सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
।। श्री यजुर्वेद और श्री गर्गसंहिता अनुसार कुंडली मिलान का विचार कैसे कर रहे है ।।
हमारे ग्रथों के अंदर जातक के लग्न जीवन का कुंडली मिलान विचार कैसे करें.....
पति - पत्नी की प्रकृति, विचार, स्वभाव, गुणधर्म, रुचियां, आवश्यकताएं, पसंद आदि समान हो तो दांपत्य जीवन सुखी होता है ।
और यदि पति - पत्नी की सोच, गुणधर्म, स्वभाव आदि नहीं मिलते हो तो दांपत्य जीवन कष्टप्रद और पारिवारिक जीवन क्लेश युक्त हो जाता है ।
अतः पति - पत्नी का जीवन सुखमय व्यतीत हो ।
संतान सुख, धनसुख, सामाजिक प्रतिष्ठा, ख्याति- प्रसिद्धि, मान-सम्मान, ऐश्वर्य, संपत्ति, भूमि, भवन, वाहन सुख जैसे अनेकों सुखों की प्राप्ति विवाह के पश्चात हो तो ग्रहों का मिलान शुभ है ।
अन्यथा यदि विवाह पश्चात अनेकों पारिवारिक, आर्थिक, शारीरिक, मानसिक, परेशानियों से जातक घिरा हो तो ग्रह गुण सही तरीके से मिले नहीं है. कुछ कमी रही है ।
अतः पति - पत्नी का दांपत्य जीवन सभी प्रकार से सुखी रहे ।
किसी प्रकार की अनहोनी नहीं घटे।
इसी लिए विवाह पूर्व कुंडलियों का मिलान किया जाता है ।
कुंडली मिलान में सिर्फ गुणों का मिलान ही महत्वपूर्ण नहीं है ।
बल्कि ग्रहों का मिलान अधिक जरूरी है ।
मैंने ऐसी अनेकों कुंडलियां देखी है ।
जिनके कम गुण मिलने पर भी गृहस्थि सफल रही है ।
और ऐसी भी अनेकों कुंडलियां देखी है जिनके अधिक गुण मिलने पर भी विवाह सफल नहीं रहे हैं।
अतः गुण के साथ - साथ लग्न कुंडली एवं नवमांश कुंडली का अध्ययन स्त्री, पुरुष दोनों की कुंडलियों में करना चाहिए.
.. कुंडलियां मिलान करते समय रखे विशेष सावधानी....!
कुंडलियां मिलान करते समय विशेष सावधानी की आवश्यकता होती है ।
सिर्फ गुण मिलाकर ही इतिश्री नहीं करना चाहिए ।
किंतु लड़के लड़की दोनों के ग्रहों की शत्रु मैत्री भाव तथा दोनों की कुंडली में संतान, धन, आयु आदि आवश्यक रूप से देखें।
क्योंकि विवाह के पश्चात संतान न हो तो गृहस्थ जीवन अधूरा है।
यदि धन ना हो तो दांपत्य जीवन संघर्ष में हो जाता है ।
अतः संतान धन की स्थिति कैसी रहेगी ।
दोनों का जीवन एक साथ होने पर और एक मुख्य बात आयु भी है।
किसी एक की आयु नहीं हो तो दांपत्य जीवन पूर्णता नष्ट हो जाता है ।
अतः सुख तभी प्राप्त होगा ।
जब आयु होगी. ।
.. कुंडली मिलान करते समय इनका भी रखें ध्यान..
स्वास्थ्य एवं स्वभाव. भौतिक सुख तथा परिवार. जातक जातिका के गुणधर्म, चाल चरित्र आदि सामाजिक स्थिति, भवन, वाहन आदि विद्या, संगति, संतान होगी कि नहीं।
व्यापार , नौकरी , आजीविका के साधन क्या क्या है ।
विवाह योग, प्रेम विवाह योग भी, तलाक योग आदि।
बीमारियों की स्थिति, दुर्घटनाएं, धर्म - कर्म रुचि ।
भाग्योदय कब होगा ।
राज्य, नौकरी, व्यापार, पित्र, धन, पदोन्नति होगी कि नहीं।
आय की स्थिति, पैर की स्थिति आदि।
जेल यात्रा, हानि, ऋण, हत्या, आत्महत्या आदि योगों का भी सूक्ष्म अध्ययन कर लेना चाहिए ।
अतः कुंडलियों का मिलान हमेशा किसी विद्वान ज्योतिषी से ही करवाना चाहिए।
जय माताजी...!
