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Tuesday, July 22, 2025

राजयोग देते हैं सर्वसुख और जीवन के प्रशिक्षक हैं ये तीनों :

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

राजयोग देते हैं सर्वसुख और जीवन के प्रशिक्षक हैं ये तीनों :


जन्मपत्री में बलवान ग्रह और मजबूत भाव बनाते हैं राजयोग और देते हैं सर्वसुख...!




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श्री वैदिक ज्योतिष शास्त्र अनुसार  किसी की भी जन्मपत्री में ग्रह बलवान हों और भाग्य आदि भाव मजबूत हो, तो व्यक्ति को जीवन का सब सुख स्वतः ही प्राप्त हो जाता है। 


श्री वैदिक ज्योतिष शास्त्र में ग्रह और भाव की स्थिति का आकलन करने के लिए अनेक नियम हैं !


जिनको ध्यान में रखकर यह पता लगाया जाता है कि जीवन में सुख और दुःख का क्या अनुपात है।


हम सभी जानते हैं, जन्मपत्री में बारह घर होते हैं, जिनको भाव भी कहा जाता है, इन्हीं बारह भाव में जन्म से लेकर मृत्यु तक जीवन की समस्त घटनाऐं छिपी हुई होती हैं !

जिन्हें ज्योतिषी ग्रहों की चाल एवं ज्योतिष के अनेक नियमों एवं सिद्धान्तों द्वारा फलादेश के रूप में उजागर करते हैं।

एक मजबूत ग्रह और भाव दे सकते हैं अच्छे परिणाम-  

श्री वैदिक ज्योतिष शास्त्र में कुछ बुनियादी नियम हैं, जिनसे किसी भी ग्रह की ताकत या मजबूती के बारे में निश्चित रूप से जाना जा सकता है। 

जन्मकुंडली में एक सशक्त भाव व्यक्ति को जीवन में सुरक्षा, स्थिरता और प्रगति की दिशा में सहारा प्रदान करता है। 

जीवन में विकास और विस्तार की संभावनाएं तब बढ़ती हैं जब जन्मकुंडली में घर की स्थिति मजबूत हो। 

किसी भाव की मजबूती देखने के लिए इस प्रकार विचार करना चाहिए। 

कोई भी ग्रह तभी मजबूत होता है, जब वह निम्न शर्ते पूरी करता है। 

किसी भी भाव का स्वामी, केन्द्र या त्रिकोण में स्थित हो अथवा केन्द्र एवं त्रिकोण का स्वामी उसी भाव में स्थित हो। 

यदि कोई ग्रह केन्द्र भावों में या त्रिकोण भावों में स्थित हो अथवा शुभ ग्रहों के बीच में स्थित हो तो ऐसी अवस्था के कारण उस भाव अथवा ग्रह से संबंधित शुभ फल जातक को प्राप्त होते हैं। 

इसी प्रकार ग्रह अपनी उच्च राशि, मूल त्रिकोण या मित्र राशि में स्थित हो।


भाव और उसका स्वामी शुभ ग्रहों के मध्य में स्थित हो।


भाव और उसके स्वामी को शुभ ग्रह की दृष्टि मिलती हो।


लग्न का स्वामी लग्नेश मजबूत हो, दसवें भाव के स्वामी या अन्य शुभ ग्रहों के साथ युति हो।


यदि कोई ग्रह अपने स्वयं के घर में स्थित हो या उस पर पूर्ण दृष्टि रखता हो।


ग्रह या तो शुभ ग्रह के साथ किसी भाव में स्थित हो या उसे उसकी शुभ दृष्टि प्राप्त हो रही है।

यदि कोई ग्रह नवमांश कुंडली में वर्गोत्तम स्थिति में हो, तो ऐसी स्थिति में उस ग्रह एवं भाव से संबंधित शुभ फल व्यक्ति को उस ग्रह की महादशा, अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर्दशा, गोचर आदि के कार्यकाल में मिलती है। 


इसी को समझकर ज्योतिर्विद फलादेश करते हैं।


जीवन के प्रशिक्षक हैं ये तीनों : 

शनि की मेहनत, राहु की चतुराई और केतु का वैराग्य, जीवन के प्रशिक्षक हैं ये तीनों !

