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Monday, December 8, 2025

नाम से कुंडली मिलान कैसे करते हैं ?

नाम से कुंडली मिलान कैसे करते हैं?

 नाम से कुंडली मिलान करने के दो मुख्य तरीके प्रचलित हैं:


# १. वैदिक ज्योतिष के अनुसार (अष्टकूट मिलान )

जब किसी व्यक्ति की जन्म *तिथि, समय और स्थान* ज्ञात नहीं होता है, तो वैदिक ज्योतिष में नाम के पहले अक्षर का उपयोग करके कुंडली मिलान किया जाता है।

**मूल सिद्धांत:* नाम का पहला अक्षर किसी विशेष *नक्षत्र* और *राशि* से संबंधित होता है।

**प्रक्रिया:*




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    1.  वर और वधू के *नाम के पहले अक्षर* से संबंधित *राशि* और *नक्षत्र* का पता लगाया जाता है।

    2.  फिर, *जन्म कुंडली मिलान* की तरह ही, इन्हीं राशि और नक्षत्रों के आधार पर *अष्टकूट* (आठ पहलुओं ) का मिलान किया जाता है, जिन्हें कुल *36 गुण* माना जाता है।

    3.  आठ कूट हैं: *वर्ण, वश्य, तारा, योनि, मैत्री, गण, भकूट और नाड़ी।*

    4.  इनमें से जितने अधिक गुण मिलते हैं ( आमतौर पर 36 में से 18 से अधिक गुण मिलना शुभ माना जाता है ), वैवाहिक जीवन उतना ही अधिक अनुकूल माना जाता है।

**सटीकता:* यदि यह नाम *जन्म - नाम* ( जो जन्म के समय नक्षत्र के अनुसार रखा गया हो ) है, तो यह तरीका काफी सटीक माना जाता है।

# २. अंक ज्योतिष ( Numerology ) के अनुसार :

अंक ज्योतिष में नाम के अक्षरों को संख्यात्मक मान ( Numerical Value ) देकर गुणों का मिलान किया जाता है, जिसे अक्सर *लव कैलकुलेटर* या *नामांक मिलान* भी कहा जाता है। 

यह कुंडली मिलान से थोड़ा अलग होता है।

**प्रक्रिया:*

    1.  वर और वधू के नाम के हर अक्षर को कीरो ( Chaldean ) या पाइथागोरस विधि के अनुसार एक *अंक* दिया जाता है।

    2.  इन अंकों का योग करके एक *नामांक* ( Destiny Number ) निकाला जाता है।

    3.  फिर, इन दोनों नामांकों के बीच की अनुकूलता ( Compatibility ) की गणना की जाती है, जिससे प्रेम और वैवाहिक जीवन में तालमेल का प्रतिशत पता चलता है।

*निष्कर्ष:*

**सबसे उत्तम तरीका:* जन्म तिथि, समय और स्थान के आधार पर किया गया *जन्म कुंडली मिलान* सबसे सटीक माना जाता है।

**विकल्प:* यदि जन्म विवरण उपलब्ध नहीं है, तो *वैदिक ज्योतिष की नाम आधारित अष्टकूट विधि* का प्रयोग किया जाता है।

क्या आप किसी विशिष्ट व्यक्ति का नाम मिलान ऑनलाइन टूल के माध्यम से करवाना चाहते हैं, या इसके पीछे के वैदिक सिद्धांतों के बारे में और जानना चाहेंगे?

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ज्योतिष को वैज्ञानिक रूप से सत्य नहीं माना जाता फिर भी लाखों लोग इस पर भरोसा करते हैं ? क्या ? 

यह एक बहुत ही रोचक और महत्वपूर्ण सवाल है!  

यह सत्य है कि मुख्यधारा के वैज्ञानिक समुदाय द्वारा ज्योतिष को वैज्ञानिक रूप से सत्य या प्रमाणित नहीं माना जाता है, फिर भी दुनिया भर में लाखों लोग इस पर विश्वास करते हैं और इसका पालन करते हैं।


इसके पीछे कई मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कारण हैं:


1. व्यक्तिगत आश्वासन और मार्गदर्शन ( Personal Comfort and Guidance ) :

अनिश्चितता का सामना: जीवन अनिश्चितताओं से भरा है, और ज्योतिष लोगों को भविष्य की घटनाओं या चुनौतियों के बारे में कुछ हद तक आश्वासन या तैयारी की भावना देता है।


नियंत्रण की भावना: यह महसूस करना कि आपके जीवन में कुछ बड़ी शक्ति या पैटर्न काम कर रहा है ( जैसे ग्रह ) लोगों को नियंत्रण की भावना देता है, खासकर तब जब वे असहाय महसूस करते हैं।


निर्णय लेने में सहायता: कुछ लोग महत्वपूर्ण निर्णय लेने के लिए ज्योतिषीय सलाह का उपयोग करते हैं, जिससे उन्हें यह महसूस होता है कि उन्होंने सभी संभावित कारकों पर विचार किया है।


2. बार्नम प्रभाव ( Barnum Effect ) :

यह एक मनोवैज्ञानिक घटना है जहाँ लोग सामान्य, अस्पष्ट, और लगभग किसी पर भी लागू होने वाले व्यक्तित्व विवरणों को यह मानकर स्वीकार करते हैं कि वे विशेष रूप से उनके लिए तैयार किए गए थे।


ज्योतिषीय भविष्यवाणियाँ और व्यक्तित्व लक्षण अक्सर इतने व्यापक होते हैं कि वे अधिकांश लोगों पर लागू हो सकते हैं, जिससे लोगों को लगता है कि "यह सच है!"।




3. पुष्टिकरण पूर्वाग्रह ( Confirmation Bias ) :

जब कोई व्यक्ति ज्योतिष पर विश्वास करता है, तो वह उन भविष्यवाणियों या घटनाओं पर अधिक ध्यान देता है जो सत्य होती हैं ( या जो सत्य प्रतीत होती हैं ) और उन घटनाओं को नजरअंदाज कर देता है जो गलत होती हैं।