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बुध प्रदोष व्रत परिचय एवं विस्तृत विधि :
प्रत्येक चन्द्र मास की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत रखने का विधान है. यह व्रत कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों को किया जाता है. सूर्यास्त के बाद के 2 घण्टे 24 मिनट का समय प्रदोष काल के नाम से जाना जाता है. प्रदेशों के अनुसार यह बदलता रहता है. सामान्यत: सूर्यास्त से लेकर रात्रि आरम्भ तक के मध्य की अवधि को प्रदोष काल में लिया जा सकता है।
ऐसा माना जाता है कि प्रदोष काल में भगवान भोलेनाथ कैलाश पर्वत पर प्रसन्न मुद्रा में नृ्त्य करते है. जिन जनों को भगवान श्री भोलेनाथ पर अटूट श्रद्धा विश्वास हो, उन जनों को त्रयोदशी तिथि में पडने वाले प्रदोष व्रत का नियम पूर्वक पालन कर उपवास करना चाहिए।
यह व्रत उपवासक को धर्म, मोक्ष से जोडने वाला और अर्थ, काम के बंधनों से मुक्त करने वाला होता है. इस व्रत में भगवान शिव की पूजन किया जाता है. भगवान शिव कि जो आराधना करने वाले व्यक्तियों की गरीबी, मृ्त्यु, दु:ख और ऋणों से मुक्ति मिलती है।
प्रदोष व्रत की महत्ता :
शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत को रखने से दौ गायों को दान देने के समान पुन्य फल प्राप्त होता है. प्रदोष व्रत को लेकर एक पौराणिक तथ्य सामने आता है कि " एक दिन जब चारों और अधर्म की स्थिति होगी, अन्याय और अनाचार का एकाधिकार होगा, मनुष्य में स्वार्थ भाव अधिक होगी. तथा व्यक्ति सत्कर्म करने के स्थान पर नीच कार्यो को अधिक करेगा।
उस समय में जो व्यक्ति त्रयोदशी का व्रत रख, शिव आराधना करेगा, उस पर शिव कृ्पा होगी. इस व्रत को रखने वाला व्यक्ति जन्म - जन्मान्तर के फेरों से निकल कर मोक्ष मार्ग पर आगे बढता है. उसे उतम लोक की प्राप्ति होती है।
व्रत से मिलने वाले फल :
अलग- अलग वारों के अनुसार प्रदोष व्रत के लाभ प्राप्त होते है।
जैसे : सोमवार के दिन त्रयोदशी पडने पर किया जाने वाला वर्त आरोग्य प्रदान करता है।
सोमवार के दिन जब त्रयोदशी आने पर जब प्रदोष व्रत किया जाने पर, उपवास से संबन्धित मनोइच्छा की पूर्ति होती है।
जिस मास में मंगलवार के दिन त्रयोदशी का प्रदोष व्रत हो, उस दिन के व्रत को करने से रोगों से मुक्ति व स्वास्थय लाभ प्राप्त होता है एवं बुधवार के दिन प्रदोष व्रत हो तो, उपवासक की सभी कामना की पूर्ति होने की संभावना बनती है।
गुरु प्रदोष व्रत शत्रुओं के विनाश के लिये किया जाता है।
शुक्रवार के दिन होने वाल प्रदोष व्रत सौभाग्य और दाम्पत्य जीवन की सुख - शान्ति के लिये किया जाता है।
अंत में जिन जनों को संतान प्राप्ति की कामना हो, उन्हें शनिवार के दिन पडने वाला प्रदोष व्रत करना चाहिए।
अपने उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए जब प्रदोष व्रत किये जाते है, तो व्रत से मिलने वाले फलों में वृ्द्धि होती है।
व्रत विधि :
सुबह स्नान के बाद भगवान शिव, पार्वती और नंदी को पंचामृत और जल से स्नान कराएं।