ज्योतिष शास्त्र में जिन नौ ग्रहों का वर्णन किया गया है, उनमें छाया ग्रह राहु - केतु का भी 
विशेष महत्व है। 


जहां शनि देव व्यक्ति को परिश्रम कराते हैं, राहु चतुराई देता है, वहीं केतु वैराग्य और मोक्ष 
दिलाता है। 


शनि, राहु और केतु को आमतौर पर दुख और कष्ट का कारक माना जाता है, लेकिन यदि 
ये जन्मकुंडली में मजबूत हों तो राजयोग के समान फल देते हैं।


  1. शनि कराता है मेहनत
  2. राहु देता है चतुराई
  3. केतु वैराग्य की ओर ले जाकर दिलाता है मोक्ष

शनि के साथ अक्सर राहु - केतु का नाम आता है। 

आमतौर पर शनि, राहु, केतु इन तीनों को दुःख एवं कष्ट का कारक समझा जाता है, जब कि 

ये तीनों जन्मकुंडली में बलवान हों, तो राजयोग के समान फल देते हैं। 

जिस प्रकार राहु और शनि के बीच ज्यादा समानताएं होती हैं, उसी प्रकार केतु और मंगल के 

बीच में भी एक विशिष्ट संबंध ज्योतिर्विदों ने माना है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सभी ग्रह कर्मों के आधार पर ही फल देते हैं। 

नवग्रहों में शनिदेव को दंडनायक का पद प्राप्त है, जो व्यक्ति को उसके पूर्व जन्म के कर्मों के 
अनुसार पुरस्कार - दण्ड दोनों देते हैं। 

छाया ग्रह राहु - केतु का फल भी पूर्वजन्म के अनुसार व्यक्ति को मिलता है। 

राहु व्यक्ति के पूर्व जन्म के गुणों एवं विशेषताओं के आधार पर शुभाशुभ फल देता है। 

आमतौर पर एक आदमी सोचता है कि शनि, राहु, केतु ये तीनों दुःख, कष्ट, रोग एवं आर्थिक परेशानी देने वाले होते हैं पर ऐसा सबकी जन्मकुंडली में नहीं होता। 

यदि जन्मकुंडली में ये तीनों शुभ स्थिति में हैं तो जातक को लाभ में कमी नहीं होती। 

ये तीनों व्यक्ति को बौद्धिक एवं तकनीकी तौर पर कुशल बना सकते हैं, जिससे इन्हें जीवन में सफलताएं मिलती हैं।

जहां शनि एक पिंड के रूप में मौजूद है, वहीं राहु - केतु छाया ग्रह हैं। 

राहु - केतु की अपनी कोई राशि भी नहीं है इस लिए ये जिस राशि पर बैठते हैं उस पर अपना अधिकार कर लेते हैं। 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राहु वृष राशि में उच्च का होता है और वृश्चिक राशि में नीच का। 

राहु - केतु के बारे में ज्योतिषियों में मतांतर है, कुछ ज्योतिषी राहु को मिथुन राशि में उच्च और धनु राशि में नीच का मानते हैं, केतु को धनु में उच्च का मिथुन में नीच का मानते हैं।

ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है कि चूंकि शनि देव की गति धीमी है, इसलिए इसका शुभाशुभ फल जातक को धीरे - धीरे मिलता है। 

राहु - केतु अचानक फल देते हैं, अगर राहु एक पल में जातक को ऊंचाइयों पर पहुंचा सकता है तो अगले ही पल उसे कंगाल बनाने की क्षमता भी रखता है। 

जबकि शनि देव जातक को परिश्रम एवं लगन तथा ईमानदारी से आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। 