उदाहरण के लिए, यदि आपकी राशिफल कहती है कि आपका दिन अच्छा रहेगा और कुछ अच्छा होता है, तो आप इसे ज्योतिष की सफलता मानेंगे, लेकिन अगर कुछ बुरा होता है, तो आप इसे बस एक सामान्य घटना मानकर भूल जाएंगे।


4. सांस्कृतिक और सामाजिक जड़ें ( Cultural and Social Roots ) :

कई समाजों और संस्कृतियों में, ज्योतिष एक पुरानी परंपरा का हिस्सा रहा है और इसे पीढ़ी - दर - पीढ़ी हस्तांतरित किया गया है।


यह अक्सर पारिवारिक अनुष्ठानों, त्योहारों और महत्वपूर्ण जीवन की घटनाओं ( जैसे विवाह, बच्चे का जन्म ) से जुड़ा होता है, जिससे यह व्यक्तिगत विश्वास से कहीं अधिक एक सामाजिक प्रथा बन जाता है।


5. भावनात्मक सहारा ( Emotional Support ) :

संकट या तनाव के समय, लोग उम्मीद और सांत्वना की तलाश करते हैं। 

ज्योतिष उन्हें यह भावनात्मक सहारा दे सकता है कि "बुरा समय जल्द ही खत्म हो जाएगा" या "यह ग्रह की स्थिति का परिणाम है," जिससे उन्हें अपनी वर्तमान स्थिति को स्वीकार करने में मदद मिलती है।


संक्षेप में कहें तो, लाखों लोगों के लिए ज्योतिष विज्ञान नहीं, बल्कि विश्वास, संस्कृति और मनोवैज्ञानिक सहारा का एक स्रोत है।


क्या आप ज्योतिष के वैज्ञानिक आधार की कमी के बारे में और जानना चाहेंगे, या क्या आप पुष्टिकरण पूर्वाग्रह ( Confirmation Bias ) के बारे में कोई उदाहरण देखना चाहेंगे ?


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पुरुष की कुंडली में राहु नौवें घर में बैठा होने से शादी पत्नी पर क्या प्रभाव पड़ेगा , दूसरी शादी होगी क्या?

ज्योतिष के अनुसार, पुरुष की कुंडली में नवम भाव ( 9th house ) में राहु का बैठना वैवाहिक जीवन और पत्नी पर मिश्रित प्रभाव डाल सकता है।

यह एक जटिल स्थिति है, और इसका अंतिम परिणाम कुंडली के अन्य ग्रहों, राशियों, और दशाओं पर बहुत अधिक निर्भर करता है।

पत्नी पर प्रभाव ( Effects on Wife ) :

नवम भाव धर्म, भाग्य, गुरु और लंबी यात्राओं का होता है। 

राहु यहाँ बैठकर इन क्षेत्रों से संबंधित प्रभाव विवाह में भी लाता है:


  • असामान्य या आधुनिक सोच: पत्नी आधुनिक, स्वतंत्र विचारों वाली, या पारंपरिक मान्यताओं से अलग सोच रखने वाली हो सकती है। 

  • वह अपने धर्म या संस्कृति से अलग पृष्ठभूमि की भी हो सकती है, या वह सामान्य धार्मिक रीति - रिवाजों से हटकर चलती हो।

  • भाग्य में परिवर्तन: विवाह के बाद जातक ( पति ) के भाग्य में अचानक और महत्वपूर्ण बदलाव आ सकते हैं। 

  • ये बदलाव विदेश यात्रा, करियर में वृद्धि, या उच्च शिक्षा से जुड़े हो सकते हैं, जिसमें पत्नी का अप्रत्यक्ष योगदान हो सकता है।

  • यात्रा या विदेश से संबंध: यह योग विदेशी या दूर के स्थान की लड़की से विवाह का संकेत दे सकता है, या विवाह के बाद लंबी यात्राएँ / विदेश यात्राएँ हो सकती हैं।

  • वैवाहिक जीवन में चुनौतियाँ: राहु की उपस्थिति वैवाहिक जीवन में असंतोष, चुनौतियाँ या कुछ अनिश्चितता पैदा कर सकती है, खासकर वैचारिक मतभेद या धार्मिक / सांस्कृतिक भिन्नता के कारण। 

  • कुछ ज्योतिषीय मतों के अनुसार, यह वैवाहिक जीवन के लिए अनुकूल नहीं होता है।

दूसरी शादी के योग ( Possibility of Second Marriage ) :

  • राहु का नवम भाव में होना सीधे तौर पर दूसरी शादी का कारक नहीं है। 

  • दूसरी शादी के योग मुख्य रूप से सप्तम भाव ( 7th house ) और इसके स्वामी की स्थिति, शुक्र ग्रह, और उन पर पाप ग्रहों ( जैसे राहु, केतु, शनि ) के अशुभ प्रभाव से देखे जाते हैं।

  • यदि नवम भाव का राहु सप्तम भाव या उसके स्वामी को पीड़ित करता है, या सप्तम भाव में कोई और गंभीर दोष हो, तो वैवाहिक जीवन में बड़ी परेशानियाँ ( जैसे अलगाव, तलाक ) आ सकती हैं, जो संभावित रूप से दूसरी शादी की ओर ले जा सकती हैं।

  • निष्कर्ष: केवल नौवें घर के राहु के आधार पर दूसरी शादी की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है। 

  • इसके लिए पूरी कुंडली का गहन विश्लेषण आवश्यक है।

सारांश :

राहु एक मायावी ग्रह है जो जिस भाव में बैठता है, वहाँ असामान्य, अप्रत्याशित और भ्रम की स्थिति पैदा करता है। 

नवम भाव में राहु जातक को धर्म, भाग्य और मान्यताओं के प्रति लीक से हटकर दृष्टिकोण देता है, जिसका असर पत्नी और वैवाहिक जीवन पर भी पड़ता है।

सटीक जानकारी के लिए आपको एक योग्य ज्योतिषी से पूरी जन्म कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए।

क्या आप अपनी कुंडली में राहु के प्रभाव को कम करने के लिए कुछ सामान्य ज्योतिषीय उपाय जानना चाहेंगे?