फिर गंगाजल से स्नान कराकर बेल पत्र, गंध, अक्षत (चावल ), फूल, धूप, दीप, नैवेद्य ( भोग ), फल, पान, सुपारी, लौंग और इलायची चढ़ाएं। फिर शाम के समय भी स्नान करके इसी प्रकार से भगवान शिव की पूजा करें।
फिर सभी चीजों को एक बार शिव को चढ़ाएं।
और इसके बाद भगवान शिव की सोलह सामग्री से पूजन करें।
बाद में भगवान शिव को घी और शक्कर मिले जौ के सत्तू का भोग लगाएं। इसके बाद आठ दीपक आठ दिशाओं में जलाएं।
जितनी बार आप जिस भी दिशा में दीपक रखेंगे, दीपक रखते समय प्रणाम जरूर करें।
अंत में शिव की आरती करें और साथ ही शिव स्त्रोत, मंत्र जाप करें। रात में जागरण करें।
प्रदोष व्रत समापन पर उद्धापन :
इस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद व्रत का समापन करना चाहिए. इसे उद्धापन के नाम से भी जाना जाता है।
उद्धापन करने की विधि :
इस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद व्रत का समापन करना चाहिए. इसे उद्धापन के नाम से भी जाना जाता है।
इस व्रत का उद्धापन करने के लिये त्रयोदशी तिथि का चयन किया जाता है. उद्धापन से एक दिन पूर्व श्री गणेश का पूजन किया जाता है. पूर्व रात्रि में कीर्तन करते हुए जागरण किया जाता है. प्रात: जल्द उठकर मंडप बनाकर, मंडप को वस्त्रों या पद्म पुष्पों से सजाकर तैयार किया जाता है. "ऊँ उमा सहित शिवाय नम:" मंत्र का एक माला अर्थात 108 बार जाप करते हुए, हवन किया जाता है. हवन में आहूति के लिये खीर का प्रयोग किया जाता है।
हवन समाप्त होने के बाद भगवान भोलेनाथ की आरती की जाती है।
और शान्ति पाठ किया जाता है. अंत: में दो ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है. तथा अपने सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा देकर आशिर्वाद प्राप्त किया जाता है।
बुध प्रदोष व्रत :
सूत जी आगे बोले- “बुध त्रयोदशी प्रदोष व्रत से सर्व कामनाएं पुर्ण होती हैं।
इस व्रत में हरी वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिए ।
शंकर भगवान की आराधना धूप, बेल - पत्रादि से करनी चाहिए।”
व्रत कथा
एक पुरुष का नया - नया विवाह हुआ ।
विवाह के दो दिनों बाद उसकी पत्नी मायके चली गई ।
कुछ दिनों के बाद वह पुरुष पत्नी को लेने उसके यहां गया ।
बुधवार जो जब वह पत्नी के साथ लौटने लगा तो ससुराल पक्ष ने उसे रोकने का प्रयत्न किया कि विदाई के लिए बुधवार शुभ नहीं होता ।
लेकिन वह नहीं माना और पत्नी के साथ चल पड़ा ।
नगर के बाहर पहुंचने पर पत्नी को प्यास लगी ।
पुरुष लोटा लेकर पानी की तलाश में चल पड़ा ।
पत्नी एक पेड़ के नीचे बैठ गई ।
थोड़ी देर बाद पुरुष पानी लेकर वापस लौटा उसने देखा कि उसकी पत्नी किसी के साथ हंस - हंसकर बातें कर रही है और उसके लोटे से पानी पी रही है ।
उसको क्रोध आ गया ।
वह निकट पहुंचा तो उसके आश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा ।
उस आदमी की सूरत उसी की भांति थी ।
पत्नी भी सोच में पड़ गई ।
दोनों पुरुष झगड़ने लगे ।
भीड़ इकट्ठी हो गई ।
सिपाही आ गए ।
हम शक्ल आदमियों को देख वे भी आश्चर्य में पड़ गे ।
उन्होंने स्त्री से पूछा ‘उसका पति कौन है?’