शनि उन्हीं जातकों का साथ देते हैं, जो जीवन में सच बोलते हैं, पर राहु चतुराई और आसान तरीकों से सफलता पाने का विचार उत्पन्न कराता है।
!!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर: -
श्री सरस्वति ज्योतिष कार्यालय
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Satvara vidhyarthi bhuvn,
" Shri Aalbai Niwas "
Shri Maha Prabhuji bethak Road,
JAM KHAMBHALIYA - 361305 (GUJRAT )
सेल नंबर: . + 91- 9427236337 / + 91- 9426633096  ( GUJARAT )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏


Monday, July 7, 2025

सूर्य देव , शनि की साढ़े साती :

शनि की साढ़े साती  : 

🪐ज्योतिष- ग्रह- नक्षत्र 🪐 

सूर्य देव :  

 रविवार विशेष - सूर्य देव 


समस्त ब्रह्मांड को प्रकाशित करने वाले भगवान भास्कर न सिर्फ सम्पूर्ण संसार के कर्ताधर्ता है बल्कि नवग्रहों के अधिपति भी माने जाते हैं। 




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सूर्य देव एक ऐसे देव हैं जिनके दर्शन के बिना किसी के भी दिन का आरंभ नहीं होता है। 

रविवार का दिन सूर्य देव को समर्पित है। 

भगवान सूर्य का दिन होने के कारण रविवार को भगवान सूर्य का उपासना बेहद ही पुण्यकारक माना जाता है। 


सूर्यदेव को हिरण्यगर्भ भी कहा जाता है। 

हिरण्यगर्भ यानी जिसके गर्भ में ही सुनहरे रंग की आभा है। 

इनकी कृपा दृष्टि प्राप्त करने के लिए रविवार के दिन सूर्य भगवान का विधिवत पूजा पाठ करके जल चढ़ाना चाहिए।

ऐसा करने से भगवान सूर्य की कृपा हमारे परिवार पर बनी रहती है। 


🔆सूर्य- पिता, स्वास्थ्य, यश सम्मान, प्रशासनिक नौकरियां व व्यापार के कारक ग्रह है। 

कुंडली में इनके शुभ होने से इन सभी क्षेत्रों में सफलता प्राप्त होती है।


🔆उदयगामी सूर्य को प्रणाम करना प्रगति की निशानी है। 

इसी लिए सुबह- सुबह स्नान करके उगते सूर्य को देखना चाहिए, उन्हें प्रणाम करना चाहिए। 

इससे शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। 


🔆सूर्यदेव की पूजा के लिए सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें। 

इसके पश्चात् उगते हुए सूर्य का दर्शन करते हुए उन्हें "ॐ घृणि सूर्याय नम:" या फिर "ॐ सूर्याय नमः" कहते हुए जल अर्पित करें। 


🔆सूर्य को दिए जाने वाले जल में केवल लाल, पीले पुष्प मिला सकते हैं, लेकिन इसके अलावा और किसी प्रकार की सामग्री जल में नहीं मिलानी चाहिए क्योंकि इससे जल की पवित्रता भंग होती है।


🔆अर्घ्य समर्पित करते समय नजरें लोटे के जल की धारा की ओर रखें। 

जल की धारा में सूर्य का प्रतिबिम्ब एक बिन्दु के रूप में जल की धारा में दिखाई देगा।


🔆सूर्य को अर्घ्य समर्पित करते समय दोनों भुजाओं को इतना ऊपर उठाएं कि जल की धारा में सूर्य का प्रतिबिंब दिखाई दे। 


🔆सूर्य देव की सात प्रदक्षिणा करें व हाथ जोड़कर प्रणाम करते हुए सूर्यनारायण के समक्ष आप इन मंत्रों का जाप भी कर सकते है-:


1- ॐ सूर्याय नम:।


2- ॐ मित्राय नम:।


3- ॐ रवये नम:।


4- ॐ भानवे नम:।


5- ॐ खगाय नम:।


6- ॐ पूष्णे नम:।


7- ॐ हिरण्यगर्भाय नम:।


8- ॐ मारीचाय नम:।


9- ॐ आदित्याय नम:।


10- ॐ सावित्रे नम:।


11- ॐ अर्काय नम:।


12- ॐ भास्कराय नम:।।


शनि की साढ़े साती  :


शनि की साढ़े साती के कुछ लक्षण दुर्गति परिणाम जाने अपने जन्म कुंडली से....!