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आजकल चार ग्रह मंगल, बुध, बृहस्पति व शुक्र शत्रुराशि में गोचर कर रहे हैं । 

यह एक दुर्लभ योग है । 

इस के व्यस्टिगत एवं समष्टिगत क्या प्रभाव हो सकते हैं ?

यह योग ज्योतिषीय दृष्टि से *निश्चित रूप से महत्वपूर्ण* है, क्योंकि चार महत्वपूर्ण ग्रहों ( मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र ) का शत्रु राशि में गोचर एक साथ होना ग्रह - स्थिति की दृष्टि से एक *दुर्लभ और शक्तिशाली* संयोग माना जाता है। 

जब कोई ग्रह अपनी शत्रु राशि में गोचर करता है, तो उसकी शक्ति और शुभ फलों में कमी आती है, और वह संघर्षपूर्ण परिणाम देता है।

यहाँ इसके व्यष्टिगत ( Individual ) और समष्टिगत ( Collective / Global ) प्रभावों का एक सामान्य विश्लेषण दिया गया है। 

कृपया ध्यान दें कि ये सामान्य फल हैं; किसी भी व्यक्ति पर सटीक प्रभाव उसकी *व्यक्तिगत जन्मकुंडली* और इन ग्रहों की दशा / महादशा पर निर्भर करेगा।

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##  शत्रु राशि में चार ग्रहों के गोचर का सामान्य प्रभाव :

जब चार ग्रह शत्रु राशि में होते हैं, तो उनके कारकत्वों ( Caraka / Significations ) से संबंधित क्षेत्रों में *संघर्ष, भ्रम और बाधाएं* उत्पन्न हो सकती हैं।

**ग्रहों के कारकत्व :*

    **मंगल ( Mars ):* ऊर्जा, साहस, पराक्रम, भूमि, प्रतिस्पर्धा, क्रोध।
    
    **बुध ( Mercury ):* बुद्धि, वाणी, व्यापार, संचार, तर्क।

    **बृहस्पति ( Jupiter ):* ज्ञान, धर्म, धन, भाग्य, विस्तार, नैतिकता।

    **शुक्र ( Venus ):* प्रेम, सौंदर्य, भौतिक सुख - सुविधाएं, कला, संबंध।

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## व्यष्टिगत ( Individual ) प्रभाव :

व्यक्तिगत स्तर पर, यह योग जन्मकुंडली में इन ग्रहों की स्थिति ( भाव ) और उन भावों के स्वामित्व के आधार पर निम्नलिखित प्रभाव दे सकता है:

## 1. मानसिक और वैचारिक स्तर पर :

**बुध ( वाणी और बुद्धि ):* तर्क और निर्णय लेने की क्षमता में *भ्रम या अस्थिरता* आ सकती है। 

संचार में गलतफहमियाँ बढ़ सकती हैं। 

व्यापारिक निर्णय लेने में कठिनाई हो सकती है।

**मंगल ( ऊर्जा ):* ऊर्जा का सही दिशा में उपयोग न हो पाना, अनावश्यक *क्रोध, बेचैनी या संघर्ष* की प्रवृत्ति बढ़ सकती है।

## 2. संबंध और धन के स्तर पर :

**शुक्र ( संबंध और सुख ):* प्रेम संबंधों और वैवाहिक जीवन में *तनाव या असंतोष* महसूस हो सकता है। 

भौतिक सुख - सुविधाओं की प्राप्ति में बाधाएं या उनके कारण *खर्चों में वृद्धि* हो सकती है।

**बृहस्पति ( धन और भाग्य ):* भाग्य का साथ थोड़ा *कमजोर* हो सकता है। 

धन संचय में बाधा या निवेश संबंधी निर्णय लेने में सावधानी की आवश्यकता होगी।

## 3. स्वास्थ्य और करियर के स्तर पर :

**मंगल:* रक्त, मांसपेशी और दुर्घटनाओं से संबंधित स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ सकती हैं।

**बृहस्पति:* लीवर, मोटापा या पाचन संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

**करियर:* करियर में उन्नति के लिए *अत्यधिक प्रयास* करने पड़ सकते हैं।

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## समष्टिगत ( Collective / Global ) प्रभाव :

वैश्विक और सामाजिक स्तर पर, इन ग्रहों के शत्रु राशि में होने से निम्नलिखित क्षेत्रों में बड़े प्रभाव देखने को मिल सकते हैं:

## 1. आर्थिक और वित्तीय क्षेत्र :

**बृहस्पति और बुध:* अर्थव्यवस्था में *अनिश्चितता* बढ़ सकती है। 

बड़े वित्तीय निर्णय ( जैसे स्टॉक मार्केट, रियल एस्टेट ) में अस्थिरता और भ्रम का माहौल रह सकता है। 

व्यापारिक और वाणिज्यिक गतिविधियों में *मंद गति* आ सकती है।

## 2. सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र :

**मंगल ( संघर्ष ):* विश्व स्तर पर *टकराव, सैन्य तनाव या संघर्ष* की स्थिति बढ़ सकती है। 

देशों के बीच प्रतिस्पर्धा और आक्रामकता में वृद्धि संभव है।

**बुध ( संचार ):* मीडिया और सूचना के क्षेत्र में *भ्रामक खबरें* या संचार की समस्याओं के कारण तनाव उत्पन्न हो सकता है।

## 3. नैतिक और कानूनी क्षेत्र :

**बृहस्पति ( धर्म और न्याय ):* नैतिक मूल्यों में *गिरावट* देखी जा सकती है। 

धार्मिक और कानूनी मामलों में भ्रम या *विवादों की अधिकता* हो सकती है।

## 4. प्राकृतिक और आपदा क्षेत्र :

**मंगल:* अग्नि, दुर्घटनाएं या प्राकृतिक आपदाओं ( जैसे भूकंप, तूफान ) की संभावना थोड़ी बढ़ सकती है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ यह योग अधिक प्रभावी हो।