वह किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई ।
तब वह पुरुष शंकर भगवान से प्रार्थना करने लगा-
‘हे भगवान! हमारी रक्षा करें।
मुझ से बड़ी भूल हुई कि मैंने सास - श्वशुर की बात नहीं मानी और बुधवार को पत्नी को विदा करा लिया ।
मैं भविष्य में ऐसा कदापि नहीं करूंगा।’
जैसे ही उसकी प्रार्थना पूरी हुई, दूसरा पुरुष अन्तर्धान हो गया।
पति - पत्नी सकुशल अपने घर पहुंच गए। उस दिन के बाद से पति - पत्नी नियमपूर्वक बुध त्रयोदशी प्रदोष व्रत रखने लगे।
प्रदोषस्तोत्रम् :
।। श्री गणेशाय नमः।।
जय देव जगन्नाथ जय शङ्कर शाश्वत ।
जय सर्वसुराध्यक्ष जय सर्वसुरार्चित ॥ १॥
जय सर्वगुणातीत जय सर्ववरप्रद ।
जय नित्य निराधार जय विश्वम्भराव्यय ॥ २॥
जय विश्वैकवन्द्येश जय नागेन्द्रभूषण ।
जय गौरीपते शम्भो जय चन्द्रार्धशेखर ॥ ३॥
जय कोट्यर्कसङ्काश जयानन्तगुणाश्रय ।
जय भद्र विरूपाक्ष जयाचिन्त्य निरञ्जन ॥ ४॥
जय नाथ कृपासिन्धो जय भक्तार्तिभञ्जन ।
जय दुस्तरसंसारसागरोत्तारण प्रभो ॥ ५॥
प्रसीद मे महादेव संसारार्तस्य खिद्यतः ।
सर्वपापक्षयं कृत्वा रक्ष मां परमेश्वर ॥ ६॥
महादारिद्र्यमग्नस्य महापापहतस्य च ।
महाशोकनिविष्टस्य महारोगातुरस्य च ॥ ७॥
ऋणभारपरीतस्य दह्यमानस्य कर्मभिः ।
ग्रहैः प्रपीड्यमानस्य प्रसीद मम शङ्कर ॥ ८॥
दरिद्रः प्रार्थयेद्देवं प्रदोषे गिरिजापतिम् ।
अर्थाढ्यो वाऽथ राजा वा प्रार्थयेद्देवमीश्वरम् ॥ ९॥
दीर्घमायुः सदारोग्यं कोशवृद्धिर्बलोन्नतिः ।
ममास्तु नित्यमानन्दः प्रसादात्तव शङ्कर ॥ १०॥
शत्रवः संक्षयं यान्तु प्रसीदन्तु मम प्रजाः ।
नश्यन्तु दस्यवो राष्ट्रे जनाः सन्तु निरापदः ॥ ११॥
दुर्भिक्षमरिसन्तापाः शमं यान्तु महीतले ।
सर्वसस्यसमृद्धिश्च भूयात्सुखमया दिशः ॥ १२॥
एवमाराधयेद्देवं पूजान्ते गिरिजापतिम् ।
ब्राह्मणान्भोजयेत् पश्चाद्दक्षिणाभिश्च पूजयेत् ॥ १३॥
सर्वपापक्षयकरी सर्वरोगनिवारणी ।
शिवपूजा मयाऽऽख्याता सर्वाभीष्टफलप्रदा ॥ १४॥
॥ इति प्रदोषस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
कथा एवं स्तोत्र पाठ के बाद महादेव जी की आरती करें
ताम्बूल, दक्षिणा, जल -आरती :
तांबुल का मतलब पान है। यह महत्वपूर्ण पूजन सामग्री है। फल के बाद तांबुल समर्पित किया जाता है। ताम्बूल के साथ में पुंगी फल (सुपारी), लौंग और इलायची भी डाली जाती है । दक्षिणा अर्थात् द्रव्य समर्पित किया जाता है। भगवान भाव के भूखे हैं। अत: उन्हें द्रव्य से कोई लेना-देना नहीं है। द्रव्य के रूप में रुपए, स्वर्ण, चांदी कुछ भी अर्पित किया जा सकता है।
आरती पूजा के अंत में धूप, दीप, कपूर से की जाती है। इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। आरती में एक, तीन, पांच, सात यानि विषम बत्तियों वाला दीपक प्रयोग किया जाता है।
भगवान शिव जी की आरती :
ॐ जय शिव ओंकारा,भोले हर शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ हर हर हर महादेव...॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
तीनों रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
अक्षमाला बनमाला मुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भोले शशिधारी ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता।