 

बहुत सारी घटनाएं हमारे और आपके जीवन में हो रही है जो कि वर्तमान में शनि की अधिक प्रभाव और साडेसाती अधिया की असर के कारण हो रहा है जाने खास लक्षण 


हथेली की रेखाओं का रंग बदल जाना या नीला या काला हो जाना सिर की चमक गायब हो जाना और माथे पर काला रंग दिखना 

 

बात-बात पर गुस्सा आना वाणी और विचारों में बदलाव होना अचानक टेंशन बढ़ना और हमेशा सिर में दर्द रहना 

 

हर काम में असफलता मिलना 

शरीर में कुछ न कुछ कष्ट होना 

 

अपनों से धोखा मिलना मन मस्तिष्क बिना कारण के गर्म होना घर में पैसा टिकना न होना 

 

शनि की साढ़े साती तीन हिस्सों में होती है और हर हिस्सा लगभग ढाई साल का होता है. शनि साढ़े साती के दौरान, शनि व्यक्ति को जीवन भर के लिए सिख देने का प्रयास करता है. 


शनि साढ़े साती के दौरान शनिदेव की पूजा करने से शनि के दोषों से मुक्ति मिलती है. 


वर्तमान 2025 में मकर राशि कुंभ राशि पर शनि की साडेसाती अधिया का विशेष प्रभाव है जो की आने वाले समय में कर्ज जेल या अन्य धन का नुकसान तथा गुप्त शत्रुओं से 


अधिक पीड़ा तथा कार्य क्षेत्र व्यवसाय आदि में अधिक नुकसान होगा और वर्तमान में हो रहा है या मनोरोग या मानसिक रोग हो सकते हैं 


आप यथाशीघ्र शनि की साडेसाती अढैया की शांति निवारण करें और लाभ में...!


और अधिक जानकारी रत्न से जुड़ा हुआ परामर्श सलाह या आपको किसी भी तरह के रत्न चाहिए या जन्म कुंडली दिखाना है 


या कुंडली बनवाना है या किसी भी प्रकार की रत्न से जुड़ा हुआ विशेष जानकारी या रत्न चाहिए तो कॉल करें ....!





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यच्च किञ्चित् जगत्सर्वं,दृश्यते श्रूयतेऽपि वा।

अन्तर्बहिश्च तत्सर्वं,व्याप्य नारायण:स्थित:।।


निष्कलाय विमोहाय,शुद्धायाशुद्धवैरिणे।

अद्वितीयाय महते,श्रीकृष्णाय नमो नमः।।


जो कुछ हो चुका है, जो कुछ हो रहा है और होने वाला है...! 

वह दिखाई देने वाला और सुनने में आने वाला सम्पूर्ण जगत भगवान् नारायण ही हैं। 

इसमें भीतर और बाहर सब ओर से भगवान् नारायण ही व्याप्त हुए स्थित हैं।

'जो कला ( अवयव) से रहित हैं...! 

जिनमें मोह का सर्वथा अभाव है, जो स्वरूप से ही परम विशुद्ध हैं...! 

अशुद्ध ( स्वभाव तथा आचरण वाले) असुरों के शत्रु हैं तथा जिनसे बढ़कर या जिनके समान भी दूसरा कोई नहीं है...! 

उन सर्वमहान् परमात्मा श्रीकृष्ण को बारम्बार नमस्कार है।'

       

     || विष्णु भगवान की जय हो ||


संपर्क सूत्र - 7598240825 - 9427236337 ,

पंडारामा प्रभु राज्यगुरु ,

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                    II  Whatsaap 7598240825 II

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