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## इस योग से निपटने के लिए सुझाव ( Remedies ) :

क्योंकि ग्रह शत्रु राशि में कमजोर हैं, इस लिए उनके शुभत्व को बढ़ाने के लिए उपाय किए जा सकते हैं:

**बृहस्पति:* नैतिक आचरण बनाए रखें, ज्ञानियों का सम्मान करें, पीली वस्तुओं का दान करें या गुरु मंत्र का जाप करें।

**शुक्र:* रचनात्मक कार्यों में संलग्न रहें, साफ - सफाई रखें और देवी लक्ष्मी की पूजा करें।

**मंगल:* ध्यान ( Meditation ) या योग करें, हनुमान चालीसा का पाठ करें, और क्रोध पर नियंत्रण रखें।

**बुध:* बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय लें, वाणी पर संयम रखें, और हरे रंग का प्रयोग करें।

*क्या आप जानना चाहेंगे कि आपकी लग्न राशि के लिए इन ग्रहों की शत्रु राशि में स्थिति का विशिष्ट प्रभाव क्या हो सकता है?*

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यदि किसी जातक की कुंडली में चौथे स्थान पर राहु और शनि है तो उसे मातृ दोष माना जाता है, इस दोष के निराकरण हेतु कौन सी पूजा करवाई जाएगी कृपया बताए?

ज्योतिष के अनुसार, यदि किसी जातक की कुंडली में *चौथे भाव* ( Fourth House ) में *राहु* और *शनि* की युति हो, तो इसे एक प्रकार का *मातृ दोष* ( Matru Dosh ) या *पितृ दोष* ( Pitra Dosh ) का प्रभाव माना जाता है, जो *माता* और *जमीन - जायदाद* ( land and property ) से संबंधित मामलों में समस्याएँ दे सकता है।

इस दोष के निवारण ( Remedy ) हेतु निम्नलिखित पूजा और उपाय किए जा सकते हैं:

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## 🕉 मुख्य निवारण पूजा :

इस दोष के शमन ( Appeasement ) के लिए निम्नलिखित प्रमुख अनुष्ठान ( Rituals ) किए जाते हैं:

**पितृ शांति पूजा ( Pitra Shanti Puja ):* यह पूजा सबसे अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि राहु और शनि दोनों ही *पितृ दोष* के कारक माने जाते हैं। 

इस पूजा में *पूर्वजों* की शांति और उनके आशीर्वाद के लिए विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं।

    * यह पूजा *गया जी* ( बिहार ) या *त्र्यंबकेश्वर* ( नासिक ) जैसे पवित्र तीर्थ स्थानों पर करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

**रुद्राभिषेक ( Rudrabhishek ):* *भगवान शिव* ( Lord Shiva ) की आराधना राहु और शनि दोनों के दुष्प्रभावों को शांत करने में बहुत प्रभावशाली मानी जाती है। 

*रुद्राभिषेक* के माध्यम से जातक को मानसिक शांति और दोषों से मुक्ति मिलती है।

**नवग्रह शांति पूजा ( Navagraha Shanti Puja ):* इस पूजा में राहु और शनि सहित सभी नौ ग्रहों की शांति के लिए विधि - विधान से पूजा की जाती है, ताकि कुंडली में ग्रहों के अशुभ प्रभाव कम हो सकें।

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## अन्य सहायक उपाय :

इन प्रमुख पूजाओं के अतिरिक्त, जातक को दैनिक जीवन में निम्नलिखित उपाय करने चाहिए:

**शनि की आराधना:*

    * प्रत्येक *शनिवार* को *पीपल के पेड़* के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएँ।

    **हनुमान चालीसा* का पाठ नियमित रूप से करें।
    
    * गरीबों और असहाय लोगों को *काले वस्त्र* ( Black Cloth ), *उड़द की दाल* ( Urad Dal ), या *सरसों का तेल* दान करें।

**राहु की आराधना:*

    **दुर्गा सप्तशती* का पाठ करना या *माँ दुर्गा* की उपासना करना लाभप्रद होता है।
    
    **सरस्वती माता* की पूजा करना भी राहु के नकारात्मक प्रभाव को कम करता है।

**माता का सम्मान:*

    * चौथा भाव *माता* का होता है, इस लिए जातक को अपनी *माता* की सेवा और उनका *आशीर्वाद* नियमित रूप से लेना चाहिए। 

यह सबसे बड़ा और सरल उपाय है।

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*सुझाव:*

किसी भी पूजा या अनुष्ठान को करने से पहले, किसी *योग्य और अनुभवी ज्योतिषी* से परामर्श लेना उचित होगा। 

वे आपकी कुंडली का विस्तृत अध्ययन करके आपको सबसे उपयुक्त और सटीक उपाय बता सकते हैं।

क्या आप इन उपायों या किसी विशिष्ट पूजा के बारे में अधिक जानकारी जानना चाहेंगे ?

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मेरा और मेरे पार्टनर का राहु कन्या राशि में और हम दोनों की कुंडली में शनि और केतु की युति मीन राशि में है। 

इसका क्या मतलब है?

यह एक बहुत ही विशिष्ट और रोचक ज्योतिषीय संयोजन है! 