जगकर्ता जगभर्ता जगपालन करता ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठि दर्शन पावत रुचि रुचि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
लक्ष्मी व सावित्री, पार्वती संगा ।
पार्वती अर्धांगनी, शिवलहरी गंगा ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।
पर्वत सौहे पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।
जटा में गंगा बहत है, गल मुंडल माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
ॐ जय शिव ओंकारा भोले हर शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा ।। ॐ हर हर हर महादेव।।
कर्पूर आरती :
कर्पूरगौरं करुणावतारं, संसारसारम् भुजगेन्द्रहारम्।
सदावसन्तं हृदयारविन्दे, भवं भवानीसहितं नमामि॥
मंगलम भगवान शंभू
मंगलम रिषीबध्वजा ।
मंगलम पार्वती नाथो
मंगलाय तनो हर ।।
मंत्र पुष्पांजलि :
मंत्र पुष्पांजली मंत्रों द्वारा हाथों में फूल लेकर भगवान को पुष्प समर्पित किए जाते हैं तथा प्रार्थना की जाती है।
भाव यह है कि इन पुष्पों की सुगंध की तरह हमारा यश सब दूर फैले तथा हम प्रसन्नता पूर्वक जीवन बीताएं।
ॐ यज्ञेन यज्ञमयजंत देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।
ते हं नाकं महिमान: सचंत यत्र पूर्वे साध्या: संति देवा:
ॐ राजाधिराजाय प्रसह्ये साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे स मे कामान्कामकामाय मह्यम् कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु।
कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नम:
ॐ स्वस्ति साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं
पारमेष्ठ्यं राज्यं माहाराज्यमाधिपत्यमयं समंतपर्यायी सार्वायुष आंतादापरार्धात्पृथिव्यै समुद्रपर्यंता या एकराळिति तदप्येष श्लोकोऽभिगीतो मरुत: परिवेष्टारो मरुत्तस्यावसन्गृहे आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवा: सभासद इति।
ॐ विश्व दकचक्षुरुत विश्वतो मुखो विश्वतोबाहुरुत विश्वतस्पात संबाहू ध्यानधव धिसम्भत त्रैत्याव भूमी जनयंदेव एकः।
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥
नाना सुगंध पुष्पांनी यथापादो भवानीच
पुष्पांजलीर्मयादत्तो रुहाण परमेश्वर
ॐ भूर्भुव: स्व: भगवते श्री सांबसदाशिवाय नमः।
मंत्र पुष्पांजली समर्पयामि।।
प्रदक्षिणा :
नमस्कार, स्तुति - प्रदक्षिणा का अर्थ है परिक्रमा।
आरती के उपरांत भगवन की परिक्रमा की जाती है, परिक्रमा हमेशा क्लॉक वाइज ( clock - wise ) करनी चाहिए।
स्तुति में क्षमा प्रार्थना करते हैं, क्षमा मांगने का आशय है कि हमसे कुछ भूल, गलती हो गई हो तो आप हमारे अपराध को क्षमा करें।
यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि च।
तानि सवार्णि नश्यन्तु प्रदक्षिणे पदे-पदे।।
अर्थ: जाने अनजाने में किए गए और पूर्वजन्मों के भी सारे पाप प्रदक्षिणा के साथ - साथ नष्ट हो जाए।
!!!!! शुभमस्तु !!!
🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर: -
श्री सरस्वति ज्योतिष कार्यालय
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Satvara vidhyarthi bhuvn,
" Shri Aalbai Niwas "
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जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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