रेम मे पड़ जाता है, वाही एक दुश्ररो को खूब प्रेम करता है,
एक दुश्ररा का प्रिय पात्र बन जाता है,
एक दोनों को देखने की , मिलनेकी मन मे उत्कंट झखना बना रखते है, और प्रेम सबंध के बाद वैवाहिक सबंध मे परिवर्तन होता है,
वैवाहिक सबंध ये युवावस्था ये अवस्था मे दैहिक सुख महत्व का भाग भजते है,
दैहिक सुख के लिए जातीय क्षमता होनी जरुरी है, जातीय सज्जता के लिए तीव्र देह आकर्षण के लिए शुक्र - मगल का सबंधो देखा जाता है,
इसमे एक न शुक्र पर दुश्ररा का मगल , युति , प्रति - युति या द्रष्टि के सबंध मे होना जरुरी है,
बन्ने के बिचमे तीव्र जातीय - आकर्षण खुबज होता है, और एक दुश्ररा का दैहिक जरूरियातो संतोषी शकता है,
शुक्र मे काम, वासना, प्रेम है,
उपरांत प्रेम भाव अथवा भाव - विभोर बनता है,
मगल एटले शक्ति , जुशो , आवेग , हिमंत , निडरता , मगल काम - विभोर बनता है ,
अकेला शुक्र डरपोक होता है, परंतु मगल का साथ मिलता है तो कम
की तृप्ति अनुभवता है,
ऐसे
जातीय सज्जता के लिए स्त्री - पुरुष की कुंडली मे शुक्र - चन्द्र , शुक्र - मगल का योग जवाबदार है,
हमारा समाजशास्त्रीओं ने भी
वैवाहिक जीवन का अभियास कर के तारण निकला है,
के दाम्प्तिय जीवन मे काम - सुख, देहिक - सुख , जातीय सुख महत्व का भाग
होता है,
युवावस्था के बाद पौठावस्था आती
है, पौठा
वस्था मे जातक जयादा परिपक्व होता है ,
सामाजिक संबंधो पर जयादा नजर रखता है,
ये तब्बका मे मानसिक सज्जता एक
दोनों के बिच मे अनुकूल होती है
ऐसी होनी चाहिए,
इस उमर मे व्यक्ति को समाज मे ज्यादा
मान , सन्मान, पद , मोभो , और प्रतिष्ठा प्राप्त करने
की झखना होती है,
इसमे
पहेला जातक की लागणीऔ, उर्मिओं
, और
विचारो का योग्य प्रतिभाव और जातक को जीवनसगिनी से मिलने की तमन्ना होती है,
चन्द्र ये मन का कारक है, मन का विचारो , लाग्निओं , भावो , उर्मिओं बहुत रहेती है,
मन मे अनेक विचारो आता है, और विचारोका प्रगटिकरण वाणी -
वर्तन द्वारा होता है,
इसमे
जातक का मान प्रतिष्ठा , माभो, जयादा आगे बठे एषा वर्तन करता है, और जीवनसगिनी से बहुत साथ मिलता
रहेता है,
ऐसा
जातक जयादा मगज मे घुमाता है,
तब कहा जाता है,
एक का चन्द्र दुश्ररा का चन्द्र के साथ
शुभ सबंध से जुड़ा हुवा है , और बन्ने मे से एक का चन्द्र राहू या केतु अथवा शनि के द्वारा
दूषित बना हो तो दोनों के विचारो मे साम्यता अंक्बंध रहेती नही है,
इसमें विचारो की विषमताऔ कवचित
वाणी - वर्तन द्वारा प्रगट होती है, और पौठावस्था के दामप्तिय जीवन मे
झगड़ा शुरू होता है, और पौठावस्था मे जीवन की गाड़ी बिगड़ जाती है,
ऐसा पौठावस्था मे दंपतिय जीवन सुख
रूप पसार करने के लिए
चन्द्र का बलवान होना जरुरी है, और एक - दुश्ररे का चन्द्र के बिच
मे शुभ - योग होना भी जरुरी है,
हर मनुष्य का जीवन का अंतिम तब्ब्को
है, वृध्धावस्था
का है,
जातक
इस अवस्था मे वृध्ध होता है,
कोई बार बीमारीऔ बहुत लंबा समय की भी होती है,
इसमे बिमारिओं की सारवार बहुत
लंबा समय तक चलती है,
तो
इसमे जातक की सेवा - चाकरी मे इसकी जीवनसगिनी से जयादा अच्छी तरह कर शके ऐसी जातक
की इंच्छा होती है,
जो
दोनों के बिच आतिमयता होती है,
इस मे आत्मा कारक सूर्य है, दंपतिकी कुंडली मे सूर्य एक दुश्ररा के
बिच शुभ रीते संकड़ायेल होगा तो दोनों का आतिमयता चोकस एक होगा,
इसमे एक की शारीरिक पीड़ा
दुश्ररा का आत्मा को वलोवी नाखता है, ये हुई आत्मीय सज्जता.