किसी भी ज्योतिषीय व्याख्या के लिए आपकी और आपके पार्टनर की *पूरी जन्म कुंडली* देखना आवश्यक है, क्योंकि ग्रहों की स्थिति, भाव ( House ) और दृष्टि ( Aspects ) बहुत मायने रखती है।

हालांकि, आपके द्वारा बताए गए दो मुख्य पहलुओं का सामान्य अर्थ मैं आपको बता सकता हूँ:

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## राहु ( Rahu ) कन्या राशि ( Virgo ) में :

जब आपका और आपके पार्टनर दोनों का राहु कन्या राशि में है, तो यह दर्शाता है कि आप दोनों के *जीवन का मुख्य उद्देश्य* ( राहु द्वारा दिखाया गया ) और *सीखने का क्षेत्र* ( कन्या राशि से संबंधित ) समान है।

**व्यवहारिकता और पूर्णता:* आप दोनों जीवन में *व्यवहारिकता* ( Practicality ), *संगठन* ( Organization ) और *विवरण पर ध्यान* ( Attention to detail ) देने की प्रबल इच्छा रखते हैं। 

आप चीजों को पूरी तरह से और सही ढंग से करना चाहते हैं।

**स्वास्थ्य और सेवा:* आप दोनों के लिए स्वास्थ्य ( Health ) और दूसरों की सेवा ( Service ) करने का विषय महत्वपूर्ण हो सकता है। 

राहु यहाँ आपको इन क्षेत्रों में कुछ नया करने या अत्यधिक समर्पित होने के लिए प्रेरित करता है।

**असंतोष:* आप दोनों में अपनी दिनचर्या, काम या जीवन की व्यवस्थाओं में *असंतोष* ( Dissatisfaction ) की भावना हो सकती है, जो आपको लगातार सुधार करने के लिए प्रेरित करती है।

*साझेदारी ( Partnership ) पर प्रभाव:* आप दोनों एक - दूसरे को व्यवस्थित रहने, स्वस्थ आदतों को अपनाने और अपने काम में पूर्णता हासिल करने के लिए प्रेरित करेंगे। 

हालाँकि, अत्यधिक आलोचनात्मक ( Overly critical ) होने से बचना महत्वपूर्ण है।

## शनि ( Saturn ) और केतु ( Ketu ) की युति मीन राशि ( Pisces ) में :

यह युति आप दोनों की कुंडली में एक ही राशि (मीन) में होना एक और मजबूत साझा थीम को दर्शाता है। 

यह संयोजन आध्यात्मिक विकास और भावनात्मक सीमाओं पर जोर देता है।

## शनि - केतु युति का सामान्य अर्थ:

**त्याग और अलगाव:* केतु अलगाव ( Detachment ) और त्याग ( Renunciation ) का कारक है, और शनि कर्म ( Karma ) और अनुशासन ( Discipline ) का। 

यह युति जीवन के उस क्षेत्र में *अतीत के अधूरे कर्मों* को दर्शाती है जहाँ आपको अनुशासन के साथ अलगाव सीखना है।

**सीमित या विलंबित:* मीन राशि के जिस भाव में यह युति है, वहाँ शनि उस भाव से संबंधित चीजों में *विलंब* या *कमी* महसूस करवा सकता है, लेकिन केतु के कारण व्यक्ति उन चीजों से स्वयं को *अलग* कर लेता है।

## मीन राशि में प्रभाव ( मीन 12वां घर है, जो मोक्ष, हानि, अवचेतन को दर्शाता है ):

**आध्यात्मिक अनुशासन:* यह आपको एक गहरी *आध्यात्मिक खोज* या अनुशासन की ओर ले जाता है। 

आप भौतिक दुनिया की सीमाओं से ऊपर उठकर कुछ सार्थक खोजने की कोशिश कर सकते हैं।

**भावनात्मक सीमाएं:* मीन राशि भावनाओं और कल्पना की है। 

यह युति भावनात्मक रूप से *भ्रमित* ( Confused ) कर सकती है, या आप दोनों को अपनी भावनाओं के प्रति एक *विचित्र दूरी* ( Odd Distance ) महसूस करा सकती है।

**कल्पना और डर:* यह अवचेतन मन ( Subconscious Mind ) और कल्पनाओं से संबंधित *डर* ( Fears ) या *असुरक्षाओं* ( Insecurities ) को उजागर कर सकती है, जिन पर शनि के अनुशासन के साथ काम करने की आवश्यकता है।

*साझेदारी ( Partnership ) पर प्रभाव:* आप दोनों के लिए एक - दूसरे के साथ आध्यात्मिक यात्रा साझा करना या एक - दूसरे को भौतिक दुनिया से *मुक्त* महसूस कराने में मदद करना महत्वपूर्ण हो सकता है। 

यह आप दोनों के बीच एक *अदृश्य, गहरा भावनात्मक बंधन* भी बना सकता है, जो दुनिया के लिए समझना मुश्किल हो सकता है।

*निष्कर्ष और सुझाव:*

यह संयोजन दर्शाता है कि आप दोनों एक - दूसरे के लिए एक *गहन कर्मिक संबंध* ( Deep Karmic Connection) रखते हैं। 

राहु - कन्या आपको दिन - प्रतिदिन के जीवन में एक - दूसरे को व्यवस्थित करते हैं, जबकि शनि - केतु - मीन आपको अपनी आध्यात्मिक सीमाओं का पता लगाने और अतीत के कर्मों को हल करने में मदद करते हैं।

क्या आप मुझे बता सकते हैं कि ये ग्रह आपके लिए *किस भाव ( House ) में* स्थित हैं ? 

इससे मैं अधिक सटीक जानकारी दे पाऊंगा।

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कुछ लोग अच्छे समय में भी सफलता हासिल नहीं कर पाते इसका क्या कारण है?

ज्योतिषी होने के नाते यह बता सकता हु कि कुछ लोग अच्छे समय में भी सफलता हासिल नहीं कर पाते इसका यह कारण है ?

यह एक बहुत ही गहरा और महत्वपूर्ण प्रश्न है।

एक *ज्योतिषी* होने के नाते, मैं इस विषय को केवल *ग्रहों की स्थिति, दशाओं और गोचर* के संदर्भ में ही देख सकता हूँ, क्योंकि ज्योतिषीय दृष्टि से असफलता के कारणों को इसी तरह समझा जाता है।

अच्छे समय या अनुकूल दशाओं ( जिसे "अच्छा समय" समझा जाता है ) में भी कुछ लोगों का सफल न हो पाना ज्योतिष के अनुसार कई कारणों से हो सकता है:

## ज्योतिषीय कारण ( Astrological Reasons ) :

**1. दशा / महादशा का प्रभाव ( Impact Of Dasha / Mahadasha ):*

    * जिस *महादशा* ( मुख्य ग्रह की अवधि ) को आमतौर पर शुभ माना जाता है, वह कुंडली में उस व्यक्ति विशेष के लिए *अशुभ भावों* ( जैसे 6वां, 8वां, 12वां घर ) का स्वामी हो सकता है।

    * उदाहरण के लिए, यदि किसी के लिए बृहस्पति की महादशा चल रही हो ( जिसे सामान्यतः शुभ मानते हैं ), लेकिन कुंडली में बृहस्पति *नीच राशि* में या *मारक स्थान* का स्वामी होकर बैठा हो, तो यह 'अच्छा समय' होने के बावजूद संघर्ष देगा।

**2. गोचर का प्रतिकूल होना (Unfavorable Transit):*
    
    * भले ही व्यक्ति की मुख्य दशा ( महादशा ) अच्छी चल रही हो, लेकिन उसी समय *शनि ( Shani ), **राहु ( Rahu )* या *केतु ( Ketu )* का गोचर ( वर्तमान संचरण ) कुंडली के महत्वपूर्ण भावों ( जैसे लग्न, कर्म स्थान या लाभ स्थान ) पर *प्रतिकूल* प्रभाव डाल रहा हो। 

यह सफलता को बाधित करता है।

**3. कुंडली में विशिष्ट योगों की कमी ( Lack of Specific Yogas ):*

    * सफलता केवल एक ग्रह पर निर्भर नहीं करती। 

यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में *राजयोग* ( Raj Yoga ) या *धन योग* ( Dhan Yoga ) जैसे विशिष्ट योगों का अभाव है, तो साधारण अच्छे समय में भी बड़ी सफलता मिलना मुश्किल हो जाता है।

**4. जन्मकुंडली में ग्रहों की शक्ति ( Planetary Strength ):*

    * यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में *कर्मेश ( 10वें भाव का स्वामी )* या *लाभेश ( 11वें भाव का स्वामी )* ग्रह *अस्त, **वक्र, या **दुर्बल* स्थिति में हैं, तो ये ग्रह अच्छे समय में भी अपने पूर्ण और शुभ परिणाम देने में सक्षम नहीं हो पाते।

**5. साढ़े साती और ढैया का प्रभाव ( Sade Sati And Dhaiya ):*

    * यदि व्यक्ति 'अच्छे समय' की दशा में है, लेकिन साथ ही *शनि की साढ़े साती* या *ढैया* के प्रभाव में है, तो यह शनि के द्वारा उत्पन्न किए गए *विलंब, संघर्ष और चुनौतियाँ* सफलता को ढक देती हैं।

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## सामान्य और आध्यात्मिक दृष्टिकोण :

ज्योतिष के अलावा, इस प्रश्न का उत्तर *कर्म, इच्छाशक्ति और व्यक्तित्व* में भी निहित है:

**कर्मों का प्रभाव ( Impact Of Karma ):* ज्योतिष मानता है कि हम पिछले जन्मों के कर्मों का फल भोगते हैं। 

हो सकता है कि किसी व्यक्ति के *संचित कर्म* ही इस जीवन में 'अच्छे समय' के बावजूद रुकावटें पैदा कर रहे हों।

**व्यक्तिगत प्रयास और तैयारी ( Effort And Preparation ):* सफलता के लिए केवल ग्रहों का अनुकूल होना पर्याप्त नहीं है; व्यक्ति की *तैयारी, अनुशासन, सही निर्णय और सतत प्रयास* भी आवश्यक हैं। 

यदि कोई व्यक्ति प्रयास नहीं कर रहा है, तो अनुकूल समय भी व्यर्थ हो जाएगा।

*निष्कर्ष:*

ज्योतिष के अनुसार, 'अच्छा समय' एक *संभावना* और *अनुकूल पृष्ठभूमि* प्रदान करता है, लेकिन इसका पूर्ण लाभ उठाने के लिए व्यक्ति के *प्रयास, आंतरिक शक्ति और कुंडली के मूल दोषों को दूर करने वाले उपाय* भी बहुत महत्वपूर्ण हैं।

क्या आप अपनी या किसी परिचित की जन्मतिथि, समय और स्थान बता सकते हैं ताकि मैं देख सकूं कि यह कौन से विशिष्ट ज्योतिषीय कारणों से हो सकता है?

!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!

जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर: -
श्री सरस्वति ज्योतिष कार्यालय
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Satvara vidhyarthi bhuvn,
" Shri Aalbai Niwas "
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏


Sunday, December 7, 2025

क्योंकि ज्योतिषी ईश्वर नहीं है ?

क्योंकि ज्योतिषी ईश्वर नहीं है ?

यह एक बहुत ही गहरा और महत्वपूर्ण प्रश्न है।

ज्योतिषी को ईश्वर नहीं मानने के मुख्य कारण और विचार निम्नलिखित हैं:

### 🌟 ज्योतिषी और ईश्वर में मुख्य अंतर

**उत्पत्ति और शक्ति ( Origin and Power ):*

**ईश्वर ( God ):* संपूर्ण सृष्टि का *सृष्टिकर्ता, पालक और संहारक* माना जाता है। 

वह *सर्वशक्तिमान* ( Omnipotent ), *सर्वज्ञ* ( Omniscient ), और *सर्वव्यापी* ( Omnipresent ) है।

**ज्योतिषी ( Astrologer ):* वह एक *मनुष्य* है जो ज्ञान और गणना ( Astronomical and mathematical knowledge ) का उपयोग करके ग्रहों और नक्षत्रों के प्रभाव की *व्याख्या* करता है। 