सुखी दामप्तिय जीवन के लिए ऊपर
दिया लिखी सज्जताऔ देखनी जरुरी है,
उदारण कुंडली ०१ .
पुरुष जातक
लग्न . सूर्य . चन्द्र . मगल . बुध . गुरु .
शुक्र . शनि. राहू, केतु .
01. 07. 10. 02. 07. 07. 06. 08. 06. 12.
स्त्री जातक
लग्न . सूर्य . चन्द्र . मगल. बुध . गुरु .
शुक्र . शनि . राहू . केतु .
01. 10. 01. 10. 09. 12. 11. 10. 03. 09.
स्त्री की कुंडली मे लग्नेश और
अष्टमेष मगल उच्च का है, और
छठा स्थान पर स्वग्रही गुरु की द्रष्टि है, इसमे शारीरिक सज्जता उत्तम है,
पुरुष जातक की कुंडली मे लग्नेश
और अष्टमेश मगल पर शनि की दर्ष्टि दिर्धर्यु देता है, और छठा स्थाने शुक्र संजीवनी का कारक है,
इसमें शारीरिक सज्जता उत्तम है ,
स्त्री के शुक्र से पुरुष का मगल चोथे बैठकर शुभ चतुर - दशम योग बनाता है,
वाही जातीय सज्जता भी पुरवार करता
है ,
ऐसे ही सूर्य और चन्द्र भी एक - दुश्ररो के बिच शुभ चतुर - दशम योग बनाता है,
इस लिए ये दंपति जातक का तीनो
तब्बकाऔ मे दम्पतिय जीवन सुखमय पसार किया है,
उदारण कुंडली 02 .
पुरुष जातक
लग्न . सूर्य . चन्द्र. मगल . बुध .
गुरु . शुक्र . शनि . राहू. केतु
11
06. 02 . 04 . 06 .
11 . 08 . 10 . 04 . 10 .
स्त्री जातक
लग्न . सूर्य . चन्द्र. मगल. बुध
. गुरु. शुक्र. शनि . राहू. केतु.
05
. 01 . 02 . 06 . 02 . 04 .
03. 12 . 01 . 07 .
स्त्री जातक की कुंडली मे लग्नेश सूर्य नवंम
भाव मे उच्च का है छठा और सप्तमेश का स्वामी शनि अष्टमेश मे गुरु की उच्च
दर्ष्टि मे है ,
वाही शारीरिक सज्जता के लिए उत्तम है,
पुरुष जातक की कुंडली मे लग्नेश मालिक शनि
बारमे स्थान मे स्वग्रही बनकर बिराजमान है,
अष्टम स्थानमे
स्वग्रही बुध बिराजमान है वाही शारीरिक सज्जता के लिए उत्तम है,
दोनों कुंडली मे शुक्र - चन्द्र और शुक्र
मगल एक दुश्ररा से बियाबारा मे अशुभ षडाष्टक मे है,
चन्द्र अशुभ बियाबारा मे और सूर्य भी अशुभ
षडाष्टक मे है,
इस में जातीय , मानसिक और आतिमय
सज्जता ठीक ठीक मिलती नही है,
इस दोनों के बिच
मनमेल रहेता नही है,
दररोज का झगड़ा रहेता है, और दामप्तिय जीवन दुखी रहेता है,
PANDIT PRABHULAL P.
VORIYA RAJPUT JADEJA KULL GURU :-
PROFESSIONAL
ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
SHREE
SARSWATI JYOTISH KARYALAY
(2
Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Shri Albai Nivas ", Near Mahaprabhuji bethak,
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