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उसकी शक्ति *सीमित* है और वह त्रुटि कर सकता है।

**भविष्य को बदलने की क्षमता ( Ability to Change the Future ):*

**ईश्वर:* भक्त मानते हैं कि ईश्वर की कृपा या इच्छा से *भाग्य बदला जा सकता है* या बड़े संकटों को टाला जा सकता है।

**ज्योतिषी:* वह केवल *भविष्यवाणी* ( Prediction ) करता है और संभावित खतरों के लिए *उपाय* ( Remedies ) बता सकता है, लेकिन उसके पास भाग्य को *सीधे बदलने की कोई शक्ति नहीं* है।

**ज्ञान की प्रकृति ( Nature of Knowledge ):*

**ईश्वर:* उसका ज्ञान *स्वयं-जनित* ( Self - born ) और *असीमित* है।

**ज्योतिषी:* उसका ज्ञान *अध्ययन, अनुभव, और ग्रंथों* ( Vedas, scriptures, astronomical tables ) पर आधारित है। 

यह ज्ञान मानवीय सीमाओं से बंधा हुआ है।

# निष्कर्ष

ज्योतिष को एक *विज्ञान* या *कला* ( Science or Art of Interpretation ) माना जाता है, जो हमें *दैवीय योजना (Divine Plan)* को समझने में मदद करती है।

ज्योतिषी उस *डाकिया ( Postman )* के समान है जो आपको खबर देता है कि क्या होने की संभावना है, लेकिन वह उस *पत्र के लेखक ( Author of the Letter )* के समान नहीं है, जिसका अर्थ है वह ईश्वर नहीं है जिसने आपका भाग्य लिखा है।

संक्षेप में: *ज्योतिषी एक मार्गदर्शक है, सृष्टिकर्ता नहीं।*

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क्या आप जानना चाहेंगे कि ज्योतिष की सीमाएँ क्या हैं?


पुरुष की कुंडली में राहु नौवें घर में बैठा होने से शादी पत्नी पर क्या प्रभाव पड़ेगा , दूसरी शादी होगी क्या ?

नमस्कार! ज्योतिष के अनुसार, *पुरुष की कुंडली में नवम भाव ( 9th house ) में राहु* का बैठना वैवाहिक जीवन और पत्नी पर मिश्रित प्रभाव डाल सकता है।

यह एक जटिल स्थिति है, और इसका अंतिम परिणाम कुंडली के *अन्य ग्रहों, राशियों, और दशाओं* पर बहुत अधिक निर्भर करता है।

# पत्नी पर प्रभाव ( Effects on Wife )

नवम भाव धर्म, भाग्य, गुरु और लंबी यात्राओं का होता है। 

राहु यहाँ बैठकर इन क्षेत्रों से संबंधित प्रभाव विवाह में भी लाता है:

**असामान्य या आधुनिक सोच:* पत्नी *आधुनिक, स्वतंत्र विचारों वाली, या पारंपरिक मान्यताओं से अलग* सोच रखने वाली हो सकती है। 

वह अपने धर्म या संस्कृति से अलग पृष्ठभूमि की भी हो सकती है, या वह सामान्य धार्मिक रीति - रिवाजों से हटकर चलती हो।

**भाग्य में परिवर्तन:* विवाह के बाद जातक ( पति ) के *भाग्य में अचानक और महत्वपूर्ण बदलाव* आ सकते हैं। 

ये बदलाव विदेश यात्रा, करियर में वृद्धि, या उच्च शिक्षा से जुड़े हो सकते हैं, जिसमें पत्नी का अप्रत्यक्ष योगदान हो सकता है।

**यात्रा या विदेश से संबंध:* यह योग *विदेशी या दूर के स्थान* की लड़की से विवाह का संकेत दे सकता है, या विवाह के बाद लंबी यात्राएँ / विदेश यात्राएँ हो सकती हैं।

**वैवाहिक जीवन में चुनौतियाँ:* राहु की उपस्थिति वैवाहिक जीवन में *असंतोष, चुनौतियाँ या कुछ अनिश्चितता* पैदा कर सकती है, खासकर वैचारिक मतभेद या धार्मिक / सांस्कृतिक भिन्नता के कारण। 

कुछ ज्योतिषीय मतों के अनुसार, यह वैवाहिक जीवन के लिए अनुकूल नहीं होता है।

# दूसरी शादी के योग ( Possibility of Second Marriage )

**राहु का नवम भाव में होना सीधे तौर पर दूसरी शादी का कारक नहीं है।* 

दूसरी शादी के योग मुख्य रूप से *सप्तम भाव ( 7th House ) और इसके स्वामी* की स्थिति, *शुक्र ग्रह, और उन पर **पाप ग्रहों ( जैसे राहु, केतु, शनि ) के अशुभ प्रभाव* से देखे जाते हैं।

**यदि नवम भाव का राहु सप्तम भाव या उसके स्वामी को पीड़ित करता है, या सप्तम भाव में कोई और गंभीर दोष हो, **तो वैवाहिक जीवन में बड़ी परेशानियाँ ( जैसे अलगाव, तलाक ) आ सकती हैं, जो **संभावित रूप से* दूसरी शादी की ओर ले जा सकती हैं।

**निष्कर्ष:* केवल नौवें घर के राहु के आधार पर *दूसरी शादी की भविष्यवाणी नहीं* की जा सकती है। 

इसके लिए *पूरी कुंडली का गहन विश्लेषण* आवश्यक है।

#सारांश

राहु एक मायावी ग्रह है जो जिस भाव में बैठता है, वहाँ *असामान्य, अप्रत्याशित और भ्रम* की स्थिति पैदा करता है। नवम भाव में राहु जातक को धर्म, भाग्य और मान्यताओं के प्रति लीक से हटकर दृष्टिकोण देता है, जिसका असर पत्नी और वैवाहिक जीवन पर भी पड़ता है।

*सटीक जानकारी* के लिए आपको एक योग्य ज्योतिषी से *पूरी जन्म कुंडली* का विश्लेषण करवाना चाहिए।

क्या आप अपनी कुंडली में राहु के प्रभाव को कम करने के लिए कुछ *सामान्य ज्योतिषीय उपाय* जानना चाहेंगे?

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मंगल महादशा सबसे ज्यादा किस ग्रह को प्रभावित करती है ?


यह एक जटिल प्रश्न है, क्योंकि मंगल महादशा के दौरान सभी नौ ग्रहों की अंतर्दशा आती है, और हर अंतर्दशा का अपना विशिष्ट प्रभाव होता है।

हालांकि, ज्योतिषीय दृष्टिकोण से, मंगल महादशा में राहु ( Rahu ) और शनि ( Saturn ) की अंतर्दशा को अक्सर सबसे अधिक तीव्र और महत्वपूर्ण माना जाता है:

1. राहु ( Rahu )

सबसे उत्तेजक / तीव्र प्रभाव: राहु की अंतर्दशा को मंगल महादशा में सबसे उत्तेजक (Volatile ) और अप्रत्याशित माना जाता है।

कारण: मंगल की तीव्र, आक्रामक ऊर्जा जब राहु ( जो भ्रम, अचानकता और विस्तार का कारक है ) से मिलती है, तो यह 'अग्नि - भ्रम' योग बना सकती है, जिससे व्यक्ति में महत्वाकांक्षा, भ्रम, जल्दबाजी और दुर्घटनाओं / विवादों की आशंका बढ़ जाती है।

2. शनि ( Saturn )

सबसे बड़ा परिवर्तन और चुनौती: शनि की अंतर्दशा लगभग 13 महीने की होती है। 

शनि अनुशासन, कर्म और विलम्ब का ग्रह है।

कारण: मंगल की तेज और उग्र ऊर्जा को शनि नियंत्रित करने की कोशिश करता है, जिससे 'मंगल - शनि योग' बनता है। 

यह समय कठोर सबक, बाधाएं, विलंब, और मानसिक दबाव दे सकता है, लेकिन यदि व्यक्ति अनुशासित रहे तो अंततः लाभदायक होता है।

निष्कर्ष :

यदि आप सबसे अधिक उत्तेजक और अप्रत्याशित प्रभाव की बात कर रहे हैं, तो वह राहु की अंतर्दशा होती है।

यदि आप सबसे अधिक संघर्ष, धैर्य और अनुशासन की परीक्षा वाले प्रभाव की बात कर रहे हैं, तो वह शनि की अंतर्दशा होती है।

किसी भी ग्रह का प्रभाव अंततः आपकी जन्म कुंडली में मंगल और अन्य ग्रहों की स्थिति, युति ( Conjunction ) और दृष्टि पर निर्भर करता है।

क्या आप मंगल महादशा में किसी विशिष्ट अंतर्दशा ( जैसे राहु या शनि की ) के बारे में अधिक जानना चाहेंगे?

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अपनी राशि ( Rashi ) जानने के मुख्य रूप से दो तरीके हैं:


1. जन्मतिथि के आधार पर ( सूर्य राशि - Sun Sign )

पश्चिमी ज्योतिष में इसे सूर्य राशि (Sun Sign) कहते हैं, जो आपकी जन्म की तारीख ( महीने ) से तय होती है। यह सबसे आसान तरीका है:

राशि ( Zodiac Sign ) तारीख सीमा ( Date Range )

मेष ( Aries ) 21 मार्च से 19 अप्रैल

वृषभ ( Taurus ) 20 अप्रैल से 20 मई

मिथुन ( Gemini ) 21 मई से 20 जून

कर्क ( Cancer ) 21 जून से 22 जुलाई

सिंह ( Leo ) 23 जुलाई से 22 अगस्त

कन्या ( Virgo ) 23 अगस्त से 22 सितंबर

तुला ( Libra ) 23 सितंबर से 23 अक्टूबर

वृश्चिक ( Scorpio ) 24 अक्टूबर से 22 नवंबर

धनु ( Sagittarius ) 23 नवंबर से 21 दिसंबर

मकर ( Capricorn ) 22 दिसंबर से 19 जनवरी

कुंभ ( Aquarius ) 20 जनवरी से 18 फरवरी

मीन ( Pisces ) 19 फरवरी से 20 मार्च

2. जन्म विवरण के आधार पर ( चंद्र राशि - Moon Sign )

भारतीय या वैदिक ज्योतिष में, चंद्र राशि ( Moon Sign ) को अधिक महत्व दिया जाता है। 

यह आपकी कुंडली की मुख्य राशि होती है और राशिफल इसी के आधार पर देखा जाता है।

चंद्र राशि पता करने के लिए आपको निम्नलिखित की आवश्यकता होगी:

जन्म की तारीख ( Date of Birth )

जन्म का समय ( Time of Birth )

जन्म का स्थान ( Place of Birth )

जन्म के समय चंद्रमा जिस राशि में स्थित होता है, वही आपकी चंद्र राशि कहलाती है। 

इसे जानने के लिए:

आप अपनी जन्म कुंडली देख सकते हैं।

आप किसी ज्योतिषी से सलाह ले सकते हैं।

आप ऑनलाइन 'राशि कैलकुलेटर' का उपयोग कर सकते हैं, जहाँ आपको अपनी जन्म की जानकारी भरनी होगी।

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👉 नाम के पहले अक्षर से कुछ लोग अपने नाम के पहले अक्षर के आधार पर भी अपनी राशि का अनुमान लगाते हैं, क्योंकि वैदिक ज्योतिष में नामकरण अक्सर चंद्र राशि के पहले अक्षर से ही किया जाता है। 

हालाँकि, यह हमेशा सटीक नहीं होता।

अगर आप अपनी जन्म की तारीख बता दें, तो मैं आपकी सूर्य राशि ( Sun Sign ) पता करने में मदद कर सकता हूँ।

!!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!

जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
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